मध्य प्रदेश के जलक्षेत्र में विश्व बैंक की परियोजनाएं

अधोसंरचना विकास हेतु कंपनी
मध्यप्रदेश की मंत्रिपरिषद ने 22 नवंबर 2007 को नगरीय निकायों के लिए 'मध्यप्रदेश शहरी अधोसंरचना कोष'4 गठित करने संबंधी निर्णय लिया। क्योंकि ये निकाय बाहरी वित्तीय ऐजेंसियों से लिये जाने वाले कर्ज की मार्जिन मनी भी चुकाने की स्थिति में नहीं है। उदाहरण के लिए एडीबी सहायतित योजना में नगरनिकायों को भी अपना अंशदान देना है। 300ण्5 लाख डॉलर की पूरी परियोजना में से अकेले इंदौर में करीब आधी राशि (127.7 लाख डॉलर).. खर्च होगी। लेकिन नगरनिगम की माली हालत ऐसी नहीं है कि वह अपने हिस्से का अंशदान 71ण्70 करोड़ रुपये जुटा पाए। इसलिए वर्ष 2005 – 06 के बजट प्रस्ताव में इस अंशदान राशि हेतु IFC तथा अन्य वित्ताीय संस्थाओं से ऋण लेने की संभावना तलाशने की चर्चा की गई है। अन्य नगरनिकायों की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं है।
सबका एजेण्डा एक -
हाल ही में ब्रिटिश सरकार के अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (DFID) ने लगभग 350 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता से मध्यप्रदेश में ''गरीबोन्मुख शहरी सेवाएँ'' कार्यक्रम शुरू किया है। इस राशि में से लगभग आधी राशि एडीबी परियोजना मे शामिल प्रदेश के चार शहरों भोपाल, ग्वालियर, इन्दौर एवं जबलपुर में झुग्गी बस्तियों एवं उनके रहवासियों के विकास के लिए संचालित कार्यों पर व्यय की जाएगी। इसके बारे में कहा गया है कि यह कार्यक्रम गरीबोन्मुखी जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन तथा अन्य वित्ता पोषक एजेन्सियों द्वारा प्रदत्ता कार्यक्रमों एवं राज्य शासन के कार्यक्रमों का 4 मध्यप्रदेश शहरी अधोसंरचना कोष में राज्य शासन का अंशदान 20 करोड़ रुपये होगा जिसके लिये ''मध्यप्रदेश नगरीय अधोसंरचना एवं वित्तीय सेवाएं मर्यादित'' (MP Urban Infrastructure and Financial Services Limited) का गठन किया जायेगा। इस कंपनी में 26 फीसदी अंश राज्य शासन के तथा शेष 74 फीसदी अंश निजी क्षेत्र की कंपनियों के रखे जायेंगे। इस कोष को पूल्ड फाईनेंस डेवलपमेंट फण्ड (पी.एफ.डी.एफ.) योजना के अंतर्गत राज्य साझा वित्ता इकाई (एस.पी.एफ.ई.) के रुप में नामांकित किया जायेगा।
.. हाल ही में डॉलर का मूल्य गिरने से इस परियोजना लागत बढ़ कर करीब 140 लाख डालर से अधिक हो चुकी है।
... प्रधानमंत्री द्वारा ली गई जेएनएनयूआरएम की पहली समीक्षा बैठक में 9 अक्टूबर 2007 को मदृप्रदृ के नगरीय प्रशासन आयुक्त श्री मलय श्रीवास्तव ने बताया कि नेहरू मिशन का रिफार्म एजेण्डा लागू करने में मध्यप्रदेश अव्वल है। इसके तहत 74 वाँ संशोधन लागू करना, शहरी सीलिंग कानून समाप्त करना, भवन अनुज्ञा प्रक्रिया का सरलीकरण, कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि में बदलना प्रमुख है। भी समर्थन करता है। इसका अर्थ है कि सारी वित्ताीय एजेंसियों का एजेण्डा एक ही है, आर्थिक सुधार के माध्यम से सेवा के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों का प्रवेश करवाना। बस्तियों की स्थिति - इंदौर में परियोजना को प्रारंभ हुए करीब ढाई वर्ष गुजर चुका है लेकिन बस्तियों को इसके अभी कोई लाभ नजर नहीं आ रहे हैं। बस्तियों में काम करने वाली इंदौर की संस्था ''दीनबंधु'' ने शहर की 10 बस्तियों का अध्ययन कर पाया कि वहाँ परियोजना के कोई लाभ नहीं पहुँचे है। इन बस्तियों में पेयजल की सुविधा या तो है ही नहीं या फिर है भी तो न के बराबर है। पेयजल के लिए इन बस्तियों को निजी टेंकरों अथवा 2 . 