गंगा एक्सप्रेस वे-पचास लाख क्विंटल अनाज की पैदावार घट जाएगी
अंबरीश कुमार
लखनऊ, बलिया-नोएडा एक्सप्रेस वे के चलते पहले चरण में प्रदेश की ४0 हजर एकड़ क्षेत्रफल का रकबा खेती से अलग हो जाएगी । जबकि एक दशक बाद एक लाख एकड़ उपजऊ भूमि गैर कृषि कार्यो में इस्तेमाल होगी। जिसके चलते पचास लाख क्विंटन अनाज का उत्पादन कम होगा। यह निष्कर्ष किसी राजनेता का नहीं बल्कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में गंगा नदी पर शोध के लिए १९८५ में गठित गंगा प्रयोगशाला के संस्थापक प्रोफेसर यूके चौधरी और उनकी टीम का है।
प्रोफेसर चौधरी गंगा नदी का विस्तृत एवं सूक्ष्म अध्ययन कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस परियोजना के चलते न सिर्फ गंगा का प्रदूषण बढ़ेगा बल्कि गंगा बेसिन की जलवायु पर असर पड़ेगा। प्रोफेसर चौधरी की रपट के बाद भारतीय जनता पार्टी के विधायक दल के नेता ओम प्रकाश सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जनेश्वर मिश्र, अजित सिंह, अमर सिंह, राजबब्बर समेत कई सांसदों को पत्र भेजकर इस परियोजना को रोकने की गुजरिश की है।
बीएचयू के वैज्ञानिक प्रोफेसर यूके चौधरी के निष्कर्ष इस परियोजना को लेकर माहौल गरमा सकते हैं। चौधरी की रपट की कुछ बिंदु इस प्रकार है। गंगा एक्सप्रेस वे चूंकि ड्रेनेज पाथ को काटेगा इसलिए वाटर शेड की दिशा ??बदल जएगी। भूमिगत जल में बढ़ोत्तरी होगी जो विशाल वाटर शेड के मृदाक्षरण का कारण हो। वाटर शेड का कटाव एक्सप्रेस वे के एकत तरफ पानी के दबाव को बढ़ाएगा तथा दूसरी तरफ भूमिगत जल के रिसाव क्रिया में तीव्रता लाएगा। इसके चलते एक्सप्रेस वे से भयावह कटाव होगा। गंगा एक्सप्रेस वे चूंकि माइक्रो वाटर शेड को एक हजर किलोमीटर में काटेगी इसलिए एक्सप्रेस वे का एक किनारा राजमार्ग के अगल-बगल की विशाल उपजऊ जमीन पर जल भराव करेगा।
एक्सप्रेस वे पर चलने वाली गाड़ियों से लगातार कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मीनो आक्साइड आदि गैसे नदी से निस्तारित होने वाली वाष्पीकरण की रफ्तार को बढ़ाकर जल प्रवाह कम कर देगी जिससे जल में आक्सीजन की मात्रा घट जएगी। इसके अलावा एक्सप्रेस वे और गंगा के बीच की उपजऊ भूमि गंगा द्वारा बालू जमाव व मृदाक्षरण से प्रभावित होते गंगा का बेसिन न रह कर बाढ़ क्षेत्र में तब्दील हो जएगी। इसके चलते हजरों एकड़ का गंगा का उपजऊ बेसिन क्षेत्र नष्ट हो जएगा।
सबसे महत्वपूर्ण बात है उपजऊ जमीन का गैरकृषि क्षेत्र में चले जना। उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि का रकबा लगातार कम हो रहा है। वर्ष १९८४ में प्रदेश में कृषि भूमि का रकबा १८४ लाख हेक्टेयर था जो २00६ आते-आते १६८ लाख हेक्टेयर रह गया। हालांकि खाद्यान्न उत्पादन फिलहाल चार लाख मीट्रिक टन पर स्थिर है। लेकिन जहां २0२४-२५ तक प्रदेश की आबादी करीब २५ करोड़ तक पहुंच जाएगी वहीं खाद्यान्न का उत्पादन और घट जएगा। उस समय ६00 मीट्रिक टन खाद्यान्न की जरूरत होगी। ऐसे में खेती का रकबा घटना घातक होगा।