राजधानी के आसपास की नदियां बनी कचडे की अंबार

झारखंड की राजधानी के आस पास जितनी नदियां है चाहे वह स्वर्णरेखा हो, हरमू हो या पोटपोटो नदी इन दिनो सभी कचडे का अंबार बनती जा रही है. गौर करने की बात यह है कि यहां नदी तालाबों को साफ करने की बात केवल छट पर्व के अवसर पर ही सामने आती है वह भी बस लोगो को संतृष्ट करने के लिये. सही मायने में कहा जाये तो नदी, तलाबों को साफ करने का कोई नियम यहां है ही नहीं. अगर कुछ है भी तो उसे सही ढंग से लागू नहीं किया जाता है. जिस वजह से आज यहां की नदियां गंदे नाले में तब्दील होती जा रही है.

नदियों के इर्द गिर्द बनने वाले फलैट बस्तियां यहां के पानी को प्रदूषित करने का काम कर रही है. वैसे तो सरकार अपने हिसाब से हमेशा यही कहती है कि प्रदूषण रोकने के उपाय किये जा रहें है. अधिकतर सरकार एक दूसरे पर प्रत्यारोप करने में ही समय काट देती है. केंद्र सरकार के अनुसार राज्य सरकार सही तौर पर नदियों को साफ करने के लिये सहयोग नहीं करती है. या फिर नदियों को साफ करने से संबंधित प्रोजेक्ट चलाने में राज्य ही सबसे बडी रूकावट डालती है. पर्यावरण मंत्रालय नदियों को व्याप्त प्रदूषण की रोकथाम के लिये एनबीसीसी,सीपीसीबी आदि सरकारी संस्थाओं को काम में लगाती है. पर इसका नतीजा सबके सामने है.

रीभर एक्शन प्लांट के अन्तर्गत कूडा साफ करने वाले प्लांट तैयार करने पर करोडों रूपये खर्च किये जाते हैं लेकिन को* उत्साहवर्द्धक परिणाम सामने नहीं आ रहा है. पर्यावरण और वन मंत्रालय प्रदूषण को रोकने के लिए निर्णायक बनाता है लेकिन नदियों के किनारे बढती आबादी की वजह से वित्तीय संसाधन की उपलब्धता और कामों के बीच हमेशा अंतर रहता है. यह अंतर राजधानी रांची के नदियों के किनारे धडल्ले से खडे हो रहे फैल्टों के कारण भी है. पिछले दिनों एक संगठन द्वारा किये गये सर्वे के अनुसार राजधानी की अधिकतर नदियां डेड रिवर बनने के कगार पर है. सर्वणरेखा, हरमू , पोटपोटो, हिनू सभी नदियों में प्रदूषण की मात्रा बहुत अधिक है. कहीं मरकरी , कीटनाशक या लोहा की मात्रा बहुत अधिक है तो किसी नदी के पानी में ऑक्सीजन मात्रा बहुत कम. उद्योग, बढते शहरीकाण, और कृषि नदियों में प्रदूषण के तीन प्रमुख कारण है. प्रदूषित जल के प्रयोग से, त्वचा संबधी स्नायु तंत्रीय स्मस्यायें तथा कैंसर संबंधी भयावह बीमारियां पनपती है. संयुक्त राष्ट्र संघ का कहना है कि यदि जल प्रदूषण के निदान के समूचित प्रयास नहीं हुये तो आगामी समय में स्वच्छ पेयजल के अभाव में विविध कारणों से विश्व में लगभग १७.५ लाख लोग अपनी जान से हाथ धो देंगे.ऐसे में आज भी अगर कुछ सोचा न जाये तो परिणाम भुगतने के लिये हमें खुद ही तैयार रहना पडेगा.
अभय कुमार / संवाद मंथन
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