3 किमी दूर के खेतों पर निर्भर रहना पड़ता है। दीनबंधु द्वारा सर्वेक्षित बस्ती भीमनगर के अच्छे विकास के लिए इंदौर नगरनिगम को ओडीए का पुरस्कार भी मिल चुका है। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जॉन मेजर स्वयं इस बस्ती को देखने आये थे। उल्लेखनीय है कि शहर की 174 बस्तियों में अधोसंरचना विकास हेतु विदेशी विकास सहायता (ओडीए) के तहत 64 करोड़ रुपए का अनुदान मिला था। 1400 की जनसंख्या वाली भीमनगर बस्ती में मात्र 2 सार्वजनिक नल है जिनमें एक दिन छोड़कर पानी सप्लाई होता है।
इंदौर का नर्मदा तृतीय चरण -
इंदौर में एडीबी परियोजना का एक प्रमुख घटक नर्मदा तृतीय चरण है। इसकी पाईपलाईन तथा सुरंग निर्माण हेतु 254ण्59 करोड़ रुपए का टेण्डर 20 अप्रैल 2007 को खोला गया। 23 जून 2007 को प्रदेश के मुख्यसचिव की अध्यक्षता वाली साधिकार समिति को इस योजना के टेण्डर जारी करने के पूर्व एडीबी के दिल्ली और मनीला कार्यालय से अधिकृत मंजूरी लेनी पड़ी। इसमें 150 किमी लम्बी पाईप लाईन के जरिए नर्मदा से 360 एमलडी पानी इंदौर लाया जाना है। इसके ठेके ग्रेफाईट इण्डिया (नाशिक), जेएमसी प्रोजेक्ट (अहमदाबाद), प्रतिभा कंस्ट्रक्शन (मुँबई) और एसईडब्ल्यू (हैदराबाद) को दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त स्वच्छता तथा विद्युतीय और यांत्रिक पुनर्वास संबंधी कुछ छोटे टेण्डर भी जारी हो चुके हैं।
राजनैतिक स्थिति -
एडीबी की सारी शर्तें मान लेने के बाद भी अभी तक राजनैतिक दल दर वृध्दि के प्रति सहज नहीं है। जब तक जरूरी न हो वे इससे बचने का ही प्रयास करते नजर आते हैं। भोपाल नगरनिगम में काँग्रेस पार्षद दल के सचेतक एवं पूर्व जलकार्य प्रभारी श्री सलीम एहमद के अनुसार कोई राजनैतिक दल दर वृध्दि नहीं चाहता। निगम आयुक्त ने भोपाल में एडीबी की शर्तों के तहत दरवृध्दि का प्रस्ताव 3 बार भेजा लेकिन उसे न तो नगरनिगम पास करना चाहता है और न ही मेयर इन काउंसिल। सब चाहते हैं कि सरकार ही एकतरफा निर्णय लेकर दर वृध्दि कर दें ताकि ठीकरा उनके सिर न फूटे। उल्लेखनीय है कि पिछली परिषद (कांग्रेसी मेयर सुश्री विभा पटेल के कार्यकाल में) के समय 2003 में जलदर 60 रुपए से बढ़ाकर 150 रूपए कर दी गई थी। तब विपक्षी भाजपा ने इसका विरोध किया था और कुछ दिनों बाद उमा भारती की सरकार आ जाने के बाद तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री श्री बाबुलाल गौर ने जलदर घटाकर पुन: 60 रुपए मासिक कर दी थी। लेकिन अब सरकार जलवृध्दि हेतु पुन: दबाव बना रहीं है। भोपाल नगरनिगम में 22 काँग्रेस, 4 निर्दलीय, और शेष 14 भाजपा के पार्षद हैं। मेयर भाजपा के श्री सुनील सूद है। इस प्रकार निगम काँग्रेस की तथा मेयर इन काउंसिल भाजपा की है। इस राजनैतिक स्थिति के कारण दोनों प्रमुख राजनैतिक दल दरवृध्दि के समर्थन का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। श्री सलीम एहमद के अनुसार अवैध कनेक्शनों को वैध करने का काम 2003 - 2004 में भी प्रारंभ किया गया था लेकिन करीब 50 कनेक्शनों को ही वैध किया जा सका। अभी यह अभियान बंद है।
श्री सलीम एहमद ने बताया कि अभी तक न तो व्यक्तिगत नल कनेक्शनों पर मीटर लगाए गए हैं और न ही झोनल मीटरिंग प्रारंभ की गई है। उन्होंने संपत्तिाकर बढ़ाने को अतार्किक बताते हुए कहा कि पहले से ही संपत्तिकर की दरें काफी अधिक है और लोग चुका नहीं पा रहे हैं। परियोजना हेतु Luise Berger Group Inc. (Project Management Consultant) और Infrastructure Professionals Enerprises (P) Limited (Implementation Consultant) को सलाहकार नियुक्त किया गया है। लुई बर्गर के डिप्टी टीम लीडर श्री एनएस शेखावत ने बताया कि परियोजना शहरों में सार्वजनिक नलों को खत्म किया जाना चाहिए। Sector Reform की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि वाटर सप्लाई की लागत वसूल की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि एडीबी बदलाव चाहता है इसलिए परियोजना के लिए थ्नदक की कमी नहीं रहेगी।
