सूखती 'सदानीरा' के सौभाग्य के लिए समागम

आत्मदीप
नर्मदापुरम (बांद्राभान), कैसे लौटाया जा सकता है नदियों को उनसे छीना गया जीवन? नदी संसार के विविध पक्षों पर विचार और काम करने वाले देश-विदेश के करीब 500 सुधीजन यहां नदी किनारे बैठकर इसके उपाय खोजने और सुझाने में जुट गए हैं। यह जमघट होशंगाबाद जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर नर्मदा और तवा नदियों के पवित्र संगम तट पर लगा है। 'नर्मदा समग्र' न्यास ने यहां भारत का पहला अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव आयोजित किया है। शनिवार से शुरू हुआ यह वैचारिक समागम सोमवार तक चलेगा। इसके लिए पवित्र नर्मदा मैया के रेतीले किनरे पर नर्मदापुरम बसाया गया है। इसमें देश की प्रमुख नदियों के नाम पर अलग-अलग नगर बनाए गए हैं।
सभागार भी नद जल के रंग (एक्वाकलर) का और उसका नदी की ओर का हिस्सा पारदर्शी बनाया गया है। इसमें बैठकर नदी के सामने नदियों की बात करने वालों की चिंता का मुख्य विषय यह है कि कैसे अकाल मौत का शिकार हो रही नदियों को पुनर्जीवन दिया जाए। नदियों में घटता पानी कैसे बढ़ाया जाए। नद जल में बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम कैसे हो। नदियों के किनारे, जमीन और जलग्रहण क्षेत्र को कैसे बचाया जाए। नदियों से जुड़े जन-जीवन, संस्कृति, खेती, जैव विविधता की रक्षा कैसे की जाए। शासन और समाज को नदी का अर्थशास्त्र कैसे समझाया जाए। इन सब महत्वपूर्ण कामों में सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं और समाज की भूमिका क्या हो। तीन दिनों तक चलने वाले विभिन्न सत्रों में इस सब पर व्यापक मंथन होगा।
नर्मदा समग्र के न्यासी, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित मध्य प्रदेश जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष और चिंतक, लेखक अनिल माधव दवे कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव सिर्फ संगोष्ठी नहीं है। इसमें नदियों पर चिंतन और काम करने वालों के साथ नदियों से जुड़े गांव वाले भी जुटे हैं। वे आठ समूहों में बंट कर नदियों से जुड़े 12 विषयों पर अलग-अलग चर्चा करेंगे। उसके निष्कर्षों के आधार पर रपट तो तैयार होती ही, कार्य योजना भी बनेगी। उस पर अमल की शुरुआतभी होगी। सबसे पहले देश की पांचवी सबसे बड़ी नदी और 7 पवित्र नदियों में शुमार नर्मदा में जल आवक बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। केंद्रीय जल आयोग की रपट के मुताबिक मध्य प्रदेश में अमरकंटक से निकल कर गुजरात में खंभात की खाड़ी में गिरने वाली 1,312 किलोमीटर लंबी नर्मदा में बीते डेढ़ दशक में पानी की आवक 50 फीसद घट गई है। नदियों को बचाने की अहम जरूरत शासन की समझ में इसलिए नहीं आती, क्योंकि यह समाज की समझ में नहीं आती।
जब इस जरूरत को समाज समझ लेगा, तब यह सरकार की समझ में भी आ जाएगी। इसलिए हम समाज को समझाने के कदम उठाने जा रहे है।
प्रख्यात पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट का भी कहना है कि हमारे दोश् में अभी तक पर्यावरण और नदियों की बदहाली राजनेताओं के सरोकार का विषय नहीं बन पाया है। वैज्ञानिक अपने शोध और आम लोग अपने अनुभव व वेदना के आधार पर जिस विकास को पर्यावरण के लिए घातक बताते हैं, उसे ही क्रियान्वित किया जाता है। देश को 63 फीसद पानी देने वाली गंगा, सिंधु व ब्रह्मपुत्र नदियां ग्लेशियरों के पिघलने से संकट में घिर गई हे। तेजी से बढ़ते उद्योग, रासायनिक खेती, शहरी गंदगी अतिक्रमण और जल ग्रहण क्षेत्र के जंगल कटने से नदियां सिकुड़ती, सूखती और मरती जा रही हैं। आज विश्व की 225 नदी घाटियों पर खतरा मंडरा रहा है। सरकारें और समाज मूकदर्शक बनकर नदियों को मरते देख रहे हैं।
