सिक्किम क्षेत्र में लगातार पिघल रहा ग्लेशियर : पार्वत्य क्षेत्र में मानव अस्तित्व को खतरा

सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग)। सावधान! पार्वत्य क्षेत्र में मानव के अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडरा रहा है। यदि शीघ्र कोई उपाय नहीं किया गया तो यह आशंका सच में तब्दील हो सकता है। इसकी वजह बनेगा सिक्किम क्षेत्र में लगातार पिघल रहा ग्लेशियर। इसी ग्लेशियर के पिघलने की वजह से पार्वत्य क्षेत्र में इस वर्ष ज्यादा भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। उत्तर बंगाल में मौसम का बदलाव इसी कारण से आता जा रहा है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया ने अपनी रिपोर्ट में यह उल्लेख किया है। डा. कोटलिया कुछ दिनों से इस मुद्दे पर अध्ययन कर रहे हैं। उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि सिक्किम क्षेत्र में ग्लेशियर के लगातार पिघलने से भूमंडलीय ताप का दबाव बढ़ता जा रहा है। यदि जल्द इस पर नियंत्रण का कोई उपाय नहीं किया गया तो पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों का जीवन बचना मुश्किल हो जायेगा। उत्तर बंगाल के मौसम विशेषज्ञ सुबीर सरकार ने भी इस तथ्य को स्वीकारा है। उत्तर बंगाल के मौसम के अतीत पर नजर डालें तो पायेंगे कि यह जनवरी से दिसंबर तक अधिकतम तापमान 32 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 12 डिग्री सेल्सियस तक हुआ करता था। पिछले दो वर्षो में यह अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम माइनस शून्य तक हो गया है। डा. कोटलिया को सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि हिमालयन क्षेत्र की नदियों के जलस्तर में लगातार गिरावट आ रही है। अबतक यह गिरावट दस प्रतिशत रिकार्ड की गयी है। हालांकि गिरावट लगातार जारी है। इसे नहीं रोका गया तो भविष्य में पानी की उपलब्धता मात्र 15 सौ घनमीटर तक रह जायेगी। वर्तमान में इसकी मात्रा 2000 घनमीटर तक है। मानव को वास्तविक आवश्यकता 17 सौ घनमीटर पानी की होती है। यह स्थिति भविष्य में मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली है।

इसका भी मुख्य कारण ग्लेशियर का लगातार सिकुड़न माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि न्यूएस्ट के अनुसंधान में पता चला था कि भूमंडलीय ताप में वृद्धि का असर ग्लेशियर पर बहुत तेजी से हो रहा है। जंगलों का विनाश, औद्योगिक प्रदूषण, अनियंत्रित पर्वतीय क्षेत्रों में बनाये जा रहे मकान इसके कारण हैं। ऐसे में यह जानकारी जरूरी है कि आखिर ग्लेशियर है क्या? किसी पर्वतीय विशाल भूखंड पर सैकड़ों वर्षों तक लगातार बर्फ का गिरकर जमा होता रहना ही ग्लेशियर कहलाता है। ग्लेशियर का बड़ा भंडार उत्तर बंगाल के पडोसी राज्य सिक्किम में है। इन ग्लेशियरों में 75 प्रतिशत जल का भंडार है। इनके पिघलने का मतलब है आम आदमी के जीवन का क्षीण होना। व‌र्ल्ड फार नेचर के एक शोध में कहा गया है कि ग्लेशियर पृथ्वी पर जीवन को बनाये रखने में सहायक होते हैं। प्रतिवर्ष यह एक से 15 मीटर तक सिकुड़ रहा है। आकड़ों से पता चलता है कि 1935 से 1956 तक ग्लेशियर के पिघलने का सिलसिला कम था। 1962 तक ढाई गुणा बढ़ा। इन दिनों इसमें पांच गुणा तक इजाफा हो गया है। सिक्किम क्षेत्र में बीस, जम्मू कश्मीर में 3136, उत्तराखंड में 917, हिमाचल प्रदेश में 48, अरुणाचल में 162 ग्लेशियर हैं। सिक्किम, दार्जिलिंग और उत्तर बंगाल सहित असम क्षेत्र में भूस्खलन काफी भूस्खलन हुए और बाढ़ भी सर्वाधिक आयी। इसका प्रमुख कारण भी सिक्किम के ग्लेशियर का पिघलना है। व‌र्ल्ड वाइल्ड फंड ग्लोबल क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम के निदेशक जेनिफर ने इस बात को स्पष्ट किया था कि वाहनों, विलासिता के उपयोग में आने वाले फ्रीज, औद्योगिक इकाई के कारण 1.8 से 1.26 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान में बढ़ोतरी हुई है। फ्रीज से निकलने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस से एक हजार लोग रोज प्रभावित होते हैं।
साभार- http://in.jagran.yahoo.com

Hindi India Water Portal

Issues