भोपाल के सिटी इंजीनियर श्री खरे ने कहा कि PHE के कर्मचारी नगरनिगम के अधीन हो गये हैं। यह निर्णय प्रशासनिक दृष्टि से ठीक है लेकिन Financial दृष्टि से गलत है। इससे नगरनिगम पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है।
इंदौर में निवासरत् मध्यप्रदेश के पूर्व जल संसाधन सचिव श्री एमएस बिल्लौरे ने बताया कि स्थापित कॉलोनियों का जलप्रदाय जरूरत के हिसाब से बढ़ाने के बजाय कम किया जा रहा है। जबकि नई पॉश कॉलोनियों को अधिक पानी दिया जा रहा है। एडीबी परियोजना से पॉश कॉलोनियों को ही अधिक फायदा भी होगा। सामाजिक कार्यकर्ता श्री अमूल्य निधि ने कहा कि एबी रोड़ और रिंग रोड़ पर बड़े पैमाने पर आवासीय परिसर और औद्योगिक मॉल्स बनने के कारण चिकित्सक नगर जैसी बस्तियों को पानी के लिए 2 . 2 किमी तक भटकना पड़ता है।
बदलावों का प्रभाव
• इंदौर नगरनिगम द्वारा सार्वजनिक नलों को निकट स्थित मकान मालिकों के नाम पंजीबध्द करने का प्रावधान सिर्फ इस उद्देश्य से ही लाया गया है ताकि लोग स्वयं इन्हें निकालने की माँग करें। इससे एक ओर नये सार्वजनिक नलों की माँग स्वत: बंद हो जाएगी तथा अभी जो सार्वजनिक नल लगे हैं उन्हें हटाने का बहाना भी निगम को मिल जाएगा। हालांकि अभी तक यह प्रावधान लागू नहीं हो पाया है।
• दर वृध्दि हेतु कम राजस्व के इंदौर नगरनिगम के तर्क में दम नहीं है। नगरनिगम की जानकारी के अनुसार पेयजल पर प्रतिवर्ष 90 करोड़ रूपए खर्च होते हैं लेकिन राजस्व प्राप्ति सिर्फ 8 करोड़ ही होती है। इस हिसाब से तो राजस्व घाटे की पूर्ति हेतु निगम को जलदरें कम से कम 11 गुना बढ़ानी होगी। सामाजिक कार्यकर्त्ता और पत्रकार श्री चिन्मय मिश्रा ने कहा कि जल दरें तो पहले से ही काफी अधिक है। नगरनिगम एक दिन छोड़कर पानी देता है अर्थात् 15 दिन जलप्रदाय के लिए 150 रूपए लिए जाते हैं। इस प्रकार प्रभावी मासिक बिल 300 रुपए होता है।
• राजस्व बढ़ाने के जो नये-नये तरीके निकाले जा रहे हैं उसे न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता। इस तरीके से आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों की समस्याएँ बढ़ेंगी। कचरा शुल्क नागरिकों पर कर का बोझ बढ़ाने वाला होगा।
• इंदौर में संपत्तिायों के आंकलन में निजी कंपनियों को शामिल करना निजीकरण की दस्तक के रूप में देखा जाना चाहिए। इससे इन सेवाओं से सार्वजनिक निकाय का नियंत्रण कम होकर निजी क्षेत्र पर निर्भरता कायम होगी।
• नगरनिकायों को एकीकरण हेतु मेट्रोपोलिटन एरिया प्लानिंग एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (मैपडा) के गठन से नीतिगत बदलावों को प्रदेश स्तर पर लागू करने हेतु किया जा रहा है। अभी तक परियोजना नगरों को कर्जदाता एजेंसी की शर्तों के अनुसार स्थानीय स्तर पर बदलाव करने थे और स्थानीय राजनैतिक तथा अन्य परिस्थितियों के कारण कई बाद समय पर बदलाव संभव नहीं हो पा रहे हैं। भोपाल में भी नगरनिगम के राजनैतिक हालातों के कारण पेयजल की दरवृध्दि संभव नहीं हो पा रही है।
