संकट में पावन धारा

जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में पर्यावरण असंतुलन, वैश्विक तापमान में वृध्दि तथा भूमंडल पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करके जो निष्कर्ष निकाला गया, उसके अनुसार मिस्र की नली, चीन की यांगत्सी, मेकाम भारत की गंगा सहित विश्व की दस बड़ी नदियां सन 2040 के आसपास सूख जाएंगी। भारतीयों के लिए यह निष्कर्ष एक त्रासद चेतावनी है क्योंकि अमेरिकी और यूरोपीय नदियों की तरह गंगा मात्र एक जलस्रोत नहीं है बल्कि धर्म, आस्था व संस्कृति से जुड़ी है। ऋग्वेद में इस मां कहकर प्रणाम किया गया है। विश्व की तेरहवीं सबसे बड़ी नदी गंगा की उत्पत्ति और गुण के साथ कई मिथ जुड़े हैं।
पंडित नेहरू ने भारत एक खोज में लिखा है- 'आदि से आज तक यह भारत की सभ्यता और संस्कृति, साम्राज्याें के उत्थान और पतन, बड़े और छोटे शहरों के साथ साथ समृध्दि, पूर्णत्व एवं वैराग्य की गाथा है...। 21 जून 1954 को लिखी वसीयत में नेहरू जी ने लिखा- 'गंगा मेरे लिए निशानी है प्राचीनता की, यादगार की जो बहती आई है। वर्तमान तक और बहती चली जा रही है। भविष्य के स्वर्णिम महासागर की ओर। उसे मेरा शत शत प्रणाम...'।
वाराणसी के प्रसिध्द प्राचीन संकटमोचन मंदिर की आठवीं पीढ़ी के महंत और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर व दुनिया के जाने माने हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग वीरभद्र मिश्र गंगा के बारे में अक्सर भावुक हो जाते हैं। उनका कहना है कि गंगा मां है, इसके बिना हमारे जीवन में कुछ भी नहीं है।... गंगा में मैं प्रतिदिन स्नान करता हूं और जीवन के अंतिम क्षण तक इतना सामर्थ्य चाहता हूं कि गंगा में डुबकी ले सकूं।
आखिर क्या है गंगा में जो नील, चार्ल्स, यांगत्सी या टेम्स में नहीं है? ये नदियां प्रदूषण रहित होने के बाद भी सीधे पानी के काम नहीं आती, न ही गंगा की तरह कोई जन आस्था, श्रध्दा या संस्कृति जुड़ी हुई है।गंगा जल का आचमन करते है।, स्नान करते हैं। हिंदू मृत्यु के समय मुख में डालते हैं। भारत में 14 बड़ी नदियां हैं मगर उन्हें गंगा का- सा महत्व नहीं मिला है। कारण है इसके जल की पवित्रता। जयपुर के सिटी पैलेस में सन् 1922 में दो घड़े में बंद गंगा जल जब सन् 1962 में खोला गया तब भी वैसा का वैसा ही निकला। न सड़न, न दुर्गंध। वस्तुत: गंगाजल में जीवाणुभोजी (बैक्टी-रियोफाजो और रासायकि तत्व मिले होते हैं। ये ये तत्व गंगाजल में गंगोत्री से ऋषिकेश तक के मार्ग में पर्वतीय घाटियों, जंगलों से गुजरते हुए जड़ी-बूटियाें से समृध्द मिट्टी के संसर्ग में आने से मिलते हैं। नदी की पवित्रता का एक पैमाना है उसके जल का डीओ (घुलित आक्सीजन) और बीडीओ (बायोलोजिकल आक्सीजन डिमांड) जल में इनका स्तर क्रमश: पांच मिग्रा/ली तथा तीन मिग्रा/ली तक होने चाहिए। आज तो खतरनाक रसायनों के नदी में छोड़े जाने के कारण बीओडी स्तर छह तक पहुंच गया है जो यह प्रदर्शित करता है गांगा का जैव- पारिस्थितिकी संतुलन/ जैव विविधता खतरे में पड़ गई है। नब्बे के दशक में पटना के विभिन्न जलस्रोतों से जल और गंगाजल लेकर दोनों के साथ अलग अलग जीवाणु डाल कर प्रयोग किया गया। दोनों में 65 फीसद एरारीशिया कोलाई, 75 फीसद, स्ट्रोप्टोकोकस, 99.5 फीसद विब्रओ कालरी डालकर दोनों की जीवाणु भोजी क्षमता का अध्ययन किया गया। यह पाया गया कि गंगाजल में सारे जीवाणु 24 घंट में खत्म हो गए जबकि अन्य जल में सभी जीवाण्ाु मौजूद थै।
पौराणिक आख्यानों की मानतें तो जब गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरा पड़ा तो उतरने से पहले उसने आशंका व्यक्त की 'जब मैं स्वयं पृथ्वी तल पर गिरूं तो कोई भी तो मेरा वेग धारण करने वाला होना चाहिए, अन्यथा हे राजन्! मै। पृथ्वी फोड़कर रसातल में चली जाऊंगी। इसके अतिकरक्त मैं इस कारण भी पृथ्वी पर नहीं आना चाहूंगी क्योंकि लोग मुझमें पाप धोएंगे, मैं उन पापों को कहां धोऊंगी?
