नया राज्य और नदी के नए जागीरदार - नदिया बिक गई पानी के मोल-३

आलोक प्रकाश पुतुल जी का “नदिया बिक गई पानी के मोल” आलेख श्रृंखला पानी के अर्थशास्त्र और राजनीति पर एक गंभीर प्रकाश डालता है। आलोक जी को बहुत-बहुत धन्यवाद.- मीनाक्षी
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आलोक प्रकाश पुतुल
तीसरी किस्त । पहले की दो किस्तें यहाँ पढ़ें
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अब शिवनाथ पर एनिकट बनाने और पानी आपूर्ति का जिम्मा रेडियस वाटर लिमिटेड पर था. इस पूरी प्रक्रिया के संपन्न होने तक शिवनाथ नदी मध्य प्रदेश के बजाय नए राज्य छत्तीसगढ़ का हिस्सा बन चुकी थी और अब शिवनाथ पर रेडियस वाटर लिमिटेड का कब्जा था. औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर अब छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन (सीएसआईडीसी) में तब्दील हो चुका था.
रेडियस ने देखते ही देखते शिवनाथ नदी के 22.7 किलोमीटर हिस्से पर घेराबंदी शुरु कर दी. नदी किनारे की 176 एकड़ जमीन के अलावा हजारो वर्गफीट जमीन पर रेडियस वाटर लिमिटेड ने अपना साम्राज्य जमा लिया था.
औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर के बोरई स्थित सारे संसाधनों पर एक रुपए में कब्जा जमा कर उसी संसाधन से रेडियस वाटर लिमिटेड ने पहले महीने से ही औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर यानी
छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन (सीएसआईडीसी) से 4 एमएलडी पानी की कीमत 15 लाख 12 हजार रुपए वसुलना शुरु किया. यानी बिना एक रुपए की पूंजी लगाए रेडियस ने राज्य सरकार से पहले ही साल एक करोड़ 81 लाख 44 हजार रुपए का भुगतान प्राप्त कर लिया.
बाद के सालों में जब अनुबंध के अनुसार रेडियस ने प्रति हजार लिटर पानी के लिए 15.02 रुपए छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन (सीएसआईडीसी) से वसुलना शुरु किया तो इस अनुबंध के भ्रष्टाचार खुल कर सामने आने लगे. बोरई में केवल दो उद्योग थे और उन्हें 2.4 एमएलडी से अधिक पानी की आवश्यकता कभी होनी ही नहीं थी, जबकि छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन को 4 एमएलडी पानी का भुगतान अनिवार्य था. इसके अलावा छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन जिन उद्योगों को पानी की आपूर्ति कर रहा था, उनसे प्रति हजार लिटर पानी के लिए केवल 12 रुपए ही लेने का अनुबंध था. यानी रेडियस से पानी लेने और उद्योगों को पानी देने में प्रति हजार लीटर पानी में 3.02 रुपए का घाटा छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन को भुगतना अनिवार्य था.
शिवनाथ के आसपास बसे अधिकांश गांवों के लिए पानी का मुख्य स्रोत नदी ही रही है. लेकिन इस नदी पर रेडियस वाटर लिमिटेड के कब्जे के बाद शिवनाथ के किनारे बसे गांवों को नदी के इस्तेमाल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया. जिस नदी का अब तक कोई भी निःशुल्क इस्तेमाल कर सकता था, उसमें नहाने या उसके पानी से सिंचाई करने पर रोक लगा दी गई. कई पीढ़ियों से इस नदी में मछली मारने वाले सैकड़ों मछुवारों को इस इलाके से भगा दिया गया. पालतु पशुओं के लिए पानी का संकट पैदा हो गया. यहां तक कि नदी किनारे की चारागाह के रुप में इस्तेमाल होने वाली जमीन भी एनिकट के लिए पानी रोके जाने के कारण डूब क्षेत्र में आ गई. गांव के लोगों को रेत भी दूसरे इलाकों से मंगाने की नौबत आ गई. नदी किनारे बोर्ड लगा दिया गया- “ नदी में नहाना और मछली पकड़ना सख्त मना है. इससे जान को खतरा हो सकता है.”
गांव के हजारों किसान हतप्रभ रह गए. कल तक जो नदी सबकी थी, अब उस पर एक निजी कंपनी के अधिकार ने चौंका दिया. नदी किनारे बसे मोहलाई के सरपंच बठवांराम टंडन आक्रोश के साथ कहते हैं-“ यह कैसा पंचायती राज्य है, जहां गांव वालों से पूछे बिना नदियां तक बेच दी गईं. कल को ये सरकारें सूरज की रोशनी और हवा भी बेच देंगी तो हमें अचरज नहीं होगा.”
नदी और पानी को बेचने की इस साजिश के खिलाफ इस इलाके में लगातार सक्रिय नदी घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय कहते हैं- “ रेडियस ने गांवों में हैंडपंप का इस्तेमाल करने और नए कुएं खोदे जाने पर भी पाबंदी लगा दी. कंपनी के कारिंदे गांव में घुम-घुम कर गांव वालों को डराने लगे. सिंचाई करने वाले किसानों के पंप रेडियस ने जप्त कर लिए.”
मोहलाई, खपरी, रसमरा, सिलोदा, महमरा जैसे गांवों का एक जैसा हाल हुआ. लेकिन इससे भी बुरा हाल उन गांवों का था, जो बोरई एनिकट के नीचे वाले हिस्से में बसे थे. चिरबली, नगपुरा, मालूद, झेरनी, पीपरछेड़ी, बेलोदी के किसानों का संकट ये था कि बांध के कारण सारा पानी ऊपर ही रुक जा रहा था और शिवनाथ के नीचे का पूरा हिस्सा सूख गया.
गरमी के दिनों में जब हाहाकार मचा तो गांव के लोग संगठित होने लगे. नदी घाटी मोर्चा ने दुर्ग से रायपुर और दिल्ली तक आंदोलन शुरु किया. धरना, जुलूस, सड़क जाम, प्रदर्शन और घेराव की रणनीति बनाई गई।
जारी

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