• प्रदेश के किसी भी नगरनिकाय की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर उन्हें भी अंशदान राशि इंदौर नगरनिगम की तरह ही कहीं से कर्ज ही लेना पड़ेगा। लेकिन चूंकि अंशदान राशि भी बड़ी होती है तथा स्थानीय निकायों की बैलेंस शीट देखकर कोई वित्ताीय एजेंसी उन्हें कर्ज देने में संकोच करती है। रतलाम नगर निगम द्वारा एडीबी कर्ज अस्वीकार करने के कारणों में बड़ी अंशदान राशि भी एक कारण था। इसी स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए सरकार को ''मध्यप्रदेश शहरी अधोसंरचना कोष'' तथा ''मध्यप्रदेश नगरीय अधोसंरचना एवं वित्ताीय सेवाएं मर्यादित'' (MP Urban Infrastructure and Financial Services Limited) गठित करने का निर्णय लेना पड़ा। बहुत संभव है कि सरकार के इन कदमों से नगरनिकाय वित्तीय एजेंसियों से कर्ज लेने में सक्षम हो जाएंगें। लेकिन मुख्य समस्या लोगों की कर भुगतान की क्षमता बढ़ाने की है। पहले काम इस दिशा में होना चाहिए अन्यथा बड़े कर्जों के कारण बढ़ाए गए करों के बोझ से आम जनता दब जाएगी क्योंकि नगरनिकायों द्वारा कर्ज पानी के अलावा सड़क निर्माण, परिवहन आदि सेवाओं के लिए भी लिए जा रहे हैं।
• इस पूरी परियोजना में बस्तियों की उपेक्षा तय है क्योंकि परियोजना दस्तावेज में ही कुल परियोजना राशि का मात्र 2ण्31 प्रतिशत ही रखा गया है। इतनी कम राशि में गरीब बस्तियों का आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिल सकता। ज्ञात रहे कि मध्यप्रदेश में 38 प्रतिशत शहरी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है।
• इन दिनों आमतौर पर देखा जा रहा है कि जलप्रदाय के लिए अत्यधिक महँगी योजनाएँ बनाई जा रही है। यदि सुधार एजेण्डे के तहत इन योजनओं की लागत, संचालन खर्च, लागत पर ब्याज और सुनिश्चित लाभ उपभोक्तओं से वसूला जाए तो सेवा शुल्क में होने वाली वृध्दि हर
वर्ग के लिए असहनीय होंगी। इंदौर में नर्मदा के पिछले 2 चरणों का अनुभव बताता है कि संचालन खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा (50 करोड़) बिजली का बिल है। पानी दूर के स्रोत से पर लम्बी पाईप लाईन का संधारण खर्च भी उसी अनुपात में अधिक होता है। सितंबर 2006 के आकलन के अनुसार इंदौर में 641ण्25 करोड़ की एडीबी परियोजना में से 471 करोड़ अकेले नर्मदा तृतीय चरण पर खर्च किए जाएँगे। 275 करोड़ नर्मदा से इंदौर पाईप लाईन (150 किमी लम्बी) पर तथा शेष 196 करोड़ मशीनरी तथा सिविल कार्यों पर खर्च होंगें। इसका वार्षिक संचालन खर्च 175 करोड़ (लागत का 37 प्रतिशत) होगा जिसमें विद्युत व्यय 82 करोड़, संधारण व्यय 50 करोड़ एवं कर्ज वापसी के 43 करोड़ रुपए शामिल हैं। निगम के आंकलन के अनुसार इंदौर तक पानी पहुँचाने की लागत 18 रूपये/घमी होगी।
जाहिर है। इतने महँगे पानी की कीमत कोई भुगतान नहीं कर पाएगा। इसलिए बहुत जरूरी है कि परियोजना खर्च घटाने हेतु इसकी वैकल्पिक योजना पर विचार किया जाए। इंदौर में तालाबों और कुएँ-बावड़ियों की एक समृध्द परम्परा रही है। पहले से निर्मित इन जलस्रोतों का पुनरूध्दार तथा विकास किया जाए तो आर्थिक लागत कम करने के साथ ही समस्या का स्थाई समाधान भी हो सकेगा। इस वैकल्पिक योजना का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इसका संचालन/संधारण खर्च खासकर बिजली बिल काफी कम हो जाएगा। पानी की उपलब्धता अधिक भरोसमंद होगी। सारे खर्च कम हो जाने से संचालन लागत कम हो जाएगी और दरवृध्दि भी कम करनी होगी। लेकिन सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि इससे विभिन्न समुदायों के मध्य संभावित विवादों को टाला जा सकेगा। नर्मदा से पानी लेने पर आज कोई विवाद नहीं है लेकिन देश में जलविवादों को देखते हुए निकट भविष्य में इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
भाग - 2

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