“लेके रहेंगे अपना पानी” पुस्तक के बारे में

पुस्तक के बारे में
परिचयात्मक अध्याय में पानी तक पहुंच संबंधी वैश्विक संकट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ इस बात पर भी चर्चा की गई है कि 1990 के दशक में निजीकरण की लहर विफल क्यों हुई। इसके बाद 20 से ज्यादा अध्याय हैं (वेब प्रस्तुति में 100 से ज्यादा हिस्सों में) जो इस बात के ठोस उदाहरण और विचार प्रस्तुत करते हैं कि शहरी जलापूर्ति को लोकतांत्रिक सार्वजनिक सुविधा सुधारों के जरिये किस तरह बेहतर बनाया जा सकता है। ये सभी अध्याय सार्वजनिक जल सुविधा प्रबंधकों, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं और इन प्रयासों से सीधे जुड़े अन्य लोगों द्वारा लिखे गए हैं। अनेक अध्याय विभिन्न राजनीतिक, वित्तीय तथा अन्य उन बाधाओं पर काफी जोर देते हैं जो इन रवैयों की सफलता की राह अवरुद्ध कर सकती हैं। सार्वजनिक जल समाधान जनता के उन प्रयासों से ही प्राप्त होंगे जो सबके लिए सुरक्षित और पहुंच के भीतर पानी सुनिश्चित करने के लिए किये जा रहे हैं। इन समाधानों की शक्ल क्या होगी यह भी इन प्रयासों से ही तय होगा। असफल होती निजी जलापूर्ति और अपर्याप्त, राज्य संचालित जल सुविधाओं के विरुद्ध नागरिक समाज के अभियानों पर कई अध्याय शामिल करने के पीछे एक कारण यह भी था। एक लेखक, ऐंटी प्राइवेटाइजेशन फोरम (निजीकरण विरोधी मंच) के डेल टी. मैककिनले के शब्दों में : ''दक्षिण अफ्रीका में जल निजीकरण विरोधी संघर्ष लगातार एक विकल्प के बीज बोता जा रहा है।''

अंत में, पुस्तक के अंतिम अध्याय में (वेब प्रस्तुति में 100 से ज्यादा हिस्सों के अंत में) उन कुछ सबकों को सार रूप में देने का प्रयास किया गया है जो प्रस्तुत किये गए अनुभवों से सीखे जा सकते हैं। इस अध्याय में इन उपायों को आगे बढ़ाने की राह में आने वाली मुख्य चुनौतियों को पहचानने का प्रयास भी किया गया है।

“लेके रहेंगे अपना पानी” से पाठ 3...............
वेब प्रस्तुति- मीनाक्षी अरोड़ा
साभार-इंसाफ

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