गिर गया भूजल स्तर, फट गयी धरती

हमीरपुर (उत्तर प्रदेश)। जिले में जल संरक्षण की बात की जाये तो साफ है यदि इस बारे में कोई पहल की गयी होती तो शायद आज बुंदेलखंड सूखे जैसे हालात से न गुजर रहा होता। तालाब और कुएं सूखते गये, नदियों की जलधारा दूर जाती रही, नहरों में पानी का बहाव बंद होता गया स्थिति साल-दर-साल बिगड़ती गयी। लेकिन जल संरक्षण के लिए न तो कोई कवायद की गयी और न ही जिले में किसी संगठन या राजनीति दल के नेताओं ने इसे मुहिम बनाने का प्रयास किया।
नदी, नहर, कुओं और तालाबों से पानी नहीं मिला तो लोग भूजल के दोहन में जुट गये। अब हालात ये हैं कि हमीरपुर जिला सूबे के उन जिलों में शामिल हो गया है, जहां पिछले दस सालों में सबसे ज्यादा भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की गयी है। प्रतिवर्ष यहां दस से 56 सेमी की दर से भूजल स्तर में गिरावट हुई है। भूजल स्तर के इतनी रफ्तार से गिरने के परिणाम भी सामने आये जिगनी हो या खंडेह या फिर परछा का क्षेत्र, सभी जगह धरती फटने की घटनाओं से लागों में दहशत बन गयी। इतना सब होने के बाद भी प्रशासन ने अभी तक जल संरक्षण के लिए किसी योजना का क्रियान्वयन किया है और न ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्यता के लिए सख्त कदम उठाये हैं।
पांच सालों में 1.31 मीटर गिरा जल स्तर
पिछले पांच सालों के दौरान जिले में जलस्तर में 1.31 मीटर की गिरावट आयी है। भू-गर्भ जलस्तर नीचे गिरने से जमीन भी फटी। भूगर्भ जल के जानकार एएच जैदी बताते हैं कि बुंदेलखंड क्षेत्र में वर्षा के घंटे और दिन कम होते जा रहे हैं। खेत का खेत पानी खेत में का संकल्प पूरा नहीं हो पा रहा है। हैंडपंपों के जरिए भूजल का अत्याधिक दोहन और दुरुपयोग हो रहा है। ऐसे में रीचार्ज पिट बनाये जाने की बेहद जरूरत है। क्योंकि भूजल की वांछित रिचार्जिग नहीं हो पा रही है। पर्याप्त वर्षा न होने के कारण नदियों में पानी कम हो गया है, बांध और तालाब सूख गये हैं, जिसके कारण पेयजल व सिंचाई के लिए भूगर्भ जल भंडारों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। भूजल दोहन की मात्रा हर साल बढ़ रही है। क्षेत्र में ग्राउंड वाटर की ओवर एक्सप्लाइटेड कंडीशन का प्रबल संकेत है, जो चिंता का विषय है।
वर्षा जल केंद्र की जरूरत
बुंदेलखंड के सातों जनपदों में एक-एक वर्षा जल केंद्र की स्थापना की जरूरत है ताकि सूचनायें एकत्रित कर एक छत के नीचे सेवा उपलब्ध हो सके। चेकडैम व अन्य जल संभरण के संसाधनों को बनाया जाये। भूजल की रसायनिक अशुद्धियों वाले क्षेत्र में नलकूपों का आप्टिमम यूज हो सकता है। वर्षा जल को संरक्षित, संचयन और भंडारण किया जाये। पिछले बीस साल के आंकड़े बताते हैं कि जून, जुलाई, अगस्त में 2002 से 2007 के बीच औसत वर्षा 473.7 मिमी हुई, जबकि वर्ष 1996 से 2001 तक 681.6 मिमी वर्षा रिकार्ड की गयी है।
भूजल ही एकमात्र विकल्प
जिले की प्रमुख नदियों में पानी कम हो गया है। नहरें, तालाब व कुएं सूख गये है। अब सिर्फ लोगों के लिए भूगर्भ जल ही एक विकल्प है। भू-गर्भ वैज्ञानिक बीके उपाध्याय ने बताया कि जिले में पानी का स्तर 100 फिट नीचे है। धसान और बेतवा नदी में खदान हो रही है। जिसके चलते जल संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत है। डा. जेपी विश्वकर्मा ने कहा कि पानी न बरसने से जल सोखने का कृषि वर्ग सिस्टम समाप्त हो गया है। यदि यही हालात रहे, तो अगले 40 वर्षो में बुंदेलखंड रेगिस्तान बन जायेगा। उन्होंने कहा कि सामान्य खेतों में भी भूमि में क्षरण हो रहा है। भूगर्भ के जलस्तर नापने के लिए पीजो मीटर में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां की गयीं हैं।
जलस्तर गिरने से बिगड़े हालात
हमीरपुर : अधिशास अभियंता जल निगम एमएल अग्रवाल भूजल स्तर गिरने से हालात बिगड़े हैं। भू-गर्भ का जलस्तर नीचे खिसक जाने से पेयजल योजनायें साथ नहीं दे रही हैं। ऐसे में जल संचयन के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और जल संरक्षण की अन्य विधियों पर कारगार कदम उठाये जाने जरूरी हैं। जिले की 26 पेयजल योजनाओं में 93 हजार लोगों को पानी की आपूर्ति की जा रही है। 13 नई पेयजल योजनाओं के लिए 512.9 लाख रुपये मिले हैं। इसमें 47847 लोग लाभान्वित होंगे। पानी की किल्लत सबसे अधिक ग्रामीण इलाकों में है। यहां नियमित बिजली की सप्लाई नहीं है, तालाब और कुएं सूखे पड़े हैं, हैंडपंपों ने जवाब दे दिया है। जिले में पानी की समस्या दिनोंदिन बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि एक आदमी को 70 लीटर पानी रोजाना की जरूरत है। आम आदमी को भी पानी की फिजूल खर्ची रोकनी होगी।

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