नदी महोत्सव का शुभारंभ करने आए नर्मदा किनारे पले-बढ़े मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना था कि नदियों के संरक्षण व संवर्ध्दन के सरकारी अभियान समाज के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकते। शासन के अभियान से समाज का जुड़ना जरूरी है। बेहतर यह होगा कि ऐसे अभियानों में समाज आगे चले और सरकार उसके सहयोगी की भूमिका में पीछे चले। इस आयोजन के निष्कर्षों को अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार चरणबध्द कार्यक्रम बनाएगी।
भारत में अभी हालात यह हैं कि नदियों के संरक्षण, शुध्दिकरण की किसी भी सरकारी योजना में तटवर्ती लोगों को भागीदार नहीं बनाया गया है। गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े जाने माने पर्यावरणविद जल कार्यकर्ता व लेखक अनुपम मिश्र ने 'नद्य: रक्षति रक्षत:' का मंत्र देते हुए नदियों पर काम करने वाले विभिन्न विचारधाराओं के कार्यकर्ताओं से एक मंच पर आने की अपील की। उन्होंने इस पर पीड़ा जताई कि मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते सैकड़ों- हजारों सालों से बहती आ रही नदियों को भी दासी बना लिया है। नदी महोत्सव के सूत्रधार अनिल दवे ने कहा- 'नदी हमारे लिए जीवनदायिनी मां है, जीवनमान इकाई है। उसे टुकड़ों में नहीं, समग्र रूप में देखा जाना चाहिए।
नर्मदा नदी के अध्येता व लेखक और नर्मदा समग्र न्यास के अध्यक्ष अमृत लाल बेगड़ का कहना था कि जल ईश्वर स्वरूप है। वह सर्वव्यापी बादल के रूप में अवतरित होकर धरती पर अपनी रास रचाता है। विश्व में पानी का कोई विकल्प नहीं है। आज बढ़ते उपभोगवाद के कारण नदियों का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा है। गंगा- यमुना जैसी महान पवित्र नदियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत हैं। नदी से सबको पानी तो चाहिए पर नदी में पानी लाने, उसे बढ़ाने की चिंता न के बराबर है। इस मौके पर कई विशेषज्ञ मौजूद थे। उनमें डॉ. एवेल हरनाडाज व इरमा (वेनेज्यूला), डा. एलेटा मैकन (कनाडा), डा. मेन्यूला (आस्ट्रिया), रैनेव (जर्मनी), इनग्रिड जानसन (चिली), केरोला (पेरू), डा. मेनफेड जैक (आस्ट्रेलिया), डा. सुबोध शर्मा (नेपाल ), जहीर खान (बांग्लादेश), भारत के मत्स्य विशेषज्ञ डा. जेपी दुबे, लिम्नोजिस्ट डा. पीके विलसरे, आईआईटी रूड़की के डा. यूसी चौबे व आईआईएम इंदौर के डा. एस वेंकट प्रमुख हैं। उनके अलावा देश के प्रमुख कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित जल संरक्षण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह, नदी विशेषज्ञ राधा भट्ट, दीनदयाल शोध संस्थान, नई दिल्ली के सचिव भरत पाठक, मप्र राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री डा. सोमपाल शास्त्री, मप्र विज्ञान व प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक डा. महेश शर्मा, चिंतक गोविंदाचार्य, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल, संस्कृतिकर्मी पूर्व सांसद नीतिश भारद्वाज (टीवी धारावाहिक महाभारत के 'कृष्ण'), पूर्व शिक्षा मंत्री राजकुमार पटेल, मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अध्यक्ष व आयोजन समिति के संयोजक डा. एसपी गौतम, मप्र जन अभियान परिषद के कार्यकारी निदेशक और खंडवा जिला पंचायत के सीईओ के नाते जल संरक्षण का उल्लेखनीय काम कर चुके राजेश गुप्ता भी मौजूद थे।
मां नर्मदा की प्रतिमा के आगे दीप प्रज्ज्वलित कर नर्मदा की 41 सहायक नदियों का जल अर्पित कर और नर्मदा स्तुति का गान कर नदी महोत्सव का श्रीगणेश किया गया।

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