विश्व का तापमान बढ़ने से हिमालय के हिमनद पिघल रहे हैं
पर्यावरण के संरक्षण के लिए सक्रिय संगठन, ग्रीनपीस ने कहा है कि तापमान बढ़ने से हिमालय के हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे एशिया के लाखों लोगों को पानी की आपूर्ति कम हो सकती है और बाढ़ आने की आशंका भी बढ़ती जा रही है । ग्रीनपीस ने चीन और अन्य देशों से कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए तुरंत कदम उठाने का अनुरोध किया है ताकि विश्व के बढ़ते हुए तापमान की समस्या का सामना किया जा सके ।
ग्रीनपीस की चीनी शाखा ने कहा है कि पिछले दो सालों में किंगहाई-तिब्बती पठार की तीन यात्राओं के दौरान हिमालय के हिमनदों के उसके अध्ययन से पता चला है कि तापमान बढ़ने की वजह से वे पीछे हटते जा रहे हैं ।
बुधवार को ग्रीनपीस ने बीजिंग में पत्रकारों को सिकुड़ते हुए हिमनदों की तस्वीरें और तिब्बती ग्रामीणों के साक्षात्कार दिखाए, जिनसे संकेत मिलता है कि पानी की आपूर्ति और खेतों में फसलें प्रभावित होने लगी हैं ।
ग्रीनपीस चाइना के लिए मौसम और ऊर्जा कार्यकर्ता ली यान ने कहा है कि पिघलते हुए हिमनदों से बनी झीलों में संभवतः वह पानी इकट्ठा हो रहा है, जो आमतौर पर नीचे बहकर गांवों में चला जाता है और इस वजह से पानी की तंगी हो रही है । उन्होंने कहा कि जब इन झीलों में बहुत ज्यादा पानी भर जाएगा और वह अचानक पहाड़ों से नीचे बहेगा तो बहुत घातक होगा । सुश्री ली ने कहा कि हाल ही में हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान ग्रीनपीस को बर्फ तेजी से पिघलने का पता चला था ।
सुश्री ली ने कहा कि हिमालय पर्वत चीन के औसत से दुगनी गति से और विश्व की गति से लगभग तीन-गुनी ज्यादा गति से गर्म हो रहा है ।
ग्रीनपीस ने चीनी वैज्ञानिकों का हवाला दिया, जिन्होंने कहा है कि जिस दर से विश्व का तापमान बढ़ता जा रहा है, उससे 2035 तक हिमालय के सारे हिमनद गायब हो जाएंगे और अगर मौसम में परिवर्तन की प्रवृत्ति और बिगड़ी तो यह संकट इससे भी जल्दी पैदा हो सकता है ।
हिमनद के गायब होने का अर्थ है, एशिया के लाखों लोगों के लिए पानी का अभाव । तिब्बती पठार के हिमनद प्रमुख नदियों का स्रोत हैं, जिनमें चीन की याग्तज़ी और येलो नदी तथा भारत की गंगा और सिंधु नदी और दक्षिण-पूर्व एशिया की मेकोंग नदी शामिल हैं ।
ग्रीनपीस ने तापमान बढ़ने के लिए कार्बन उत्सर्जन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को जिम्मेदार बताया है और कहा है कि चीन तथा अन्य देशों की सरकारों को उत्सर्जन रोकने के लिए ज्यादा कदम उठाने की जरूरत है ।
समझा जाता है कि इस साल ही कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन के मामले में चीन अमेरिका से आगे निकल जाएगा ।
ग्रीनपीस ने कहा है कि चीन पर्यावरण में परिवर्तन की गति धीमी करने के लिए कदम उठा सकता है और ऊर्जा क्षमता में सुधार करके तथा पुनः नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को बढ़ावा देकर अपनी आर्थिक वृद्धि को बरकरार भी रख सकता है ।
यूरोपीय संघ चीन को समझाने की कोशिश कर रहा है कि उसे कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन रोकने के लिए ज्यादा बड़े कदम उठाने चाहिए ।
परंतु बीजिंग ने उत्सर्जन का स्तर बढ़ने के बावजूद कहा है कि विकसित देशों को विश्व का तापमान बढ़ाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए ।
ग्रीनपीस