जल स्त्रोतों का संरक्षण


उत्तर प्रदेश में जल के परंपरागत स्त्रोतों को अतिक्रमण से मुक्त कराने का सरकार का निर्णय अपने आप में इस बात की जानकारी देता है कि अभी तक उनकी अनदेखी ही हो रही थी। तालाब, पोखर और झील जैसे जल के परंपरागत स्त्रोत केवल अतिक्रमण के ही शिकार नहीं है, बल्कि हर तरह से दुर्दशाग्रस्त भी हैं। एक ऐसे समय जब भावी जल संकट से निपटने के लिए परंपरागत जल स्त्रोतों को संरक्षित करने पर बल दिया जा रहा है तब हर हाल में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तालाब, पोखर और झील अतिक्रमण से मुक्त हों तथा उनका परंपरागत स्वरूप बनाए रखने के लिए समुचित रख-रखाव हो। यह किसी से छिपा नहीं कि देश के विभिन्न हिस्सों की तरह उत्तर प्रदेश में भी जल के परंपरागत स्त्रोतों की व्यापक पैमाने पर अनदेखी हो रही है। इसका परिणाम यह है कि जो तालाब और पोखर कभी गांवों व कस्बों का स्थायी अंग हुआ करते थे वे भी अनेक स्थानों पर लुप्त होते जा रहे हैं। यही स्थिति कुओं की भी है। अनेक कस्बे ऐसे हैं जहां कुएं अब ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं।
यह पहली बार नहीं है जब राज्य में जल के परंपरागत स्त्रोतों को संरक्षित करने के निर्देश दिए गए हों, लेकिन ऐसे निर्देशों और घोषणाओं से अब तक कुछ हासिल नहीं हुआ। सच तो यह है कि भूजल संरक्षण की जो भी योजनाएं हैं वे कागजों पर ही अधिक चल रही हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि जल संरक्षण से जुड़ा पूरा परिदृश्य ही निराशाजनक स्थिति में है। जल के परंपरागत स्त्रोत या तो सूखते जा रहे हैं या उन पर तरह-तरह के कब्जे हो रहे हैं। शासन को यह समझना होगा कि तालाबों, पोखरों और झीलों को अतिक्रमण से मुक्त करने का निर्देश देने मात्र से बात बनने वाली नहीं है। यह सुनिश्चित करना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि इस निर्णय पर सही तरह अमल हो। एक ओर जहां यह जरूरी है कि राज्य सरकार जल स्त्रोतों के संरक्षण के संदर्भ में अपने दायित्वों का निर्वहन करे वहीं समाज को भी इसके प्रति जागरूक बनाना होगा। तालाबों, पोखरों और दूसरे जल स्त्रोतों का समुचित रख-रखाव तो निरंतर होना चाहिए और यह तभी संभव है जब राज्य सरकार जल संरक्षण से संबंधित योजनाओं को अपनी प्राथमिकता सूची में शामिल करेगी।

Hindi India Water Portal

Issues