ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना खतरनाक

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने कहा है कि ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना खतरनाक संकेत है। उन्होंने इसके लिए दुनिया के उन विकसित राष्ट्रों को जिम्मेदार ठहराया जो अपने देश के नागरिकों को सुविधा सम्पन्न बनाने को दुनिया के गरीब एवं अल्प विकसित राष्ट्रों के हितों की सरासर अनदेखी कर रहे है।
श्री खंडूरी एशिया में जलवायु परिवर्तन विषयक अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार के उदंघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए विकसित राष्ट्रों को सर्वाधिक जिम्मेदार ठहराया। मुख्यमंत्री ने कहा कि वायुमंडल में कार्बनडाइ आक्साइड तेजी से बढ़ती मात्रा को नियंत्रित करने के लिए अब विकसित राष्ट्रों में कार्बन ट्रेडिंग का दौर शुरू हो चुका है। उन्होंने कहा कि ग्लेशियरों का पिघलना वास्तव में खतरनाक संकेत है। गोमुख ग्लेशियर जिस गति से पिघल रहा है उसे देखते हुए क्षेत्र की प्रमुख नदियों का अस्तित्व संकट में पड़ रहा है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में कुछ नदियां लुप्त प्राय: हो सकती है। उन्होंने धार्मिक पर्यटन स्थलों में तेजी से फैल रही गंदगी पर भी चिंता जताई और इस पर अंकुश लगाए जाने पर बल दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्डवासी पर्यावरण की महत्ता को भलीभांति समझते है। उत्तराखण्ड में वनों के अवैध कटान को रोकने के लिए पहाड़ की एक ग्रामीण महिला ने ही कई दशक पूर्व चिपको आंदोलन का सूत्रपात किया था। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में वन सम्पदा तथा जड़ी-बूटियों का अपार भंडार है। जरूरत इनके संरक्षण तथा संवर्धन की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन जैसे ज्वलंत मुद्दे पर नैनीताल में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आएंगे।
सेमीनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए पंजाब विवि के कुलपति प्रो. आरसी सोबती ने कहा कि ग्लोबल वार्मिग की परिस्थितियां दिन पर दिन गहराती जा रही है। उन्होंने कहा कि भूमंडलीय ताप में वृद्धि के कारण ग्लेशियरों का पिघलना जारी है। प्रो. सोबती ने कहा कि वायु प्रदूषण के लिए आज हम औद्योगिकीकरण को जिम्मेदार ठहराते है लेकिन छोटे स्तर पर फैलाए जा रहे प्रदूषण को नजरअंदाज कर रहे है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को भारत ही नही अपितु समूचे दक्षिण एशियाई महाद्वीप पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिग से मौसम चक्र पर पड़ रहे विपरीत प्रभावों के अध्ययन हेतु मौसम वैज्ञानिक गहन शोध कार्यो में लगे है, इनके सार्थक परिणाम अवश्य सामने आएंगे। कुमाऊँ विवि के कुलपति प्रो. सीपी बर्थवाल ने कहा कि पर्वतराज हिमालय का इस क्षेत्र विशेष की जलवायु से गहरा संबंध है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षो में हिमालयी क्षेत्र की नदियों के जल स्तर में लगातार गिरावट दर्ज की गई है जो भविष्य के लिए खतरे का संकेत है।
जापान से पहुंचे मौसम वैज्ञानिक टी कोशावा ने ग्लोबल वार्मिग की समस्या को बहुत गंभीर समस्या बताया। उन्होंने मौसम विज्ञान के क्षेत्र में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के शोधार्थियों को जापान में आमंत्रित करने का आश्वासन दिया। बंगलौर से पहुंचे मौसम वैज्ञानिक डा. वीके गौर ने कहा कि ग्लोबल वार्मिग के कारणों का गहन अध्ययन करने के लिए आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करना होगा। मंडलायुक्त एस राजू ने जलवायु परिवर्तन को लेकर नैनीताल में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार को बहुत महत्वपूर्ण बतलाया। सेमीनार के संयोजक एवं यूजीसी सांइटिस्ट डा. बीएस कोटलिया ने कहा कि ग्लोबल वार्मिग के गंभीर दुष्प्रभावों के परिणाम आज हमारे सामने है। तापमान में लगातार हो रही वृद्धि, ग्लेशियरों का पिघलना तथा मौसम चक्र में हो रहे परिवर्तन ग्लोबल वार्मिग के ही दुष्परिणाम है। प्रशासनिक अकादमी आडिटोरियम में आयोजित उद्घाटन सत्र में कुमाऊँ विवि के प्राध्यापक, शोध छात्र तथा देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे मौसम वैज्ञानिक उपस्थित थे।

Hindi India Water Portal

Issues