मध्य प्रदेश के जलक्षेत्र में विश्व बैंक की परियोजनाएं

भाग – 3
जल क्षेत्र पुनर्रचना परियोजना
इसी प्रकार सितंबर 2004 में विश्व बैंक से 39,6 करोड़ डॉलर (1782 करोड़ रूपये) का कर्ज मिला है। इस कर्ज से ''मध्यप्रदेश जलक्षेत्र पुनर्रचना परियोजना'' संचालित की जा रही है जिसके तहत 1986 के पूर्व निर्मित 654 छोटी और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं तथा नहर तंत्रों का सुदृढ़ीकरण एवं आधुनिकीकरण किया जाना है। इससे प्रदेश के 30 जिलों में 4,95,000 हेक्टर में विश्वसनीय सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। कर्ज दस्तावेज में कहा गया है कि जीर्णशीर्ण सिंचाई तंत्रों के कारण वर्तमान में इसके आधे क्षेत्र में ही सिंचाई उपलब्ध हो पा रही है। हालांकि इस कर्ज का उपयोग पाँच नदी कछारों (चंबल, सिंध, बेतवा, केन और टोंस) में ही किया जाना है। लेकिन इसकी शर्तों के तहत किये जाने वाले नीतिगत बदलावों का प्रभाव पूरे राज्य के किसानों पर पड़ रहा है। अभी तक मिले संकेत बताते हैं कि राज्य पानी के निजीकरण की दिशा में बढने लगा है।
नया सिंचाई कानून - 27 नवंबर 2004 को जिस दिन प्रदेश की मंत्रिपरिषद् ने विश्व बैंक के इस कर्ज का अनुमोदन किया उसी दिन 'मध्यप्रदेश सिंचाई में कृषकों की भागीदारी (संशोधन) विधेयक 2004 ' को भी स्वीकृति दी।
सिंचाई दरों में वृध्दि - 16 नवंबर 2005 के केबिनेट निर्णय में सिंचाई योजनाओं के रखरखाव खर्च की पूर्ति हेतु सिंचाई दरों में प्रतिवर्ष 20 प्रतिशत वृध्दि का निर्णय ले लिया गया। अब बगैर किसी निर्णय के परियोजना के समापन तक ये दरें बढ़ाई जाती रहेंगी। इसका अर्थ है कि जो किसान वर्ष 2005 में सिंचाई पर 100 रूपए प्रतिवर्ष खर्च कर रहा होगा उसे योजना समाप्ति तक 249 रूपए यानी ढाई गुना अधिक और 10 वर्ष बाद 620 रूपए यानी 6 गुना से अधिक राशि खर्च करनी होगी।
भू-व्यपवर्तन कानून में ढील - 4 अक्टूबर 2007 के केबिनेट निर्णय में ''आवास एवं पर्यावास नीति 2007'' के बहाने कृषि भूमि के गैरकृषि कार्यों में उपयोग हेतु अनुमति की प्रथा समाप्त कर दी गई है। हालांकि यह शर्त विश्व बैंक द्वारा वित्तापोषित जेएनएनयूआरम में शामिल थी लेकिन इससे रियल ऐस्टेट कारोबारियों द्वारा बड़े पैमाने पर कृषि जमीन देने से कृषि क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
जल उपभोक्ता समूह - 2 वर्ष पूर्व प्रदेश में जल उपभोक्ता समूहों के चुनाव जोर-शोर में दलीय समर्थन के आधार पर हुए। इन चुनावों में धन का उपयोग आम चुनावों के बराबर ही देखने में आया। जल उपभोक्ता समूहों के चुनावों के दौरान अखबारों के पूरे पृष्ठ के विज्ञापन देखने को मिले जो सिध्द करता है कि अब यह क्षेत्र भी दबंगों के हाथों में जा रहा है।
नियामक तंत्र - दिसंबर 2005 तक जल नियामक तंत्र (State Water Tariff/Rights Regulatory Commission) से संबंधित कानून का प्रारूप तैयार हो जाना चाहिए था जो तैयार तो हो चुका था लेकिन अभी तक इसे विधानसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सका है लेकिन प्रक्रिया जारी है। 10 मई 2007 को भोपाल में ''जल नियामक आयोग के गठन की आवश्यकता'' पर विषय प्रोजेक्ट उदय (एडीबी सहायतित परियोजना) द्वारा एक कार्यशाला आयोजित की गई। प्रोजक्ट उदय के परियोजना संचालक श्री हरि रंजन राव ने कहा कि नियामक आयोग की आवश्यकता जैसे विषय पर कार्यशाला आयोजित करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है। इसके बाद अब जल नियामक कानून को अंतिम रूप् देने हेतु अगस्त 2007 में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक साधिकार समिति (High Power Panel) बना दी गई है। समिति में नगरीय प्रशासन मंत्री, नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव सहित कुल 6 सदस्य हैं।

वर्तमान स्थिति
भौतिक कार्य - जून 2007 तक मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार को विश्व बैंक से मात्र 13,289 करोड़ रूपये मिल पाए थे जो कि कुल कर्ज का मात्र 6.92% है।
परियोजना के तहत प्रदेश के पांच नदी कछारों के अंतर्गत आने वाले 654 पुराने बांधों और उनकी नहरों का आधुनिकीकरण किया जाना प्रस्तावित है। 6 अक्टूबर 2007 की जल संसाधन विभाग की विभागीय समीक्षा बैठक के दौरान 177 पुराने बाँधों और नहरों के आधुनिकीकरण का काम प्रारंभ होने की बात कही गई है। लेकिन विभाग की 22 नवंबर 2007 की विज्ञप्ति के अनुसार पहले चरण में 175 स्कीम माडर्नाइजेशन प्लान (एस.एम.पी.) विश्व बैंक को प्रस्तुत किए जाने हैं जिनमें से अब तक 146 प्लॉन प्रस्तुत किए जा चुके हैं। प्रस्तुत किए गए एसएमपी में से 22 नवंबर 2007 तक 46 को छोड़ कर शेष को विश्व बैंक ने अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) जारी कर दिए थे।
इसके अतिरिक्त परियोजना के तहत दिए जाने वाले कुल 15 सलाहकारी ठेकों में से जून 2007 तक उत्पादकता सुधार, डिजाईन और क्रियांवयन सहायता तथा टोपोग्राफिक एवं केडेस्ट्रेल सर्वे संबंधी 3 ठेके दिए जा चुके हैं।
दुबारा टेण्डर - जून 2006 में चम्बल दाई मुख्य नहर के 83 किमी से 169 किमी के 77 करोड़ रूपए के 2 अलग-अलग टेण्डर जारी किए गए थे। यही टेण्डर जून 2007 में पुन: जारी किए गए। कुल मिलाकर परियोजना 2 वर्ष पिछड़ गई है। इसके बावजूद कार्य की प्रक्रिया, उनका निरीक्षण, दस्तावेजों का उत्ताम रखरखाव और उपभोक्ता संतुष्टि के मापदण्ड के आधार पर विश्व बैंक सहायतित इस परियोजना को ISO 9001-2000 प्रमाण पत्र दे दिया गया है।
& डॉलर-रुपया विनिमय दर कर्ज स्वीकृति के समय की है।
मंथन अध्ययन केन्द्र, दशहरा मैदान रोड़, बड़वानी (मध्य प्रदेश) 451 551
फोन - 07290 222857ए ईमैल - manthan.kendra@gmail.com

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