पत्थर खदानों के कारण सिमट रही हरियाली

डोमचांच (कोडरमा)। कोडरमा जिला अंतर्गत डोमचांच और इसके आसपास के इलाकों में संचालित सैकड़ों स्टोन क्रशर इकाइयों और पत्थर खदानों के कारण प्रकृति की हरियाली सिमट रही है। यहां पर संचालित सबसे वृहद अंबादहा पत्थर खदान से, जो 1987 से चालू है, प्रतिदिन सैकड़ों टन पत्थर का उत्पादन जारी है। जहां एक तरफ इन खदानों एवं सैकड़ों क्रशर यूनिटों में सैकड़ों मजदूरों की रोजी-रोटी चलती है। वहीं पत्थर व्यवसाय से जुड़े लोग मालामाल हो रहे है, लेकिन इस व्यवसाय से जुड़े लोग वन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में कोई भी कसर बाकी नहीं छोड़ रहे है। इससे विभिन्न तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही है। करीब दो दशक पूर्व तक प्रकृति की हरियाली के आगोश में खेल रहा यह इलाका आज बंजर सा होने लगा है। अंबादहा एवं इसके आसपास अनेक पत्थर खदानों की गहराई हजारों फीट हो चुकी है और प्रतिदिन इसमें ब्लास्टिंग व खुदाई जारी है। इन गहरे खदानों में सालो भर हजारों लीटर पानी भरा रहता है, जिसे बड़े-बड़े पंप सेट मशीनों द्वारा बाहर बहा दिया जाता है। एक मशीन एक घंटे में 1500 लीटर पानी बाहर फेंकती है और एक-एक खदानों में ऐसे दर्जनों मशीनें लगीे हई है, जो 24 घंटे चलता रहती है, जबकि यहां दर्जनों माइंस हैं। यहां पर प्रतिदिन हजारों लीटर पानी का अपव्यय किया जा रहा है। इससे भूमिगत जल की बर्बादी का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिसके कारण आसपास के गांवों के कुएं गर्मी शुरू होते ही सूखने लगते हैं। जहां कुछ वर्ष पूर्व 50 फीट बोरिंग से पानी आता था, वहां आज 200 फीट पर गहराई के बाद भी पानी आना कठिन है। वैसे भी पेयजल की समस्या से तो डोमचांच की जनता वर्षो से जूझ ही रही है। ऐसे में जल के इस अपव्यय से किसान सकते में है। कुआं, तालाब, नदी, नाला सब समय से पूर्व सुख जाते है। आने वाले दिनों में अगर इसे नहीं रोका गया तो जल समस्या डोमचांच वासियों के लिए काल बनकर उभरेगा।
दूसरी तरफ खनिज पदार्थो के दोहन में पहला शिकार वन पर्यावरण को बनाया जाता है। पत्थर खादानों की लीज हो या फिर ढिबरा खोदना, सबसे पहले उक्त भूमि के हरेभरे भाग को नष्ट किया जाता है। दूसरी तरफ कत्था बनाने वाले माफियाओं के द्वारा खैर व अन्य कीमती लकड़ियों की अंधाधुंध कटाई की गई। आज भी साल एवं अन्य लकड़ियों की अंधाधुंध कटाई जारी है। करीब एक लाख आबादी वाले इस क्षेत्र अधिसंख्य घरों में भोजन जंगली लकड़ी से ही पकाई जाती है, जिसमें सैकड़ों टन जलावन प्रतिदिन जलता है। एक तरफ वनों की अंधाधुंध कटाई एवं पानी के अपव्यय से समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। यहां पर अवस्थित सैकड़ों क्रशर यूनिटों द्वारा पत्थर की पिसाई से भी पर्यावरण लगातार दूषित हो रहा है। प्रदूषण इस प्रकार बढ़ चुका है कि सड़क के किनारे एवं आसपास के वन प्रक्षेत्रों में क्रशर मिलों से उड़ने वाली धूल एवं गर्द से सैकड़ों पेड़ सूख चुके है और दिन-प्रतिदिन इसकी संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। क्रशर यूनिट में काम करने वाले मजदूर टीबी के रोग से ग्रस्त हो रहे हैं। जल, जंगल और प्रदूषण आने वाले समय में डोमचांच के लिए भीषण समस्या बनकर उभरने वाली है, जिसकी तरफ सरकार, प्रशासन एवं विभागीय लोगों का कोई ध्यान नहीं है।

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