नया मुहावरा : अब पानी के लिए बहेगा पैसा

लखनऊ। किसी अभियान पर पानी की तरह पैसा बहाने का मुहावरा पुराना है। भूजल संरक्षण के मामले में यूपी की नौकरशाही ने अपनी कार्यशैली से जो नया मुहावरा गढ़ा है, उसके मुताबिक अब यहां पानी के लिए पैसा बहाया जायेगा। वर्षो से भूगर्भ जल स्तर में गिरावट की अनदेखी करने के बाद सल नीति निर्धारकों के कान पर जूं रेंगी जब आधे से ज्यादा विकास खंडों में पानी की समस्या 36 जिलों के 141 विकास खंडों में सर के ऊपर पहुंच गयी। यहां भूजल संरक्षण के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में दो हजार करोड़ रुपये लागत की योजना प्रस्तावित है।
कृषि व जल वैज्ञानिक '80 के दशक से इस संकट के प्रति आगाह करते रहे हैं। तब संकट मामूली था और समाधान आसान। बहरहाल, तब न सरकार की नींद टूटी, न अंधाधुंध जल दोहन करनेवालों की। अब संकट का विस्तार प्रदेश के आधे से ज्यादा हिस्सों में हो चुका है। बुंदेलखंड में कुएं व अन्य प्राकृतिक जलस्रोत सूखे पड़े हैं, जबकि मध्य व पश्चिमी जिलों में हैंडपंप-ट्यूबवेल जलस्तर नीचे खिसक जाने से बेकार हो गये हैं। देवरिया, सोनभद्र, मिर्जापुर, फैजाबाद जैसे कई पूर्वी जिलों के अलावा राजधानी लखनऊ व रायबरेली भी इस संकट के चपेट में है।
भूगर्भ जल विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक सूबे में 11 ऐसे विकास खंड हैं, जिनमें भूगर्भ जलस्तर में गिरावट की सालाना दर 50-60 सेमी है। ये विकास खंड एटा, फतेहपुर, सुल्तानपुर, इटावा, बागपत, मुजफ्फरनगर व सहारनपुर जिलों से सम्बन्धित हैं। कृषि वैज्ञानिक इसे गंभीर संकट मानते हैं, यद्यपि करीब पचास अन्य विकास खंडों में भी हालात चिन्ताजनक हैं, जहां 20-50 सेमी वार्षिक दर से भूगर्भ जल स्तर गिर रहा है।
भूगर्भ जल विभाग विकास खंडों को चार श्रेणियों में रखकर भूगर्भ जल स्तर का आकलन करता है, जिसके मुताबिक 682 विकास खंड फिलहाल सुरक्षित क्षेणी हैं। जो 138 विकास खंड समस्याग्रस्त हैं, उनमें 37 अति-दोहित, 13 क्रिटिकल व 88 सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं। 11वीं पंचवर्षीय योजना में जिन 36 जिलों के लिए जल संरक्षण परियोजना प्रस्तावित है, उनमें बुंदेलखंड के सभी जिले शामिल हैं।
शहर भी संकटमुक्त नहीं
अधिकांश शहरी क्षेत्रों में भी भूगर्भ जल स्तर में सालाना 22-56 सेमी गिरावट दर्ज की जा रही है। राजधानी लखनऊ 56 सेमी वार्षिक गिरावट दर के साथ सर्वोपरि है, जबकि यह दर कानपुर में 45 सेमी, आगरा में 40 सेमी, वाराणसी में 23 सेमी, अलीगढ़ में 40 सेमी, गाजियाबाद में 22 सेमी तथा मथुरा में 36 सेमी है। भूजल स्तर में इस दर गिरावट की मुख्य वजह अनियोजित जल दोहन है, जिसे नियंत्रित करने के लिए प्रदेश में कोई नीति नहीं है। सरकार ने सभी सरकारी भवनों की छतों पर वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित करने की अनिवार्यता जरूर कर रखी है, लेकिन इसका भी महज रस्मी पालन हो रहा है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक डॉ. डीपी सिंह व भूजल वैज्ञानिक डॉ.धनेश्वर राय के मुताबिक, सूबे के करीब 41 लाख हेक्टेयर पठारी क्षेत्र में पहले ही सीमित भूजल भंडार है। यहां अधिकांश वर्षा जल नदियों में बह जाता है। लगातार चार वर्षो से चल रहे सूखे ने इस क्षेत्र में हालात 'कोढ़ में खाज' जैसे कर दिए हैं। उधर, गहरे भूजल स्तर वाले मैदानी क्षेत्र में भी न्यूनतम रिचार्ज व अधिकतम दोहन के कारण जल स्तर में तीव्र गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे करीब 45 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अधिसंख्य स्थानों पर भूजल स्तर दस मीटर या इससे अधिक है।

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