अच्छा पानी-गंदा कोला?

साभार - तहलका हिन्दी
टेरी की एक रिपोर्ट कहती है कि कोका कोला जिस कच्चे पानी का इस्तेमाल करता है वो बिल्कुल साफ है...मगर...
पिछले हफ्ते जब द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) ने कोका कोला को पाक-साफ होने का प्रमाणपत्र दिया तो मीडिया ने बड़ी तत्परता से इस ख़बर को प्रसारित किया। दरअसल टेरी को कोला बनाने के लिए उपयोग होने वाले पानी में किसी तरह के कीटनाशक नहीं मिले हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने इस पर प्रतिक्रिया दी, "टेरी ने उस अंतिम उत्पाद की जांच ही नहीं की जिसे हम पीते हैं।" सीएसई ने 2003 और 2006 में कोला की बोतलों की जांच में पाया था कि इनमें कीटनाशकों की मात्रा सुरक्षित सीमा से कई गुना ज्यादा थी। टेरी की रिपोर्ट के आते ही मिशीगन यूनिवर्सिटी के वाइस प्रेसीडेंट और सीएफओ टिम स्लॉटो ने कोका कोला के वाइस प्रेसीडेंट से संतुष्टि जताई और साफ किया कि “मिशीगन यूनिवर्सिटी कोका कोला के साथ व्यापार जारी रखेगी”। आशा जताई जा रही है कि अब दुविधा में पड़े कोला प्रेमी विश्व भर में कोका कोला और उसके उत्पादों के प्रति भरोसा जताना शुरू कर देंगे।
क्या ये बात कोई मायने रखती है कि शीतल पेय बनाने में उपयोग होने वाले पानी में कोई कीटनाशक नहीं है? अगर ये काफी था तो फिर सीएसई और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एनके गांगुली जांच समिति की रिपोर्ट में शीतल पेयों में कीटनाशकों की मात्रा कैसे पाई गई? टेरी की इस जांच से अब शीतल पेय की कंपनियां को पानी की गुणवत्ता के साथ अंतिम उत्पाद की तुलना न करने की वकालत करने के लिए एक ठोस आधार मिल सकता है। जिसकी वकालत ये कंपनियां हमेशा से करती रही हैं।
टेरी कह सकती थी, "जांच की शर्तों में इसका उल्लेख ही नहीं था।" लेकिन मिशीगन यूनिवर्सिटी को भारत में कोला से क्या लेना-देना? क्या भारत निर्मित कोला उत्पादों की आपूर्ति अब मिशीगन यूनिवर्सिटी को होगी? टेरी की रिपोर्ट का आधार क्या है?
सवाल उठता है कि मिशीगन यूनिवर्सिटी को भारत में कोला से क्या लेना-देना? क्या भारत निर्मित कोला उत्पादों की आपूर्ति अब मिशीगन यूनिवर्सिटी को होगी? टेरी की रिपोर्ट का आधार क्या है?