मनुष्य के प्रति गंगा की यह आशंका आज सच साबित हो रही है। गंगा आज अपने ही मानव पुत्रों के हाथों मृत्यु के खतरे से जूझ रही है। डॉ. अशोक कुमार शुक्ल ने अपने काव्य ग्रंथ 'पर्यावरण काव्यम' में गंगा की यही व्यथा व्यक्त की है- पतितों को पवित्र करने से गंगा अपवित्र नहीं हुई बल्कि पतितों द्वारा फेंके गए प्रदूषित पदार्थों से वह दूषित हुई है।
आज गंगा के अस्तित्व को दो ओर से खतरा है : पहला, औद्योगिक तकनालोजी क्रांति के फलस्वरूप वैश्विक तापमान में वृध्दि। दूसरा, प्रदूषण के कारण। बीसवीं शताब्दी के पांचवे दशक में पूरे विश्व में उद्योग, तकनीक, सूचना क्रांति आई। पृथ्वी का मिजाज गर्म होने लगा। प्रति दशाब्दी 0.2 सेंटीग्रेड तापमान में वृध्दि हो रही है। भूताप में वृध्दि के लिए ग्रीन हाउस गैसों के वायुमंडल में खतरनाक स्तर तक उत्सर्जन जिम्मेदार है। सन् 2010 तक भूताप में 6.4 सेंटीग्रेड तक वृध्दि का अनुमान है। उस तापमान वृध्दि का सबसे बुरा प्रभाव बर्फ पर पड़ रहा है। दुनिया के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। संसार के हिमनदों पर भूताप वृध्दि का अध्ययन करने वाले हिमनद- वैज्ञानिक एल थामसन की अध्यक्षता में एक दल ने विस्तृत अध्ययन किया। उन्हाेंने एक सूचना और दी कि तिब्बत के पठार में आक्सीजन-16 और आक्सीजन-18 के अनुपात में असंतुलन है। उस परिमंडल में आक्सीजन 18 की मात्रा ज्यादा थी जो तापवृध्दि में सहायक है। थामसन ने बताया कि हिमालय के 67 फीसद हिमनद खिसक रहे हैं। गंगोत्री हिमनद 25 मीटर प्रतिवर्ष की दर से खिसक रहा है। नतीजा पहले बाढ़, फिर सूखा। एक नमूना अध्ययन के अनुसार उत्तरकाशी में गंगा का स्तर अगले 20 साल में 20-30 प्रतिशत बढ़ जाएगा उसके बाद अगले दस वर्षों में अपने मूल स्तर से 50 प्रतिशत घट जाएगी।
गंगोत्री से गंगासागर तक 2500 किमी तक यात्रा पूरी करने वाली, 40 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जल अन्न आदि देने वाली गंगा में 300 मिलियन गैलन मानव मल-मूत्र और अन्य अपसर्ज्य गिरते हैं। ऋषिकेश के प्रयाग तक गंगा में 132 नालों से कचरा गिरता है। अकेले फाफामऊ से इलाहाबाद तक ही 73 नाले हैं। (मात्र इलाहाबाद में 61 नाले हैं), कानपुर में 22, हरिद्वार में 20 नाले हैं। गंगा किनारे 27 बड़े शहरों में 146 कल कारखाने चिन्हित किए गए जो अपना रासायनिक कचरा गंगा में गिराते हैं। ऐसे तो 76 अकेले कानपुर में ही है। दवा, रंग, रोगन, कागज, चमड़ा, उर्वरक, तेलशोधक उद्योगों के अपसर्ज्य गंगा के पानी के लिए भयंकर रूप से हानिकारक हैं। इनमें सबसे हानिकारक डीटीटी है जो जल के साथ शरीर में प्रवेश करता है। अमेरिकी, यूरोपीय नदियों में डीटीपी बहाने पर सख्त प्रतिबंध हैं, क्योंकि यह कैंसर का एक बहुत बड़ा कारक है। विभिन्न त्योहारों पर पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन नदियों में किया जाता है। मूर्तियाें को रंगने में जो खतरनाक रसायन इस्तेमाल होते हैं उनमें प्रयुक्त तेज जहर कैडमियम, पारा, क्रोमियम, सीसा, चूना, सीमेंट, प्लास्टर ऑफ पेरिस आदि भी पानी में घुल जाते हैं। वाराणसी की बात करें। 60 हजार लोग रोज गंगा में नहाते हैं। यहां के गंगाजल के नमूना विश्लेषण में प्रति 100 मिली में 50,000 फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया मिला जो सामान्य से 10 हजार फीसद ज्यादा है। गंगा का 1760 किमी हिस्सा प्रदूषित है जो अन्य सभी भारतीय नदियों से बहुत ज्यादा है। नर्मदा 120 किमी, सिंधु का 70 किमी, ताप्ती का 160 किमी और साबरमती का 65 किमी हिस्सा प्रदूषित है।
सस्ती लागत पर ज्यादा बिजली प्राप्त करने की हवस ने हमारी सभी नदियों को बांध दिया। हिमालयी नदियों पर करीब 200 बांध है। गंगा पर तीन बड़े बांध हैं- अपर गंगा कैनाल- लोअर गंगा कैनाल, (हरिद्वार), फरक्का (बंगाल), और टिहरी (उत्तरांचल)। 20 मझोले दर्जे की जल-विद्युत परियोजनाएं हैं। गंगा की कमर तोड़ने के लिए ये योजनाएं कम नहीं हैं। 1916 में हिन्दू प्रतिनिधियों और ब्रिटिश सरकार के बीच इस मुद्दे पर समझौता हुआ था कि गंगा की प्राकृतिक धारा से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। ब्रिटिश सरकार ने तो समझौते का पालन किया, मगर स्वतंत्र भारत की सरकार ने तो जरा भी ख्याल नहीं किया।

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