दिबांग परियोजना का कड़ा विरोध

जन सुनवाई में अधिकारी नहीं पहुंच सकेअरूणाचल प्रदेश में प्रस्तावित दिबांग बहुद्देशीय परियोजना के लिए होने वाली जनसुनवाई जबरदस्त स्थानीय विरोध के कारण आयोजित नहीं की जा सकी। भारत सरकार की सार्वजनिक ईकाई नेशनल हाईड्रोइलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) द्वारा विकसित की जाने वाली इस 3000 मेगावाट स्थापित क्षमता की जलविद्युत परियोजना के लिए आयोजित की जाने वाली जनसुनवाई 12 मार्च को राज्य के दिबांग वैली जिले में न्यू अनाया में प्रस्तावित थी।

परियोजना का स्थानीय स्तर पर इतना विरोध था कि जनसुनवाई स्थल को जाने वाले दो मार्गो को 12 मार्च को सुबह से ही पूरी तरह अवरूध्द कर दिया गया था। परियोजना की जनसुनवाई करने वाले अरूणाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण्ा नियंत्रण बोर्ड (एपीएसपीसीबी), एनएचपीसी एवं राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (एनपीसी) से जुड़े अधिकारियों ने जिस मार्ग से सभा स्थल पर पहुंचने की कोशिश की वहां उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा और अंतत: उन्हें वापस लौटना पड़ा। स्थानीय संगठन आल इदु मिशिमी स्टूडेंट यूनियन (ऐमसु) के नेतृत्व में स्थानीय लोगों ने उन पर जबरदस्ती थोपे जा रहे जनसुनवाई का खुलकर विरोध करने की घोषणा कर दिया था।

ऐमसु का कहना है कि इस परियोजना में प्रस्तावित 288 मीटर ऊंचे बांध से स्थानीय स्तर पर गंभीर सामाजिक व पर्यावरणीय असर पड़ेंगे। स्थानीय लोगों एवं विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना के लिए जो पर्यावरण्ा असर आकलन (इआईए) रिपोर्ट तैयार की गई है वह बहुत ही निम्नस्तरीय है, और इसमें प्रभावित होने वाले इलाके के कई महत्वपूर्ण संसाधनों व अध्ययनों को शामिल नहीं किया गया है, साथ ही कई आंकड़े गलत पेश किये गये हैं। इस तरह इस अध्ययन के आधार पर स्थानीय लोगों की उचित राय नहीं ली जा सकती।

12 मार्च को अनाया, कानो, आरजू, शुक्लानगर एवं आस-पास के गांवो के लोगों ने रोइंग से अनीनि को जोड़ने वाली सड़क को इथी नदी पर बने पुल के पास सुबह से ही अवरूध्द कर दिया। मार्ग पर खड़े सैकड़ो ग्रामवासियों ने एनएचपीसी वापस जाओ के नारे लगाये। लोगों के व्यापक विरोध को देखते हुए एनएचपीसी, एपीएसपीसीबी एवं एनपीसी से जुड़े अधिकारियों को वापस लौटना पड़ा। अनिनि के उपायुक्त एवं अन्य अधिकारीगण जो अन्य रास्ते से सभा स्थल तक पहुंचने में कामयाब रहे थे, उन्हें भी वापस लौटना पड़ा। प्रदर्शनकारी दिन के 12 बजे तक वहां डटे रहे और एपीएसपीसीबी के अधिकारियों के वापस लौटने के बाद लोगों ने मार्ग से अवरोध हटा लिया। ऐमसु के महासचिव तोन मिकरोव ने कहा कि, ''जब सरकार स्वयं निर्धारित नियम-कानूनों का पालन नहीं कर रही है तो लोगों पर जबरन लादे जा रहे इस परियोजना का विरोध करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था''।

देश के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने अरूणाचल दौरे के दौरान 31 जनवरी 2008 को परियोजना का शिलान्यास किया था। परियोजना से प्रभावित लोगों और राष्ट्रीय अखबारों ने लोगों की सहमति के बगैर परियोजना से 600 किमी दूर हुए शिलान्यास पर आश्चर्य जताया था। जब इस परियोजना में बाध्यकारी जनसुनवाई पूरी नहीं हुई है, और परियोजना को पर्यावरण व वन मंत्रालय से मंजूरी मिलना बाकी है तो परियोजना का शिलान्यास कैसे किया जा सकता है? सबसे दुखद बात यह है कि प्रधानमंत्री के पास पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जिम्मेदारी है। दिबांग नदीघाटी पर्यावरणीय तौर पर बहुत ही संवेदनशील घाटी है। यह तो अजीब बात है कि एक तरफ प्रधानमंत्री देश में बाघों की घटती संख्या पर चिंता जताते हैं दूसरी तरफ दिबांग नदीघाटी में बाघों के निवास क्षेत्र को बांध बनाकर डुबोना चाहते हैं।

ऐमसु का कहना है कि परियोजना के लिए 29 जनवरी को रोइंग में हुयी पहली जनसुनवाई में स्थानीय लोगों ने इआईए रिपोर्ट की तमाम खामियों को उजागर किया था। लेकिन उस इआईए रिपोर्ट में कोई सुधार किये बगैर ही फिर उसी रिपोर्ट के आधार पर दूसरी बार जनसुनवाई आयोजित करने का कोई आधार नहीं बनता है।

बांधो, नदियों एवं लोगों का दक्षिण एशिया नेटवर्क (सैण्ड्रप)
15 मार्च 2008

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