कोसी के साथ-साथ चल समझी उसकी परेशानी

रामनगर। कोसी नदी क्या परेशानी भोग रही है, उसे आखिर तकलीफ क्या है? उसकी कोख सूखती क्यों जा रही है, उससे जीवन लेकर हम उसे दे क्या रहे है? उद्गम से लेकर रामगंगा में मिलने तक उसके बहाव, इर्द-गिर्द बसी सभ्यता को देखकर ही इस बात को महसूस किया जा सकता है। नदी किनारे बसे गांव अगर इसके पानी से जीवित है, तो जब यह पानी नहीं रहेगा फिर? यही सवाल न केवल कोसी बल्कि उत्तराखंड की गैर-हिमालयी और हिमालयी नदियों के साथ जुड़े है। इन सवालों का जवाब ढूंढा जाना जरूरी है, ताकि समय रहते इन नदियों के रूप में इसके आसपास बसी सभ्यता को बचाया जा सके। इसी बात को समझते हुए जन्म हुआ उत्तराखंड नदी बचाओ वर्ष 2008 अभियान का। यात्रा के तहत जमुना, भागीरथी, अलकनंदा, कोसी, पनार, गगास समेत राज्यभर की 15 नदियों की यात्रा के बाद मंगलवार को उसका रामनगर में समागम हुआ। कोसी की धार के साथ बात करते हुए पद्मश्री प्रो. शेखर पाठक, सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहन, पामिला चटर्जी की अगुवाई में कोसी बचाओ यात्रा दल रामनगर में चाल खाल बनाएंगे, नदियों को बचाएंगे., ऊंचाई पर पेड़ रहेगे, नाले धारे टिके रहेगे., कोसी बचाओ जीवन बचाओ. जैसे नारों के साथ कोसी के समागम की तरफ बढ़ रहा था। यह यात्रा दल 15 दिन की पैदल यात्रा पूरी कर यहां पहुंचा था। लोगों के कान में कोसी, जीवन, चाल-खाल जैसी आवाजों पड़ उत्सुकता जग रही थी। उन्हे समझ नहीं आ रहा था कि जनगीत गाते चले जा रहे ये लोग आखिर है कौन। कोसी नदी में जब यात्रा दल पहुंचा तो लोगों को समझ आ रहा था कि यहां किसी राजनीतिक दल का जुलूस या कोई पुतला फूंकने जैसी कहानी नहीं बल्कि बात नदी के रूप में एक जीवन रेखा बचाने की हो रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहन ने जब यहां माइक थामा तो कोसी किनारे खनन कर रहे और गाड़ियां धो रहे लोगों को पता लगा कि 15 दिनों से यह यात्रा दल इन्हीं सब बातों मुखालफत करते हुए यहां पहुंचा है।
यात्रा दल ने कोसी किनारे बसे गांव के लोगों से बात की है। उनके साथ वक्त गुजारकर उनकी परेशानी भी सुनी है। जब तक हम नदी के मिजाज को नहीं समझेंगे हम भला किसी नतीजे पर कैसे पहुंच सकते है? यात्रा दल में शामिल पद्मश्री प्रो. पाठक का यह कहना था। वह बोले नदियों के साथ अनियंत्रित दोहन, बाढ़, कटान जैसी परेशानियां भरे शब्द जुड़े हुए है। इनके बारे में हम नहीं तो और कौन सोचेगा.समय रहते।
31 दिसंबर को कौसानी और राज्य के अन्य हिस्सों से शुरू हुई नदी बचाओ यात्राओं का उद्देश्य
पदयात्रा के बाद हुए विमर्श से उभरे बिंदुओं को सरकार को समक्ष प्रस्तुत करना भी है। सरकार का सामने राज्य की जल नीति घोषित करने, जल संसाधनों पर स्थानीय समुदायों का स्वामित्व स्वीकार करने, पानी बचाने की नीतियां ग्रामीणों के साथ मिलकर बनाने, नदियों के उद्गग स्थलों पर किसी भी तरह की छेड़छाड़ न होने देने जैसे दर्जनभर मुद्दे यात्रा के बाद रखे जाने है।
सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहन का कहना है कि सूख रही वर्षा पोषित नदियों के पुनर्जीवन के लिए प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के कार्यक्रम घोषित होने चाहिए। उनका कहना था कि सरकारे जनता को विश्वास में लेकर जल संवर्धन नीतियां बनाएं और जनता भी एकमत होकर नदियां बचाने को सामने आएं। नदी बचाओ यात्रा का यह मकसद है। 16,17 को नदियां बचाओ यात्रा के विभिन्न दल यहां पहुंचेंगे।
कब कहां गई कोसी बचाओ यात्रा
रामगर। 31 दिसंबर को कौसानी अनासक्ति आश्रम, एक जनवरी कौसानी, ल्वेशाल, चनौदा, अधूरिया, 2 जनवरी सोमेश्वर, टाना, पोखरी, बजे, कोटूली, 3 जनवरी मनान ग्वालाकोट, दाड़िमखोला, 4 जनवरी भगतोला, पातलीबगड़, महतगांव, 5 जनवरी कोसी, अनाड़, तलाड़, अल्मोड़ा, 6 जनवरी चौसली, 7 जनवरी क्वारब, चोपड़ा, सुयालबाड़ी, 8 जनवरी मनरसा, जौरासी, 9 जनवरी लोहाली, खैरना, 10 जनवरी खैरना से बर्धो, 11 जनवरी आमबाड़ी, बेतालघाट, 12 जनवरी मल्ली सेठी, 13 तल्ली सेरी, ओखलढूंगा, 14 जनवरी गर्जिया, 15 रामनगर, 16-17 जनवरी रामनगर में उत्तराखंड नदी बचाओ सम्मेलन।
कोसी को लेकर चिंता
रामनगर। वैज्ञानिक मानते है कि कौसानी के पास पिनाथ पर्वत से निकलने वाली कोसी नदी का जल प्रवाह अल्मोड़ा के पास 1995 में 995 लीटर प्रति सेकेंड था जो 2003 में घटकर मात्र 85 लीटर प्रति सेकेंड रह गया। 2003 के बाद भी जल बहाव लगातार घट रहा है। वैज्ञानिक मानते है कि कोसी के रीचार्ज का स्तर औसतन बारह फीसदी है जबकि इसे 31 फीसदी होना चाहिए। 40 साल पहले कोसी में मिलने वाली नदियों की लंबाई 225.6 किमी थी जो अब 40 किमी रह गया है।

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