धमतरी के किसानों की व्यथा कथा - युवराज गजपाल

आज मैने अपने घर फोन किया तो पता चला कि हम अपने खेत मे सिंचाई के लिये जिस ट्युब-वेल का उपयोग करते है उसने जल स्तर मे कमी के कारण् काम करना बंद कर दिया है । हमें अभी पूरी फसल पकाने के लिये 15 दिन पानी की और जरुरत थी ।
हमने दूसरे किसान से पानी देने का आग्रह किया है । उसने हमें पानी देने के लिये मंजूरी दे दी है जब तक उसके बोरवेल मे पानी है । अगर उसके बोरवेल मे पानी कुछ समय बाद खत्म हो जायेगा । तब हमारी फसल पूरी तरह बर्बाद हो जायेगी । इस स्थिति मे हमें केवल 50 % या उससे भी कम फसल मिल पायेगी।

ये कहानी केवल मेरी नही है , बल्कि धमतरी इलाके के सैकडो किसानो की है । मैने इस दर्द महसूस को किया है । ये स्थिति 3 साल पहले भी हुई थी उस समय मैं अपने गाँव मे ही था । अपने फसल को अपने आंखो के सामने मरते हुये देखना किसी और पीड़ा से बहुंत ज्यादा होती है । सवाल केवल पैसो का नही होता, किसानो को अपने फसल से अपने बच्चो जैसा लगाव होता है और अपने आंखो के सामने आप उस फसल को मरते हुये देखते है जिसे आपने बड़े जतन और प्यार से बढ़ाया है । किसान के लिये इससे बड़े दुख कि बात और कुछ नही हो सकता ।

मेरी कहनी तो कुछ हद तक ठीक है लेकिन मैं एक दूसरे किसान कि कहानी बताता हूं ।जो लोग ड्रीम छत्तीसगढ़-2 के पहले दिन शामिल हुये होंगे उन लोगों को पता होग कि उस दिन धमतरी के कुछ किसान भी बैठक में भाग लेने आये थे । ये कहानी उनमे से एक किसान की है । उसका बोरवेल 15 दिन पहले बंद हो गया था , उसने अपने पास वाले किसानो से पानी मांगा( उनमे से मेरा परिवार भी एक था )। उसे कही से भी पानी नही मिल पाया क्योंकि बाकि लोगों को भी यही आशँका थी कि उनके फसल के लिये भी पानी पर्याप्त नही होगा । उसने अब सारी उम्मीदो का दामन छोड़ दिया है और ये फैसला किया है कि फसल को जानवरों को चराने के लिये छोड़ दिया जाये । उसने सोचा है कि जब फसल के पकने की सम्भावना पूरी तरह समाप्त हो चुकी है , तो कम से कम इससे जानवरो का पेट तो भरेगा । वह अभी तक कम से कम 15 से 20 हजार रुपये तक इस फसल पर खर्च कर चुका होगा । और उसे अपने इस फसल से 0 पैसे मिलेगा । मुझे नही लगता कि ऐसा कोई और कारोबार होगा जिसमे पूरा का पूरा पैसा डूब जाये ।

क्या ऐसे सैकड़ो किसानो के बारे मे सोचने वाला कोई है ? शायद मीड़िया और सरकार इस और ध्यान तभी देगी जब बांकि जगह के किसानो कि तरह यहाँ भी लोग आत्म्हत्या करने लगेंगे । अगर आप मेरे उपर विशवास करेंगे तो मै आपको बता दूं कि ऐसा वाकया छत्तीसगढ में हो चुका है । मैं ब्यक्तिगत रूप से उस किसान को जानता हूं जिसकी आत्महत्या कि वजह अप्रत्यक्ष तौर से उसके फसल में पानी की कमी होना था । मुझे दुख होता है कि किसान की इस समस्या के बारे मे कोई बात तक करने के लिये तैयार नही होता ।

दोस्तो छत्तीसगढ कि अधिकतर लोग खेती से जीवन यापन करते है । और किसानो की हालत बहुंत ज्यादा खराब है । अगर हमें छत्तीसगढ के विकास के बारे मे सोचना है तो मैं समझता हूं कि हम खेती के उपर चर्चा को छोड़कर आगे नही बढ़ सकते । अगर हम इसके बारे मे नही सोचे तो हमारे भी किसानो की हालत आँध्रप्रदेश् , महाराष्ट्र और पंजाब के किसानों जैसे होने मे देर नही लगेगी । मुझे कई बार ऐसा भी लगता है कि कही हमे इसी का इंतजार तो नही कर रहे है । ताकि उसके बारे मे हमें बाद मे अखबारो मे लिखने का मौका मिल सके ? छतीसगढ़ के किसानो की आत्महत्या के उपर हमें सँगोष्टी आयोजित करने का मौका मिल सके ? कारण और निदान पर अपने शोध पत्र international journal मे प्रकाशित कर सके ?

मैंने सिचाई पर चर्चा की शुरुवात ऐसी परिस्तिथियों को रोकने के लिये किया था। मुझे खुशी होगी अगर इस ग्रुप में किसानों की इस स्थिति के उपर चर्चा हो ।
आपका,
युवराज गजपाल

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