गरीबों की पानी की जरूरतों को मुनाफाखोर बहुराष्ट्रीय जलनिगमों के हाथों में नहीं छोड़ा जाना चाहिए
प्रस्तावना-
विचारधारा से प्रेरित निजीकरण की लहर के कारण 1990 का दशक सबको स्वच्छ जल उपलब्ध करा पाने की लड़ाई के लिए वस्तुत: एक हारा हुआ दशक था। दक्षिण के मुख्य शहरों में निजीकरण की बड़े पैमाने पर असफलता, जिसका विवरण आगे किया जाएगा. इस बात का पर्याप्त साक्ष्य प्रदान करती है कि गरीबों की पानी की जरूरतों को मुनाफाखोर बहुराष्ट्रीय जलनिगमों के हाथों में नहीं छोड़ा जाना चाहिए। वैश्विक जल निगमों ने जिन सुधारों का वादा किया था उन्हें पूरा करने में वे लगभग निरपवाद रूप से असफल रहे। सुधार करने के बजाय उन्होंने पानी पर शुल्कों को इतना बढ़ा दिया कि इन्हें अदा कर पाना निर्धन परिवारों की पहुंच से बाहर हो गया। दुनिया भर के देशों में निजीकरण विरोधी जमीनी अभियानों का उभार, जो क्षेत्रीय और वैश्विक संजालों से ज्यादा से ज्यादा जुड़ता गया है, अब धारा को मुक्त-बाजार के रूढ़िवाद के विरुद्ध मोड़ने की शुरूआत कर रहा है। समय आ गया है कि अब जल संबंधा वैश्विक चर्चा को फिर से इस मुख्य सवाल पर केंद्रित किया जाये कि दुनिया भर में सार्वजनिक जलापूर्ति व्यवस्था का सुधार और विस्तार कैसे किया जाये?
पुस्तक “लेके रहेंगे अपना पानी” का उद्देश्य वैश्विक जल विमर्श में यह बहुत जरूरी बदलाव लाने में योगदान देना रहा है। निजीकरण कोई समाधान नहीं है, न ही प्राय: नौकरशाही के शिकंजे में कसी और अप्रभावी उन राज्य-संचालित जल सेवाओं का यथास्थितिवाद इसका समाधान है
जो विकासशील देशों के बड़े हिस्सों में उन लोगों को साफ पानी की आपूर्ति कर पाने में असफल हैं जिन्हें उसकी जरूरत है। यह पुस्तक “लेके रहेंगे अपना पानी” सार्वजनिक जलापूर्ति के नये कल्पनापूर्ण रुखों के प्रेरक उदाहरणों की विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है। उदाहरण के लिए पोर्टो अलेग्रे और रिसाइफ (ब्राजील) में स्थापित अथवा बन रहे जनकेंद्रित, जनभागीदारी वाले सार्वजनिक माडलों से महत्वपूर्ण सबक सीखे जा सकते हैं। इन शहरों में सार्वजनिक जलापूर्ति को अन्य लोकतांत्रिक सुधारों के साथ-साथ नागरिकों और उपयोग करने वालों की सहभागिता बढ़ाकर सुधारा जा रहा है। पेनांग (मलेशिया) जैसे अन्य शहरों में फिर से खोज निकाली गई सार्वजनिक सेवा के लोकाचार ने इस सेवा के काम में महत्वपूर्ण सुधार किये हैं। जलकर्मी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं यहां तक कि उनकी अपनी सहकारी संस्थाएं अर्जेंटीना और बंगलादेश के शहरों में जलापूर्ति का काम भी कर रही हैं। “लेके रहेंगे अपना पानी” से पाठ 1...............
साभार-इंसाफ