स्वां के सीने पर रसायनों का कहर

ऊना [राजेश शर्मा]। सोमभद्रा नदी के नाम से विख्यात स्वां नदी अपने नाम के अनुरूप सहेजे गुणों को खो रही है। कीटनाशकों के कहर और रही सही कसर उद्योगों से निकलने वाले रसायनिक वेस्ट ने पूरी कर दी है। कभी पवित्र माना जाने वाला जल अब विषैला होता जा रहा है। कुछ सरकारी उपेक्षा है और कुछ सरोकारों से विमुख समाज.. वह दिन दूर नहीं, जब जिले की सबसे लंबी यह नदी विषयुक्त पानी के कारण लोगों के लिए अभिशाप बन जाएगी।
जिले की इस पवित्र नदी में प्रत्येक वर्ष सैकड़ों लीटर जहरीली कीटनाशक दवाओं का समावेश हो रहा है। बाहरी राज्यों के राई परिवार यहां बेमौसमी सब्जी उत्पादन की आड़ में ऐसा विष घोल रहे हैं जो शायद आने वाले समय में लोगों के लिए घातक भी साबित हो। यही नहीं, जिले में बढ़ते औद्योगीकरण की मार भी इसी नदी पर पड़ रही है। करीब 28 किलोमीटर लंबी इस नदी में सैकड़ों राई परिवार प्रत्येक वर्ष बेमौसमी सब्जी का उत्पादन करने पहुंचते हैं। ये किसान इस नदी के ठीक बीच वाले भू-भाग पर सब्जी का उत्पादन कर रहे हैं। सालों से नदी की भूमि पर ये जहरीली कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो मानव जीवन के लिए खतरनाक हैं। इनमें मेलाथिन, एंडोसल्फान, स्पार्क, डीडीवीपी, सायपरपैथरी, क्लाकपैरीफोस, रेटाल, एमीडा व जिंक फास्फाइड प्रमुख हैं। इन दवाइयों के इस्तेमाल से जहां स्वां नदी की रेत विषैली हो रही है, वहीं पानी भी जहरीला है। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसे कीटनाशकों के प्रयोग से नदी की भूमि में उपजाऊ क्षमता पर भी बुरा असर पड़ रहा है, वहीं पैदा हो रही सब्जी भी मानव जीवन के लिए ठीक नहीं है।
पर्यावरण विशेषज्ञ डा. एनके धीमान और डा. विजय डोगरा ने माना कि स्वां नदी का जल दिन प्रतिदिन विषैला होता जा रहा है। इस नदी में सब्जी का उत्पादन करने वाले किसानों को जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग के बारे में कोई अधिक तकनीकी जानकारी नहीं है, लिहाजा दवाओं को बेतहाशा प्रयोग जल को प्रदूषित कर रहा है। इन विशेषज्ञों का मानना है कि उद्योगों का भी कुछ गंदा पानी स्वां नदी के जल में समायोजित होकर पानी को दूषित कर रहा है।
हैरानी यह है कि कि प्रत्येक वर्ष बाहरी राज्यों के सैकड़ों परिवार सब्जी का अधिक से अधिक उत्पादन लेने के लिए कई टन रसायनिक खाद का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। नदी के जलस्तर तक खाईयां खोदकर उनमें रसायनिक खाद का मिश्रण किया जा रहा है। बावजूद इसके पर्यावरण विभाग को नदी में प्रदूषण नजर नहीं आ रहा है। प्रदूषण नियंत्रण महकमे के अभियंता डा. श्रवण कुमार के मुताबिक स्वां नदी के जल के प्रदूषित होने की उनके पास कोई रिपोर्ट नहीं है, लेकिन ग्रामीण अब इस पानी को पशुओं के लिए भी जहरीला ही बता रहे हैं।
नंगड़ा के रोशन लाल, संतोषगढ़ के सुखदेव, आरएम शर्मा, झलेड़ा के रामकिशन, ओमप्रकाश व सतीश कुमार समेत कई लोगों ने माना है कि कुछ सालों से बाहरी राज्यों के लोगों द्वारा स्वां की भूमि में किया जा रहा कीटनाशक दवाइयों का अंधाधुंध प्रयोग नदी के साथ खतरनाक खेल से कम नहीं है। सोमभद्रा नाम की इस नदी के जल को जहां पवित्र माना जाता था, अब यहां ऐसी बात नहीं रही है। लोग इस नदी के जल को किसी पर्व पर ग्रहण भी करते थे और स्नान भी करते थे। लोगों में अब इस नदी के जल को लेकर इतना भय है कि इसे पीना तो दूर स्नान करने से भी कतराने लगे हैं। इन लोगों ने राज्य सरकार से स्वां की भूमि में हो रहे जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग पर रोक लगाने के अलावा रसायनिक खादों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
उधर, कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डा. अशोक चौबे का कहना है कि जरूरत से अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से भूमि की उपजाऊ क्षमता के अलावा वातावरण पर इसका बुरा असर पड़ सकता है।

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