बुन्देलखंड में सूख रही धरती की कोख

लखनऊ। बुन्देलखण्ड में पानी की समस्या जगजाहिर है। प्रदेश के इस पठारी भू-भाग की पथरीली जमीन से पानी आसानी से रिसता नहीं। वहीं दूसरी ओर अनवरत दोहन से यहां का भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। इस क्षेत्र में पानी का प्रमुख साधन कुएं और हैंडपम्प हैं जो भूजल स्तर में गिरावट के कारण शनै: शनै: सूखते जा रहे हैं।
दरअसल लकड़ी, तेंदू पत्ता, जड़ी-बूटियों के लिए अवैध कटान के कारण यहां के जंगल लगातार कम होते जा रहे हैं। वहीं चूना पत्थर, ग्रेनाइट, कोयला, तांबा, आदि के खनन ने यहां के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ दिया। ऐसे में यहां की पथरीली जमीन में वर्षा जल संचयन नहीं हो पाता और गिरते भू जल स्तर के कारण हैण्डपम्प व कुएं सूख रहे हैैं।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार बुन्देलखंड के झांसी, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर और बांदा जिलों में चूना पत्थर व ग्रेनाइट की चट्टानें पायी जाती हैं। यह विन्ध्य क्षेत्र से लगा पठारी क्षेत्र हैैै। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार यहां अस्सी प्रतिशत वर्षा जून के अन्त से लेकर सितम्बर के बीच होती है। तीन महीने में हुई वर्षा का जल पथरीली जमीन नहीं सोख पाती। वर्षा जल संचयन न होने के कारण वह केन, बेतवा नदियों में बह जाता है। केन नदी का जल यमुना में बह जाता है। गर्मी में केन भी सूख जाती है।
उपग्रहीय आंकड़ों के हिसाब से दतिया, दामोह, सागर और पन्ना जिलों को छोड़कर बुन्देलखंड के शेष जिलों में हरित क्षेत्र नाममात्र बचा है। इसलिए पहले की तरह वर्षा जल पेड़ की जड़ों से रिस कर जमीन के अंदर नहीं संचित हो पाता। राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन के तहत यहां वर्षा जल संचयन के लिए तालाब, पोखर बनाकर वर्षा जल इकट्ठा करने की जरूरत एक लम्बे समय से व्यक्त की जा रही है।

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