जागरण सरोकार: जल संरक्षण

जागरण संवाद केंद्र, नारनौल
हरियाणा के दक्षिणी छोर पर राजस्थान की सीमा से सटा हुआ नारनौल का इलाका शुष्क, रेतीला और पथरीला क्षेत्र है। इसमें कृषि मानसून और नलकूपों पर निर्भर है। असामान्य मानसून के चलते यहां के नदी-नाले सूखे पडे़ है। इसकी वजह से कुओं के जलस्तर में काफी गिरावट आई है।
इस शुष्क जिले में सिंचाई के साधन मुहैया कराने के लिए सनं् 1952 में पांच लाख रुपए की लागत से राजस्थान की पहाड़ियों से बहकर आने वाले पानी के भंडारण के लिए नारनौल से तीन किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में नारनौल बांध का निर्माण किया गया था। यह बांध 1954 में तैयार हुआ और 1974 तक नारनौल क्षेत्र की कल्लर भूमि को उपजाऊ करने में सहायक हुआ। उस वक्त सरसों, चने और जौ की फसल होने से क्षेत्र का किसान लाभान्वित होने लगा था। मगर 1975 के बाद प्राकृतिक प्रकोप के कारण इस क्षेत्र में मानसून की बरसात में बेतहाशा कमी आई और राजस्थान की तरफ से आने वाले पानी का बहाव बंद हो गया। इस कारण बांध में पानी नहीं आ पाया। इसका प्रभाव इतना पड़ा कि नारनौल के आसपास क्षेत्रों का भूजल स्तर गिरना शुरू हो गया। जब बांध में पानी आता था तो क्षेत्र का भूजल स्तर चालीस फुट पर था। लेकिन पिछले दो दशकों से लगातार गिर रहे भूजल स्तर के कारण अब पानी खतरनाक सीमा तक नीचे जा चुका है।
नारनौल बांध के क्षेत्र में सात सौ एकड़ भूमि जौरासी की है। एक फैसले के मुताबिक नारनौल बांध के पानी को प्रतिवर्ष पहली नवंबर तक खाली कर दिया जाता था, ताकि जौरासी गांव के लोग अपनी रबी की फसल आसानी से कर सकें। पिछले दो दशकों से बांध खाली रहने के कारण यहां के लोग रबी और खरीफ की फसल अपने आप करते है। बाद में जवाहरलाल नेहरू नहर का निर्माण किया गया। यह नारनौल बांध के नजदीक से गुजरती है और नांगल चौधरी के गांवों में प्रवेश करती है। इस नहर में हरियाणा सरकार एक माह में कभी-कभार ही पानी छोड़ती है। सरकार के प्रयास इस क्षेत्र को सिंचित करने में कामयाब नहीं हुए। लोगों को पानी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है। गिरते भूजल स्तर के चलते अब यहां नलकूप भी नाकारा साबित होने लगे है। नारनौल बांध के असफल होने के बाद कृषि पैदावार बुरी तरह प्रभावित हुई है। नहर भी इस क्षेत्र के कुओं का जलस्तर ऊपर उठाने में कामयाब नहीं हुई।
पानी के मामले में दक्षिणी हरियाणा का यह क्षेत्र ग्रीष्मकाल में इतना संकटग्रस्त हो जाता है कि यहां पर लोगों के लिए नहीं, बल्कि पशुओं के लिए भी पीने का पानी मुहैया नहीं हो पाता है। नारनौल बांध इस नहर के बिलकुल साथ है, फिर भी पता नहीं प्रशासन इस बांध के सदुपयोग के लिए क्यों असमर्थ है। बरसात के मौसम में जब नहरी पानी काफी मात्रा में होता है तब इस बांध को भर दिया जाए तो इस शुष्क क्षेत्र के आसपास के कुओं का जलस्तर काफी हद तक ऊपर आ सकता है।
नारनौल बांध, जिसका निर्माण पचास साल पहले हुआ था, का सदुपयोग अगर मौजूदा सरकार इसमें नहरी पानी डालकर करे तो निश्चय ही इस क्षेत्र का कृषि उत्पादन बढे़गा। इस पिछडे़ जिले में न तो कोई उद्योग धंधे और न ही कोई बडे़ कारखाने। जिसमें हजार-पांच सौ लोगों को रोजगार मिल रहा हो। अगर सरकार इस नहर के पानी से नारनौल बांध को भरना शुरू कर दे तो अवश्य कृषि पैदावार में इजाफा हो सकता है।
इसी तरह नारनौल-सिंघाना मार्ग पर दोहान नदी पर बना हमीदपुर बांध भी नदी में पानी न आने की वजह से मुद्दत से सूखा पड़ा हुआ है। इस बांध के भरने से दोहान पच्चीसी के सभी गांवों में भूजल का पुनर्भरण नियमित रूप से होता रहता था। राजस्थान क्षेत्र में दोहान नदी पर जगह-जगह चैक डैम बना लिए जाने व निरंतर गिरते बरसात के औसत की वजह से इस बांध में भी दशकों से पानी नहीं आ रहा है। हमीदपुर बांध को नहरी पानी से भरवाने के लिए दोहान पच्चीसी के 25 गांवों के लोग वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनावों का बहिष्कार तक कर चुके है। चुनावी मौके पर इस बांध में नहरी पानी डालने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा कई तरह के वादे करने के साथ बांध में पानी डालने का दिखावा भी किया गया, मगर हमीदपुर बांध आज भी पहले की तरह सूखा पड़ा हुआ है। क्षेत्र से होकर गुजरने वाली कृष्णावती नदी पर भी राजस्थान क्षेत्र में चैक डैम बना लिए जाने की वजह से किसी समय चौमासे में पूरे चार महीने बहने वाली यह नदी भी मुद्दत से सूखी पड़ी है। कृष्णावती नदी जब चार महीने बहा करती थी तो लगभग पूरे जिले में भूजल को रिचार्ज करने में अहम भूमिका निभाती थी। इस तरह देखा जाए तो राजस्थान में उक्त दोनों नदियों पर कई बांध बना लिए जाने से ही यहां का भूजल स्तर खतरनाक सीमा तक गिर चुका है। इसके बावजूद हरियाणा सरकार इस संबंध में राजस्थान सरकार से अपने हक का पानी लेने की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है।

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