महाराष्ट्र के चंद्रपुर शहर में पानी वितरण निजी हाथों में

पूंजीवाद की प्रकृति की जरूरत यह होती है कि वह उपभोगवाद को और बढ़ाये। उपभोग इसकी आवश्यकता होती है। एक दिन 'द टाइम्स आफ इंडिया' के संपादकीय की मुख्य पंक्तियां 'उपभोग और आडंबर थी' थी। उसमें लिखा गया था कि यह अच्छी बात है कि आप अमीर किसान से कर मत लो ताकि वह ज्यादा से ज्यादा गाड़िया ले सके। यह टाइम्स आफ इंडिया की सलाह थी। इस सलाह से हमारे वाणिज्य मंत्री कमलनाथ सहमत हैं। इस साल 6 जनवरी को 'हिन्दुस्तान टाइम्स' ने एक विलासप्रियता सम्मेलन (लक्जरी कांफ्रेंस) करवाया। उस सम्मेलन में कमलनाथ ने कहा- 'विलासप्रियता केवल अमीरों की बात नहीं बल्कि यह गरीबों के लिए भी है। आप जितना ज्यादा शैम्पेन पियेंगे उतना ज्यादा गरीबों को काम मिलेगा।' हम सभी इसका मुकाबला करेंगे? इसके लिए हमारी रणनीति क्या होगी? आप ध्यान केंद्रित कीजिए क्योंकि यह साल और अगला साल विश्व बैंक और आई. एम. एफ. के लिए भारत में निजीकरण के ख्याल से विशेष वर्ष रहे हैं। यह प्रक्रिया बहुत पहले ही शुरू हो चुकी है।
निजीकरण और हमारी रणनीति :
महाराष्ट्र के चंद्रपुर शहर में पानी वितरण निजी हाथों में चला गया है। पानी के निजीकरण के परिणामस्वरूप यह हुआ कि सारा पानी गरीब इलाकों से अमीरों के इलाकों में जाने लगा। क्योंकि गरीब आदमी पानी का भुगतान नहीं कर सकता है। महाराष्ट्र ने यह काम पायलट प्रोजेक्ट के तहत लिया है। पानी वितरण का निजीकरण इस धरती के अंतिम संसाधन के रूप में बचा है जिसका निजीकरण होना अब तक शेष था। अगर आपको याद हो कि 2001 में सरकार ने यह घोषणा की थी कि 'काम के बदले अनाज' कार्यक्रम के तहत हम लोग गोल्फ मैदान बनवायेंगे। गोल्फ का मैदा काम के लिए अनाज कार्यक्रम के साथ! प्रतिवर्ष एक गोल्फ के मैदान में 18 लाख लीटर पानी की खपत होती है। राजस्थान के गांव को अगर तीन महीने छोड़ दिया जाए तो भी 18 लाख लीटर पानी इकट्ठा नहीं हो पायेगा। पहली रणनीति तो यही होनी चाहिए कि मूलभूत संसाधन ओर उपयोग के निजीकरण मत होने दीजिए। पहले ही पानी के निजीकरण को लेकर वे कुछ जगहों पर सफल हो चुके हैं। क्या आप जानते हैं यह कितना बुरा होगा। यहां तक कि वसंत विहार और चाणक्यपुरी में रहने वाले अमीर लोग भी पानी के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। कल्पना कीजिए कि गरीब लोग क्या करेंगे। पानी के निजीकरण के सवाल पर आप एक बड़ा मंच तैयार कर सकते हैं। किसान, गरीब और भूमिहीन मजदूर लोग समाप्त हो चुके हैं। अगर पानी निजी हाथों में एक बार चला गया तो पानी आम लोगों की पहुंच से बाहर हो जाएगा। अत: पानी के निजीकरण पर एक लंबी लड़ाई होनी चाहिए। हम पानी के निजीकरण को इजाजत नहीं दे सकते हैं। स्वास्थ्य के निजीकरण का मुद्दा पहले ही हमसे दूर जा चुका है लेकिन जो हमारे पास शेष है वह सार्वजनिक हाथों में ही रहे, इसके लिए हमें लड़ना होगा। दूसरी रणनीति यह होनी चाहिए कि आप स्थानीय मुद्दों और स्थानीय समस्याओं की उपेक्षा नहीं करे। भूमि की समस्या पर इस देश में पिछले पचास वर्षों में कोई चर्चा नहीं हुई। यह मुद्दा अभी भी अधूरा और शेष है। हमारे देश में भूमि पर एकाधिकार, संसाधनों के अधिकार को लेकर बेईमानी, जंगल पर किसका अधिकार होगा आदि आज तक ज्वलंत समस्या के रूप में बरकरार हैं। इस पर बात चलानी होगी। ध्रुवीकरण को सतही तौर पर दोषी ठहराने मात्र से कुछ नहीं होने वाला है। दूसरी रणनीति