कार्यकर्ताओं के लिए एक जरूरी पुस्तक “लेके रहेंगे अपना पानी”

ओलवन्ना, केरल, (भारत) तथा सावेलुगु (घाना) में स्थानीय समुदायों ने जलापूर्ति व्यवस्था सुधारने के लिए अपनी क्षमताओं और स्थानीय संसाधानों का पूरा इस्तेमाल करते हुए यह काम अपने हाथ में ले लिया है।
इस संकलन-वेब प्रस्तुति का प्रेरक तत्व यह तथ्य है कि प्राय: सफल होने वाले इन प्रयोगों पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। उन करोड़ों जरूरतमंद लोगों तक स्वच्छ जल की व्यापक पहुंच को संभव बनाने की चुनौती ऐसी है जिसके लिए जरूरी है कि इन प्रयोगों से मिलने वाले सबक सबको बताये जायें। हालांकि कोई ऐसा एक अकेला मॉडल नहीं है जो सब जगह, सब पर लागू हो जाये लेकिन इससे सार्वजनिक जलापूर्ति सेवाओं को कैसे सुधारा जाये और उनके विस्तार के तरीकों, उदाहरण के लिए जनकेंद्रित भागीदारी प्रक्रियाओं और सार्वजनिक जल सेवाकर्मियों को जलापूर्ति सेवा में शामिल करने के बारे में महत्वपूर्ण प्रेरणा मिल सकती है।
इस पुस्तक “लेके रहेंगे अपना पानी” में कुछ अध्याय निजीकरण को रोकने और जलापूर्ति का निजीकरण खत्म करने के लिए दुनिया भर में चल रहे संघर्षों पर भी हैं। इन अध्यायों में निजीकरण विरोधी गठबंधनों द्वारा विकसित इस आशय के व्यापक दृष्टिकोण भी समाहित हैं कि सार्वजनिक जल व्यवस्था कैसे कारगर हो।

क्योटो से पोर्टो अलेग्रे तक
क्योटो (जापान) में मार्च 2003 में आयोजित विश्व जल मंच (वर्ल्ड वाटर फोरम) जल विषयक अंतर्राष्ट्रीय बहस के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु था। पूरी दुनिया से आये नागरिक समाज समूह पानी के निजीकरण के खिलाफ बहुत भावावेश के साथ खुलकर बोले। उन्होंने दक्षिण तथा उत्तर दोनों में निजीकरण की नाटकीय असफलताओं के प्रमाण दिये। इन हस्तक्षेपों ने मंच के आयोजकों विशेषकर नव-उदारवादी विश्व जल परिषद (वर्ल्ड वाटर कौंसिल-डब्ल्यू.डब्ल्यू.सी.) के सार्वजनिक-निजी साझीदारियों (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप- पी.पी.पी.) को आगे बढ़ाने के प्रयासों पर पानी फेर दिया। डब्ल्यू,डब्ल्यू.सी., अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों तथा अनेक उत्तरी सरकारों ने तर्क दिया कि दक्षिण से बहुराष्ट्रीय जलनिगम न हटे, इसके लिए उचित यही होगा कि निगमों को आर्थिक सहायता दी जाये, उनके राजनीतिक जोखिम की भरपाई की जाये और उन्हें मुनाफे की गारंटी दी जाये। अद्भुत बात यह है कि कहीं ज्यादा स्पष्ट तरीके-सार्वजनिक जलापूर्ति में सुधार लाने और उसके क्षेत्र का विस्तार करने - का वहां कोई जिक्र नहीं किया गया था।
विश्व जलमंच के तुरंत बाद दुनिया भर के लगभग 100 कार्यकर्ताओं ने निजीकरण के विकल्पों पर एक विचारगोष्ठी में भाग लिया। विचार गोष्ठी का निष्कर्ष सिर्फ यही नहीं था कि अच्छी तरह काम करने वाली सार्वजनिक जल सुविधाओं के अनेक उदाहरण मौजूद हैं, वहां यह भी निष्कर्ष निकला कि नये प्रयोगधार्मी रुखों की एक व्यापक श्रृंखला के परिणामस्वरूप केवल दक्षिण में ही नहीं, पूरी दुनिया में सार्वजनिक जलापूर्ति व्यवस्था में
ठोस सुधार हुए हैं। 2003 में साल भर सार्वजनिक जल समाधानों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इन समाधानों पर चर्चा के लिए संगठित प्रयास किये गये। 2004 में मुंबई (भारत) में तीसरे विश्व सामाजिक मंच (डब्ल्यू.एस.एफ.) में एक सफल विचारगोष्ठी के बाद एक संयुक्त परियोजना शुरू की गई जिसमें गैरसरकारी संगठनों के आंदोलनकारियों, जमीनी स्तर पर काम करने वाले निजीकरण विरोधी कार्यकर्ताओं, बुद्धजिवियों, विश्वविद्यालयों से जुड़े लोगों, सार्वजनिक सुविधाओं के प्रबंधाकों तथा श्रम संघों के लोगों का एक वैविध्यपूर्ण गठबंधन शामिल था। चर्चाओं और बहसों की सुविधा प्रदान करने के लिए एक सूचना प्रसार केंद्र (क्लियरिंग हाउस) और मंच के रूप में डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.वाटरजस्टिस.ऑर्ग वेबसाइट शुरू की गई। जनवरी 2005 में पोर्टो अलेग्रे में होने वाले विश्व सामाजिक मंच के लिए लेखों का संकलन कर समय से एक पुस्तक के प्रकाशन का भी फैसला किया गया। इस संकलन में सार्वजनिक जलापूर्ति में सुधारों के उदाहरण दिये जाने थे और भागीदारी तथा लोकतांत्रीकरण की संभावनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाना था।

पुस्तक का केंद्रीय विषय और रूप लेखकों और बड़ी संख्या में सलाहकारों के साथ विचार विमर्श के माध्यम से तय हुया है। उरूग्वे अध्याय के सहलेखक अल्बर्टो विलारियल ने इस बात पर जोर दिया कि यह पुस्तक सार्वजनिक जल को वापस पाने के लिए दुनिया भर से उपलब्धियों और विचारों के ठोस उदाहरण प्रदान कर निजीकरण विरोधी कार्यकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणास्रोत बन सकती है। वास्तव में यह पुस्तक यथासंभव सरल शैली में अनुभवों का एक व्यापक क्षेत्र प्रस्तुत करती है। कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त यह पुस्तक जल पर काम करने वाले पेशेवर लोगों और जलकर्मियों के लिए एक संसाधन के रूप में तैयार की गई है। वे निजीकरण प्रक्रिया में सबसे आगे की पंक्ति में हैं और उन पर निजीकरण का समर्थन करने वाले संदेशों और दबावों के गोले प्राय: बरसाये जाते रहते हैं।

“लेके रहेंगे अपना पानी” से पाठ 2...............
वेब प्रस्तुति- मीनाक्षी अरोड़ा
साभार-इंसाफ

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