प्रकृति की अमूल्य देन `जल' पर संकट

श्री राजीव रंजन वर्मा

धरती पर जीवन के लिए पहली शर्त है-जल का प्राकृतिक रूप में अस्तित्व। दूसरे शब्दों में जल ही जीवन है और इसे दूषित होने से बचाना है। आज जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि के कारण बढ़ती हुई विभिन्न प्रकार के आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कल-कारखानों और जैव अवशिष्ट के अलावा खतरनाक रसायनों को ठिकाने लगाने की समस्या प्रतिदिन विकट होती जा रही है। अगर इस पर उचित नियंत्रण नहीं रखा जाए तो विभिन्न प्रकार के प्रदूषक तत्व पानी के सम्पर्क में आकर उसे प्रदूषित कर देते हैं। अगर जल ही प्रदूषित हो गया तो सारा जैव-जगत प्रदूषित होकर समाप्त हो जायेगा। जल प्रदूषण की समस्या के कारगर निदान के लिए भारत सरकार ने १९७४ में जल प्रदूषण नियन्त्रण और निवारण अधिनियम बनाया। अब इसे लागू रखना और इस पर उचित निगरानी रखते हुए आवश्यकतानुसार प्रबन्ध करना हम सबका दायित्व है।

हमारे पूरे भूमण्डल पर तीन-चौथाई भाग में समुद्र है। समुद्र के जल का हम सीधे इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। समुद्र से वाष्प बनकर उड़ने वाला जल ही वर्षा के रूप में पुन: धरती पर आता है। वर्षा का जल या तो पृथ्वी में समा जाता है या नदियों, तालाबों अथवा झरनों/झीलों के रूप में बदल जाता है। जल हरेक दृष्टि से ``मानव जीवन का आधार'' है। जल में विभिन्न प्रकार के लवण और रसायन घुले रहते हैं, इसलिए पूर्ण शुद्ध जल मुश्किल से ही हमें प्राप्त हो पाता है। जल में दूषित पदार्थ होने की संभावना भी रहती है। अनेक बैक्टीरिया पानी में मिल जाते हैं। शुद्ध जल स्वादरहित, रंगरहित तथा गन्धरहित होना चाहिए। व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य के लिए केवल शुद्ध जल ही उपयोगी होता है। अशुद्ध जल अर्थात् बैक्टीरिया युक्त जल से अनेक प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है। मुख्य रूप से इससे पाचन क्रिया बिगड़ जाती है, भूख घट जाती है साथ ही उल्टी होना, दस्त होना, भोजन का न पचना आदि भी इसी अशुद्ध जल के परिणाम हैं। इसके अतिरिक्त हैजा, पेचिश, तपेदिक तथा टायफाइड जैसे रोग बैक्टीरिया युक्त जल से भी हो सकते हैं।

वायु के समान ही जल के अभाव में प्राणी का जीवित रहना सम्भव नहीं है। प्राणी को जल की आवश्यकता निरन्तर बनी रहती है। हमारे शरीर के लिए जल सर्वाधिक उपयोगी है। हमारे दैनिक जीवन के सभी कार्य-कलाप जल के द्वारा ही पूरे होते हैं। मानव शरीर के रक्त का मुख्य तत्व भी जल ही है। जल रक्त को तरल रूप में बनायें रखता है। शरीर के तापक्रम को उचित बनाये रखने का कार्य भी जल का ही है। जल हमारे शरीर की त्वचा को कोमल, साफ-सुथरा और चिकना बनाये रखने में सहायक होता है। मानव शरीर से उत्पन्न होने वाले विजातीय तत्वों के विसर्जन का कार्य भी जल के ही माध्यम से होता है। मल-मूत्र एवं पसीने के रूप में जो जल हमारे शरीर से बाहर निकलता है, वह इन अशुद्धियों एवं गन्दगियों को अपने साथ निकाल देता है।

