निर्मल गंगा
यह निराशाजनक है कि उत्तर प्रदेश में गंगा की साफ-सफाई के लिए एक नई योजना विचाराधीन तो बताई जा रही है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि वह किस तरह कार्य करेगी? आपरेशन निर्मल गंगा नामक इस योजना को अमल में लाने के राज्य सरकार के इरादे को देखते हुए यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि पहले से चल रही गंगा कार्य योजना का क्या होगा? आखिर यह क्यों न मान लिया जाए कि अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद गंगा कार्य योजना असफल सिद्ध हो चुकी है? सच्चाई जो भी हो, केवल नाम बदलने भर से किसी योजना की सफलता के प्रति सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता। यदि राज्य सरकार वास्तव में आपरेशन निर्मल गंगा योजना को अमल में लाने जा रही है तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसे उन खामियों से मुक्त रखा जाए जिनके चलते गंगा कार्य योजना असफल साबित हुई। विगत दिवस विधानसभा में नगर विकास मंत्री गंगा कार्य योजना और विचाराधीन आपरेशन निर्मल गंगा को लेकर जिस तरह विपक्ष का निशाना बने उससे तो यही लगता है कि गंगा की साफ-सफाई राज्य सरकार के एजेंडे में ही नहीं है। ऐसा संकेत तब मिल रहा है जब पिछले कुछ समय से गंगा नदी अपने प्रदूषण के कारण लगातार चर्चा में है।
बात केवल गंगा नदी की ही नहीं है, यमुना का प्रदूषण भी कम घातक नहीं। सच तो यह है कि गंगा और यमुना के साथ-साथ अन्य नदियां भी बुरी तरह प्रदूषित हैं। उदाहरण के लिए चंबल, गोमती और हिंडन जैसी नदियों में प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ गया है वे गंदे नाले में तब्दील होती जा रही हैं। बेहतर हो कि राज्य सरकार नदियों की सफाई के लिए नई योजना के फेर में पड़ने के स्थान पर उस राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करे जो नदियों को साफ-सुथरा रखने के लिए जरूरी है। गंगा समेत दूसरी नदियों के प्रदूषण के कारण किसी से छिपे नहीं, लेकिन विडंबना यह है कि उन्हें दूर करने के नाम पर खानापूरी ही अधिक की जा रही है। क्या कारण है कि नदियों के जल को विषाक्त बनाने वाले उद्योगों पर प्रभावशाली तरीके से अंकुश नहीं लगाया जा पा रहा? जब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं होती तब तक नदियों को साफ-सुथरा बनाने की योजनाओं की सफलता संदिग्ध ही रहेगी।
[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]