टेरी और सीएसई के कुछ साल पहले के आंकड़ो पर नज़र डालें तो या तो कोला बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी की गुणवत्ता पिछले कुछ सालों में सुधर गई है, या फिर उत्पाद प्रक्रिया में कीटनाशकों की मात्रा बढ़ जाती है जिसमें 3.8 लीटर पानी से एक लीटर शीतल पेय तैयार होता है।
टेरी का अध्ययन सीएसई के उन निष्कर्षों का तो कोई जवाब देता ही नहीं जिसमें कोक के उत्पादों में कीटनाशक मिलने की बात कही गई थी ये उन परेशानियों पर भी कोई रोशनी नहीं डालता जिनका सामना देश भर में फैले कोक के 49 संयत्र कर रहे हैं- विशेषकर प्लाचीमाड़ा (केरल), मेंहदीगंज (यूपी) या काला डेरा (राजस्थान) जहां इसे स्थानीय लोगों का विरोध झेलना पड़ रहा हैं। कोक का प्लाचीमाड़ा संयत्र 2004 से ही बंद है। इसके अलावा अध्ययन में भू-गर्भीय जल या फिर प्रभावित ज़मीन और लोगों की चिंताओं के बारे में भी कोई ज़िक्र नहीं है।
ऐसा लगता है कि टेरी का अध्ययन कोका कोला के प्रति बाज़ार का विश्वास दुबारा से हासिल करने की एक कोशिश है, विशेषकर अमेरिकी बाज़ार का। अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा में छात्र कोका कोला द्वारा भारत और कोलंबिया में किए जा रहे दोयम दर्जे के बर्ताव को समाप्त करने का दबाव बना रहे हैं। अमेरिका के 20 से ज्यादा कॉलेज और विश्वविद्यालयों ने कोका कोला के खिलाफ क़दम उठाए हैं और कम से कम 30 कॉलेजों और यूनिवर्सिटी परिसरों में कोका कोला को प्रतिबंधित करने का सक्रिय अभियान जारी है।
छात्र संगठनों के अभियान ने यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन पर अस्थायी तौर पर जनवरी 2006 से कोका कोला और इसके उत्पादों की खरीद रोकने का दबाव डाला। ये अमेरिका का दसवां विश्वविद्यालय है जिसने अपने परिसर में कोका कोला पर रोक लगाई थी। मिशीगन और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी अमेरिका में कोका कोला के सबसे बड़े शिक्षा क्षेत्र के बाज़ार थे। अकेले मिशीगन विश्वविद्यालय के साथ कोक का साल 2004 का ठेका 13 लाख डॉलर का था। प्रतिबंधों की बयार अमेरिका के बाहर भी बहने लगी जब कनाडा की ग्वेल्फ यूनिवर्सिटी और इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी ने अपने यहां से कोका कोला उत्पादों को ठोकर मार दी। छात्रों की प्रतिक्रिया कोका कोला द्वारा मानाधिकारों का हनन और अवैध पर्यावरणीय गतिविधियां--विशेषकर जैविक कचरे का अव्यवस्थित निपटारा, भू-गर्भीय जलस्रोतों को प्रदूषित करना, जल संसाधनों को समाप्त करना और भारत में बनने वाले उत्पादों में कीटनाशकों के उपयोग से उपजी थी। इसके अलावा कोलंबिया में श्रमिकों का शोषण भी इसकी वजह बना। लेकिन कोका कोला लगातार इन आरोपों को नकारता रहा है।
टेरी की रिपोर्ट कोका कोला को कुछ बिंदुओं पर अप्रत्यक्ष रूप से कटघरे में भी खड़ा कर देती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी ने बॉटलिंग संयंत्र के आस पास पानी की उपलब्धता का आंकलन सिर्फ अपने व्यापार को जारी रखने के उद्देश्य से किया है इसमें पर्यावरण, जल उपलब्धता, गुणवत्ता या फिर सामुदायिक हितों का ख्याल नहीं रखा गया है। उसने इसका परीक्षण करने की भी कोशिश नहीं की कि कोका कोला की गतिविधियां भू-गर्भीय जल के प्रदूषण के पीछे का कोई कारण भी हो सकती हैं। स्थानीय लोगों के विचार जानने की कोशिश करने पर पता चला कि ज्यादातर जगहों पर संयंत्र की शुरुआत के बाद से भू-गर्भीय जल की गुणवत्ता और स्तर में भयावह गिरावट आई है।
ऐसा लगता है कि टेरी का अध्ययन कोका कोला के प्रति बाज़ार का विश्वास दुबारा से हासिल करने की एक कोशिश है, विशेषकर अमेरिकी बाज़ार का। अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा में छात्र कोका कोला द्वारा भारत और कोलंबिया में किए जा रहे दोयम दर्जे के बर्ताव को समाप्त करने का दबाव बना रहे हैं।
कोका कोला के इस राग, कि वो इलाके में उपयोग होने वाले पानी का एक छोटा से हिस्से का ही उपयोग करता हैं, के पीछे की सच्चाई ये है कि कंपनी इलाके में सबसे बड़ी जल शोषक है। टेरी ने कोका कोला प्लांट द्वारा इतनी बड़ी मात्रा में जल दोहन से भू-गर्भीय जल पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों की जांच भी नहीं की। आश्चर्यजनक रूप से इसने कोका कोला जैसे गैरज़रूरी उत्पाद में पानी के उपयोग की तुलना कृषि जैसे और दूसरे ज़रूरी उद्योगो द्वारा उपयोग किए जाने वाले पानी से की है।
कोका कोला ने टेरी को खुद कई अहम दस्तावेज़ क़ानूनी और रणनीतिक गोपनीयता की दुहाई देकर दिखाने से इनकार कर दिया। हालांकि इन दस्तावेज़ों का न दिखाया जाना उनके बीच हुए समझौते का हिस्सा थे। मगर इस स्थिति में टेरी इस जांच के लिए आखिर तैयार ही क्यों हुई?