प्रकृति ने मानव समुदाय को जरूरत की प्राय: सभी चीजें दी हैं। मनुष्य ने सदियों से अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए बेरहमी से प्राकृतिक सम्पदाओं का दुरूपयोग और अत्यधिक दोहन किया है। परिणाम स्वरूप भूकम्प, बाढ़, कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि का प्रकोप दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इन सबका विकराल रूप आज हमारे सामने प्रदूषण, बीमारी और बेचैनी के रूप में खड़ा हो चुका है।भारत की नदियों का ७० प्रतिशत जल प्रदूषित है। कारखाने अधिकांशत: जल-प्राप्ति की सुविधा के कारण नदियों एवं जलाशयों के निकट बनाये जाते हैं। इसके साथ ही उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले रसायन अवशिष्ट के साथ बहकर नदियों में चले जाते हैं और जल को प्रदूषित कर देते हैं। कागज, चर्मशोधन, खनिज, कीटनाशक द2वाओं के निर्माण में उपयोग किया हुआ जल बहकर नदियों और तालाबों के जल को प्रदूषित कर देता है। इस प्रदूषित जल में बैक्टीरिया, पारा, सीसा, जिंक, क्रोमाइट और मैंगनीज का अंश होने के कारण भयंकर बीमारियाँ हो जाती हैं। आधुनिक कारखानों की वजह से गंगा जैसी पवित्र नदी की गणना विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में हो गई है। यमुना, घाघरा, गोमती नदियों का जल भी विषयुक्त हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष पांच लाख बच्चे जल प्रदूषण के शिकार होते हैं। भारत में ३० से ४० प्रतिशत लोगों की मृत्यु प्रदूषित जल के कारण होती है।

ऐसा भी पाया जाता है कि नदी, तालाब या नहरों में लोग कूड़ा-कचरा, विषैले तरल पदार्थ और कभी-कभी तो जानवरों के शव भी डाल देते हैं, जिससे जल प्रदूषित हो जाता है। गाँव में जहाँ शौचालय की कमी है, वहाँ लोग नदी, तालाब और झरनों के किनारे मल-मूत्र त्याग करते हैं और उसी पानी से शौच क्रिया की सफाई करते हैं। तत्पश्चात् उसी नदी, तालाब या झरनों के पानी को दैनिक व्यवहार में लाने के अलावा उनके लिए अन्य कोई विकल्प नहीं होता है। कहीं-कहीं गाँवों या शहरों में शवों को जलाने की सुविधा न होने के कारण अनेक लोग उन्हें नदियों और नहरों में बहाकर जल प्रदूषण की समस्या को गम्भीर रूप देते हैं।

औद्योगिक क्षेत्र के बहते कचरे, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाओं का छिड़काव और घरेलू व्यवहार में आने वाले डिटरजेन्ट, पानी में घुलकर जमीन के अन्दर के जल स्रोतों को तेजी से विषैला बनाते जा रहे हैं। प्रदूषित जल जमीन की उर्वरा शक्ति पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। जल प्रदूषण का सबसे अधिक प्रकोप बच्चों पर पड़ता है। बच्चों को हैजा, पीलिया, डायरिया, पेचिश, तपेदिक तथा टाइफाइड जैसी बीमारियाँ होती हैं, जो मौत का भी कारण बन जाती हैं। वैज्ञानिकों का विचार है कि रसायनों का कुछ हिस्सा, जो उपयोग किया जाता है, पानी में बहकर नदियों और समुद्र में जाकर जमा होता है और नदी एवं समुद्रतटीय क्षेत्र में उपलब्ध जल-स्रोतों को प्रदूषित कर देता है, जिससे उन स्रोतों का पानी पीने योग्य नहीं रह पाता। शहरी क्षेत्रों में शुद्ध और स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर `क्लोरीनीकरण' द्वारा जल को शुद्ध करने की पद्धति अपनायी जाती थी। किन्तु शोध और सर्वेक्षण से यह पता चला कि क्लोरीन की वजह से अनेक रोग होते हैं। यह अम्ल से मिल जाता है। इससे पानी में तैलीय पदार्थ की परत भी जम जाती है, जो जल प्रदूषण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।

भारत में ७० से ९० प्रतिशत वर्षा मानसून के चार महीनों में हो जाती है लेकिन देश के विभिन्न भागों में इन महीनों में भी एक सी वर्षा नहीं होती। कहीं बहुत अधिक तो कहीं नहीं के बराबर। देश तथा देशवासियों के लिए यह जरूरी है कि वर्षा के पानी के संरक्षण के लिए आवश्यक व्यवस्था की जाय। हमारी राष्ट्रीय जल नीति में जल को समन्वित तथा संरक्षित करने पर जोर दिया गया है। इस नीति के अन्तर्गत पेयजल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है। जल को संचित करके जल विभाजकों के विकास द्वारा इकट्ठा किया जा सकता है और चेकडैम, बाँध और तालाबों का निर्माण करके पानी को बचाकर रखा जा सकता है। संचित जल के द्वारा भूमि संरक्षण तथा नदियों में मिट्टी के अनावश्यक कटाव को रोकने एवं मिट्टी के जमाव को कम करने में मदद मिलती है।

