खेलों के लिए अस्तित्व खोती नदी

Pramod Bhargaw

जिस यमुना नदी के कूलों (किनारों), जल व तल की सतहों पर खेल खेलते हुए द्वापर के कृष्ण जग को खिलाने के लिए खिलाड़ी बन जग प्रसिध्द हुए और यमुना की अस्मिता पर आंच भी नहीं आने दी। बल्कि यमुना को प्रदूषण-मुक्त करने के लिए खेल-खेल में प्रदूषण रूपी कालिया नाग को यमुना से बेदखल किया। वही यमुना खेलों के कारण अस्तित्व से जूझ रही है। नई दिल्ली में 2010 में सम्पन्न होने जा रहे राष्ट्रमंडल खेलों के लिए यमुना के किनारे पाटकर सीमेंट-कांक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। इन निर्माणों से नदी के वजूद को ही खतरा पैदा नहीं होगा, बल्कि जल सोखने का क्षेत्र सिमट जाने के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सतह के नीचे जो भू-जल के प्राकृतिक भण्डार हैं उनकी पुनर्भरण की प्राकृतिक प्रक्रिया भी बाधित हो जाएगी और दिल्ली को कालांतर में पेयजल के जबरदस्त संकट से जूझना होगा? लिहाजा अदूरदर्शिता पूर्ण निर्णय लेकर खेल परिसरों के लिए यमुना को संकीर्ण दायरे में नहीं समेटना चाहिए? भारत के लिए यमुना केवल एक नदी न होकर संस्कृति है। जो उत्तरांचल, हिमाचल, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली राज्यों के लिए जीवनदायी जल प्रदाय करने का प्रमुख आधार बनी हुई है। करोड़ों लोगों का सिंचाई, उद्योग और पेयजल मुहैया कराने के कारण यह नदी जीविकोपार्जन का भी सबसे बड़ा साधन है। लोक संस्कृति, लोकगीत और पौराणिक आख्यानों और क्षेपक दृष्टांतों व गाथाओं में रची-बसी इस प्रकृति की देन को हानि पहुंचती है तो यह नदी भी मिथक और अतीत का संशयपूर्ण हिस्सा भर रहकर सरस्वती की तरह विलुप्त हो जाएगी।

राष्ट्रमंडल खेलों के लिए यमुना के जिन तटों पर खेल गांव निर्माणाधीन हैं, उसके अंतर्गत 8500 खिलाड़ियों के आवास हेतु 4500 कमरों की पंचतारा इमारतें, होटल, मनोरंजन केन्द्र, हेलिपेड, मेट्रोडिपो, मॉल और खेल प्रशाल बनाए जा रहे हैं। इन विकास परियोजनाओं के बहाने यमुना का तट 47 किलोमीटर संकीर्ण (छोटा) हो जाएगा। जो दिल्ली में बहने वाली यमुना का आधा हिस्सा है। इन कारणों से यमुना जल के बहाव में बाधा उत्पन्न होगी। जिसके चलते प्रदूषण बढ़ेगा और भू-जल भण्डारों में पुनर्भरण की प्रक्रिया अवरूध्द होगी। ये निर्माण कार्य उन सब्जी उगाने वाले लघु कृषकों और झुग्गी-झोपड़ियों वालों को उजाड़कर किए जा रहे हैं जिनकी रोजी-रोटी यमुना के इन्हीं मैदानी तटों से चलती है। निर्माण कार्यों के आड़े आने वाले सैकड़ों पेड़ों की भी बलि चढ़ाई जा रही है। जबकि स्वाभाविक तौर से भी पर्यावरण व आसपास की जलवायु यथावत बनाए रखने के लिए जंगल और पेड़ों की जरूरत होती है। खेल गांव के पहले भी विशाल 'अक्षरधाम' मंदिर के निर्माण के लिए 58 एकड़ यमुना के तटों से लघु कृषकों को उनकी जीविकोपार्जन के साधनों की परवाह किए बिना ही उजाड़ा जाकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया? मौजूदा हालातों में 22 किलोमीटर लंबे नाले में कमोवेश तब्दील हो चुकी यमुना में तमाम चेतावनियों के बावजूद प्रतिदिन 3296 मिलियन गैलन लीटर गंदा पानी और औद्योगिक अवशेष विभिन्न नालों से उड़ेला और 5600 कि.मी. लंबी सीवर लाइनों से मल-मूत्र घोला जा रहा है। हालांकि 17 स्थलों पर 30 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट कार्यरत हैं, लेकिन उनकी गंदे मल को स्वच्छ जल में परिवर्तन करने की दक्षता संदिग्ध है। जबकि पानी स्वच्छ करके ही यमुना में छोड़े जाने की पहली शर्त होनी चाहिए? हालांकि यमुना को प्रदूषण मुक्त और शुध्दिकरण किए जाने के बहाने 1200 करोड़ रुपए खर्च किए जाने के बावजूद नतीजा शून्य ही रहा है। राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन से पहले यमुना की साफ-सफाई के नाम पर 3150 करोड़ रुपए का एक और प्रस्ताव दिल्ली सरकार ने केन्द्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया हुआ है जिसके तहत तीन बड़े नालों नजफगढ़, शाहदरा और एक सहायक नाले के साथ 115 कि.मी. लंबी सीवर लाइन बिछाई जाने, सीवर ट्रीटमेंट सर्वत्र और पंपिंग स्टेशन बनाए जाने प्रस्तावित हैं। अब जरा दिल्ली की जल आपूर्ति में 40 प्रतिशत का योग देने वाली यमुना और इसके दो से पांच कि.मी. चौड़े तटों पर होने वाले जल भराव से विभिन्न भू-जल भण्डारों के पुनर्भरण के महत्व का आंकलन करें? मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र सिंह का कहना है कि दिल्ली दो हिस्सों में विभाजित है। एक राष्ट्रपति भवन, रायसीना हिल्स और अरावली के मुहाने वाला क्षेत्र है, जिसकी प्राचीन पहचान खाण्डवप्रस्थ के रूप में है। दूसरा हिस्सा इन्द्रप्रस्थ के रूप में है जिससे यमुना का पुनर्भरण होता है। यही वह क्षेत्र है, जहां खेलगांव प्रस्तावित है। दरअसल विकासशील देशों में उदारवादी भू-मण्डलीकरण के चलते शहरीकरण, औद्योगीकरण और प्रौद्योगिकरण के कारण जो दबाव महानगरों पर बढ़ा है, उसके सबसे ज्यादा दुष्परिणाम गांव, कस्बों एवं नगरों की आबादी को भोगने पड़ रहे हैं। क्योंकि इस विकास का लाभ उठानेवाले लोग तो 20 प्रतिशत हैं लेकिन हानि उन 80 प्रतिशत लोगों को उठानी पड़ रही है जो प्रकृति की देन जल, जंगल और जमीन का सीमित उपभोग करते हुए अपनी गाुर-बसर में लगे हैं। फौरी मनोरंजन के लिए खेल परिसरों से पाटे जा रहे यमुना तटों के चलते यदि यमुना अस्तित्व खोती है तो यमुना के लुप्त हो जाने की त्रासदी 80 प्रतिशत आबादी वाले हिस्से को ही झेलनी होगी। पौराणिक कथाएं कहती हैं कि सूर्य पुत्री यमुना ने अपने भाई यमन को अमरत्व देने के लिए यमुना जल से तिलक किया था लेकिन आज यमुना यमपुरी में परिवर्तित होने को अभिशप्त की जा रही है।

Hindi India Water Portal

Issues