ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं : हिमाचल के बिजली प्रोजेक्ट खतरे में

- नवभारत टाइम्स
शिमला (एनबीटी न्यूज) : बिजली प्रोजेक्टों और बागवानी पर निर्भर हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था को ग्लोबल वॉर्मिंग चौपट कर सकती है। दरअसल, ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण प्रदेश की नदियों के जल के मुख्य स्त्रोत ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हालात ऐसे ही रहे तो ग्रीनहाउस गैसों के कारण अगले ४० सालों में हिमालय के ग्लेशियर गायब हो जाएंगे। इससे बहुत सी नदियों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा, साथ ही संकट में पड़ जाएंगी बहुत सी जलविद्युत परियोजनाएं। जल की कमी का बुरा असर बागवानी पर भी पड़ेगा।

हिमाचल प्रदेश विज्ञान एवं तकनीकी परिषद ने प्रदेश सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में २२ हजार मेगावॉट जलविद्युत उत्पादन की क्षमता है। हिमाचल प्रदेश में बहने वाली सतलुज में ही १० हजार मेगावॉट बिजली उत्पादन की क्षमता है। प्रदेश के चालू बिजली प्रोजेक्ट मुख्यतया नदियों के पानी से बनाए गए हैं। हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने से जहां बेवक्त की बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, वहीं पर लंबी अवधि की जलविद्युत परियोजनाओं के लिए निरंतर पानी न मिलने से इनके ठप होने का खतरा भी बढ़ रहा है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिक बी.डी. आचार्य ने भी शिमला में कहा कि सिकुड़ते ग्लेशियर चिंता का विषय हैं।

पालमपुर स्थित चौधरी श्रवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने अपनी रिपोर्ट में सतलुज नदी के बेसिन पर स्थित सभी छोटे-छोटे बिजली प्रोजेक्टों को बंद होने के कगार पर बताया है। पालमपुर स्थित केंद्र ने तापमान में लगातार बढ़ोतरी के आधार पर आने वाले सालों का एक तापमान चार्ट बनाया है। केंद्र ने सतलुज नदी के चीन स्थित हिस्से में आ रहे बदलाव और भूस्खलन से बन रही झीलों के अध्ययन के लिए चीन से भी सहयोग जरूरी बताया है।

इस सभी संभावित खतरों को देखते हुए केंद्र की सहायता से हिमाचल में क्षेत्रीय ग्लेशियर अध्ययन केंद्र की स्थापना के लिए हरी झंडी मिल गई है। इसके लिए डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार करने के लिए एक चार सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो रिपोर्ट जनवरी में केंद्र सरकार को सौंप देगी।

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