शहरों और औद्योगिक केन्द्रों से निकलने वाला गंदा पानी स्थानीय नदियों और तालाबों में प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे नदियों व तालाबों का पानी प्रदूषित हो जाता है। यदि ऐसे पानी को साफ कर लिया जाए तो विभिन्न कार्यों में इस जल को उपयोग में लाया जा सकता है। संशोधित जल की औद्योगिक संस्थानों में आपूर्ति करके स्वच्छ एवं ताजे जल की मांग पर दबाव को कम किया जा सकता है और राष्ट्र द्वारा चलाये जा रहे स्वच्छ जल के अभियान में सफलता मिल सकती है।

ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में जल के महत्व को देखते हुए राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेय मिशन की स्थापना की गयी। गाँवों को शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने के लिए अधोलिखित मानदंड अपनाये गये हैं।

• मानवीय उपयोग के लिए प्रतिदिन प्रति व्यक्ति ४० लीटर स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति।
• मरूस्थली जिलों में पशुओं के लिए प्रतिदिन प्रति पशु ३० लीटर अतिरिक्त जल की आपूर्ति।
• प्रत्येक २५० व्यक्तियों के लिए एक चापाकल की व्यवस्था।
• मैदानी क्षेत्रों में १.६ किमी० की दूरी पर जल स्रोत स्थापित किया जाना।
• पहाड़ी इलाकों में १०० मीटर की ऊँचाई के अन्तर पर जल स्रोत स्थापित किया जाना।
• राज्य सरकार द्वारा स्वादरहित, रंगरहित तथा गंधरहित स्वच्छ जल की व्यवस्था करना।
• जल को हैजा, कृमि, टायफाइड तथा तपेदिक के विषाणुओं से मुक्त करना।
• कार्यान्वयन के लिए गाँवों/बस्तियों में पूरी तरह पेय जल की आपूर्ति को प्राथमिकता दी गयी है।
• उन बिना जल स्रोत वाले समस्याग्रस्त गाँवों को जल उपलब्ध कराना जो सर्वेक्षण सूची के चयन किये गये समस्याग्रस्त गाँवों में से पेय जल उपलब्ध कराने से बच गये थे।
• प्रदूषित पेय जल वाले (रासायनिक तथा जैविक रूप से) सभी गाँवों को स्वच्छ पेय जल उपलब्ध कराना।
• प्रतिदिन प्रति व्यक्ति ४० लीटर पेय जल से कम की आपूर्ति वाले सभी आंशिक रूप से कवर किये गये गाँवों/बस्तियों को पूरी तरह पेयजल की आपूर्ति करना।

सन् १९७८ के बाद केन्द्र सरकार ने सभी प्रमुख विकास परियोजनाओं के पर्यावरण संबंधी प्रभाव के आंकलन की आवश्यकता पर जोर देना शुरू किया तथा वनस्पति एवं जीव जन्तुओं पर योजनाओं के प्रभाव और लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने पर विचार किया गया। १९८६ का पर्यावरण संरक्षण कानून काफी व्यापक था और जल, वायु, भूमि आदि सभी क्षेत्रों की पर्यावरण समस्याओं से सम्बन्धित था।

देश में टेक्नोलाजी का इस प्रकार विकास हो कि उत्पादकता को प्रभावित किये बगैर पानी के उपयोग को कम किया जा सके। इससे गंदे पानी के बहाव की समस्या अवश्य कम होगी जिससे प्रदूषित जल का प्रयोग कम मात्रा में सम्भव हो सकेगा। लोगों में पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षा के प्रसार से समाज के सभी स्तरों पर पर्यावरण सम्बन्धी अधिकारों के बारे में जागरूकता आयेगी।

हमारा उद्देश्य देश के विकास के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन को बनाये रखना तथा जल प्रदूषण की समस्या को कम करना है, क्योंकि जल प्रकृति की अमूल्य देन है।
साभार- http://www.abhyuday.org

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