यह हो कि हमारे देश के मूलभूत संसाधनों के स्वामित्व नियंत्रण के क्या अधिकार हैं, इसकी स्पष्टता के सवाल को लेकर लड़ना होगा। तीसरी रणनीति ध्रुवीय स्तर पर बहुत नियत बिन्दुओं को लेकर ही तैयार किया जाना चाहिए। आप जानते हैं सरकार बुरी तरह से सब कुछ बेच चुकी है। यहा तक कि विश्व व्यापार संघ के अंतर्गत जो भी प्रावधान मौजूद थे उसका उपयोग हम नहीं कर पाये। उदाहरण के तौर पर दुनिया में बाजार की मुक्त व्यवस्था के कारण आज हम सूती से बहुत जुड़ गए हैं। भारतीय सूती आप आयात और निर्यात बगैर किसी शुल्क के कर सकते हैं। निजी व्यापारी यहां आ सकते हैं। उन्होंने सार्वजनिक उपलब्धता केंद्रों को बंद करके उसकी जगह बहुत सारे निजी व्यापार केंद्र खोल दिये हैं। यवतमाल में आज का सबसे बड़ा कपास का खरीददार बिरला एग्रो है। अब छोटै व्यापारी खरीदार नहीं रहे। हमने न्यूनतम कर और टैरिफ की व्यवस्था लागू कर दी इसलिए अप आके देशी उत्पादों ाके समाप्त कर दिया जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने यह व्यवस्था लागू की थी। अगर आपको याद हो उस समय कृषि के उत्पाद पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगाया गया था और आयात शुल्क हटा दिया गया था। इसलिए बिल क्लिंटन भारत आये थे। अब जॉर्ज बुश आये। मैं समझता हूं कि यह भी राष्ट्रीय बहस का एक मुद्दा है कि आयात से प्रतिबंध क्यों हटा दिया गया? क्या आयात हो, इस पर बहस होनी चाहिए। पंजाब और हरियाणा के किसान के गेहूं की दर से सरकार गेहूं 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर आयात कर रही है। सरकार गेहूं उस समय बाहर के देशों से आयात कर रही है जब पंजाब में गेहूं की नई फसल तैयार होकर बाजार में आयी है। इन नीतियों के चलते पंजाब के किसानों के उत्पाद का मूल्य गिर गया। सरकार आस्ट्रेलिया को गेहूं के लिए 50 प्रतिशत अधिक मूल्य देने को तैयार है। अत: इन तथ्यों के आधार पर भारत को अपने उत्पाद को विदेश में सस्ते दरों पर बेचने के अधिकार और कृषि उत्पादों पर मात्रात्मक अवरोध के अधिकारों की समीक्षा करनी चाहिए। चौथी रणनीति यह होनी चाहिए कि हम अपने स्वार्थों को थोड़ा कम करें और राष्ट्र के हित में एक मंच बनायें। पिछले दस सालों में हमने क्या किया है? हम लोग एक मोर्चा तैयार करें फिर संयुक्त राज्य से निजी व्यापारों में कटौती करें और दूसरे देशों पर भी कुछ प्रतिबंध लगायें। यह हम लोगों ने बहुत सारे मुद्दों पर किया है। अगर यह सरकारी स्तर पर नहीं यिका जा सकेगा तो इसे समाज के स्तर पर करना होगा। आप जानते हैं कि भारत के लोगों ने 2004 के चुनाव में ऐसा कर दिखाया है। उरूग्वे के लोगों ने निजीकरण पर रोक लगाने के लिए देश के संविधान को ही बदल डाला। एक आदमी बिजली के बगैर रह सकता है, परन्तु पानी के बगैर कल्पना भी बेमानी होगी। सके लिए लड़ाई शुरू होने जा रही है और यह होकर रहेगी। महाराष्ट्र में पहले ही एक कानून लागू हो चुका है। महाराष्ट्र जल संसाधन नियंत्रण प्राधिकरण पूरे तौर पर पानी से समाज के मालिकाना को समाप्त कर देगा। इससे सार्वजनिक जल निजी हाथों में चला जाएगा। आपकी अपनी लड़ाई किस बात के लिए है देख सकते हैं। अब अंतिम बात कहना चाहूं कि आप अपनी रणनीति को चुन सकते हैं। आप अपनी रणनीति तय कर सकते हैं। लेकिन आप गैर राजनीतिक होने का चयन नहीं कर सकते हैं। आपके पास कोई और विकल्प नहीं है।
स्वतंत्र मिश्र

Hindi India Water Portal

Issues