हम नदी बचाने आये है

कविता

हम लोग है ऐसे दीवाने , हम नदी बचाने आये है
तेरा खेलगांव एक साजिश है, हम इसे मिटने आये है

ये नदी नहीं तो क्या दिल्ली, क्या जीवन क्या सरकार तेरी
ये नदी बिना क्या जीत तेरी, ये नदी बिना क्या हार मेरी
तुम चांदी की खनक मॆं खोये हुए, हम शंख बजाने आये है

यहाँ माल बने यहाँ मयखाने, ये ख्वाब है या एक पागलपन
ये कुछ भी हमें मंजूर नहीं, तुझे होश दिलाने आये है

यहाँ पेड लगे, यहाँ खेत जुते, यहाँ पानी हो और हो जीवन
तेरा खेलगांव कहीं और सही, तुझे ये समझाने आये है

तुम नींद में ऐसे खोये हो, ये स्वप्न नहीं, बेहोशी है
हम सूरज लेकर हाथो में, तुझे आज जगाने आये है

जहाँ भूख से मरती हो जनता,
जहाँ प्यास से मरती हो जनता,
और नेता खेल की बात करें
तब वक़्त है आगे आने का
चलो मिलकर दो दो हाथ करे

ये जनता तुझे ठुकरायेगी, वो दिन भी ज्यादा दूर नहीं
ये जनता की अदालत है, तुझे याद दिलाने आये है
हम नदी बचाने आये है

- कपिल मिश्रा , यूथ फॉर जस्टिस
साभार- http://www.bhojpatra.com/

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