कोका कोला इंडिया लिमिटेड 2001-02 में टेरी के सालाना राजस्व के 0.3 फीसदी का प्रायोजक था, 2002-03 में ये 0.08 फीसदी हो गया और 2004-05 में कोक टेरी के सालाना राजस्व के 0.05 फीसदी का प्रायोजक था। टेरी की रिपोर्ट इस लिहाज़ से भी संदेह जगाती है।
जिन छह संयंत्रों को जांच के लिए चुना गया इनमें से दो कालाडेरा और मेंहदीगंज का चुनाव सामुदायिक विरोध का अध्ययन करने के लिए किया गया था। जबकि इनसे कहीं ज्यादा चर्चित प्लाचीमाड़ा संयंत्र को ये कहकर किनारे कर दिया गया कि ये बंद पड़ा है। टेरी ने उपयोग में आने वाले कच्चे पानी, परिशोधन संयंत्रों से आने वाले शोधित और गंदे पानी का विश्लेषण किया। इसे कच्चे पानी और शोधित पानी में कोई कीटनाशक नहीं मिला जिसका उपयोग पेय बनाने में होता है। लेकिन छह में से चार संयत्रों में उपयोग होने वाले कच्चे पानी की तुलना भारतीय पेयजल मानकों (IS 10500: 1991, BIIS) के साथ करने पर पता चला कि इसमें क्षारीयता बेहद ज्यादा थी। इन संयंत्रों के कच्चे पानी के कुछ अन्य मानक भी सामान्य की अपेक्षा ज़्यादा पाए गए।
टेरी ने क्षेत्रीय भू-गर्भीय जल की गुणवत्ता की तुलना कोका कोला संयंत्र में प्रयोग होने वाले पानी से करने की कोई कोशिश नहीं की सिर्फ इसकी ज़रूरत भर बता दी। टेरी ने सभी छह शहरों में स्थानीय लोगों के विचार भी दर्ज किए और ये पाया कि "लोग भू-गर्भीय जल संसाधनों के विस्तृत तकनीकी आंकलन के नतीजों से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं।" क्या ये बात संकेत नहीं देती कि स्थानीय लोगों के विचार समस्या को लेकर भी सही ही होंगे? ये बात कोका कोला के उस सुर के भी खिलाफ थी कि ये सारे आरोप दुर्भावना से प्रेरित हैं।
टेरी ने स्वीकारा है कि हिस्सेदारों ने अपने बयान में पानी के अनियंत्रित दोहन पर चिंता जताई है विशेषकर कालाडेरा के मामले में। और स्थानीय लोग "मानते हैं कि कोका कोला के पास गहरे बोरवेल हैं जो सामान्य सिंचाई के बोरवेल के उलट भू-गर्भीय जल की तह से लगातार पानी का दोहन करते रहते हैं। सामान्य बोरवेल इनकी तुलना में उथले होते हैं और इन्हें विद्युत संकट का भी सामना करना पड़ता है।" अध्ययन में गांव में कच्चे पानी की गुणवत्ता की समस्याएं भी सामने आईं। जबकि टेरी ने अपनी रिपोर्ट ये कह कर समेट दी कि, "संयंत्र सामान्य तौर पर सरकार द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करते हैं," पर क्या सरकारी मानक हर चीज़ के लिए निर्धारित हैं या नहीं और क्या वो सही हैं इस पर वो चुप्पी साध लेती हैं। ज़ाहिर है टेरी की रिपोर्ट जवाब कम और सवाल ज्यादा खड़े करती है।
सी आर बिजॉय

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