भूमिगत जल प्रदूषण

जल प्राणी जगत की मूलभूत आवश्यकताओं में सबसे विशिष्ट स्थान रखने वाला यौगिक है। इस अमूल्य यौगिक के बिना जीवन की कल्पना भी बेकार है। परन्तु आजकल जिस तेजी से पानी का गैर योजनागत उपयोग व उपभोग किया जा रहा है, वह बहुत ही सोचनीय है। फलत: जहाँ एक ओर यह बहुतायत में फिजूल खर्च किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर यह कुछ जगहों पर दुर्लभ वस्तु बन गयी है।

जल चक्र में जल का प्रधान साधन वर्षा है। परन्तु वर्षा द्वारा प्राप्त पानी का करीब ७० प्रतिशत जल ही प्रवाहमान होते हुए विभिन्न उपयोगों के लिए प्राप्त हो जाता है। इनमें से करीब १२ प्रतिशत बिजली उत्पादन, ८ प्रतिशत सिंचाई, ४ प्रतिशत विभिन्न उद्योगों, २ प्रतिशत घरेलू उपयोग एवं करीब ४ प्रतिशत भूमिगत जल व अन्य उपयोग में आ पाते हैं। हमारे पृथ्वी पर उपलब्ध जल राशि में से करीब ९९ प्रतिशत भाग मानव के लिए सीधे रूप से उपयोगी नहीं है। इनमें से अधिकांश महासागर का खारा जल तथा कुछ (करीब २ प्रतिशत) ध्रुवीय बर्फ के रूप में मौजूद है। हमारे पास करीब १ प्रतिशत ही भूमिगत स्वच्छ जल है जो हमारे लिए पानी का मुख्य श्रोत है। परन्तु यह भूमिगत श्रोत भी धीरे-धीरे ही सही, प्रदूषित हो रहा है। ऐसी वैज्ञानिक मान्यताएँ हैं कि हमारे भूमिगत जल जब एक बार दूषित हो जाते हैं तो बहुत दिनों तक प्रदूषित ही रहते हैं। जबकि सतही जल स्तर एक बार दूषित होने के बाद भूमिगत जल की तुलना में जल्द ही प्रदूषण रहित हो सकते हैं। यही कारण है कि बहुत से जगहों का भूमिगत जल सतही जल से अधिक दूषित है।

हमारे भूमिगत जल को प्रदूषित करने वाले मुख्य कारक हैं - कृषि में बिना समुचित जाँच एवं गणना के बेतहाशा उर्वरकों का उपयोग। ये रासायनिक उर्वरक पानी के साथ-साथ ५ से १० से०मी० प्रतिदिन की दर से धरती के भीतर प्रवेश करते हैं एवं अन्ततोगत्वा भूमिगत जल को प्रदूषित करते हैं। आजकल भूमिगत जल प्रदूषण का मुख्य कारक औद्योगिक कचरे वाला जल है जो विभिन्न प्रकार के रसायनों के साथ बहुतेरे कार्बनिक एवं जैविक अपशिष्टों के साथ हमारे बहुमूल्य भूमिगत जल को दूषित कर रहा है। हमारे भूमिगत जल को प्रदूषित करने का एक प्रमुख कारक हमारे मल-मूत्र हैं जो सीधे या शौचायल टैंकों से बिना पूर्ण जैविक विखण्डित हुए धीरे-धीरे भूमिगत जल को प्रभावित कर रहे हैं। कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ते हुए आवासीय कालोनियों में जल निकास एक गम्भीर समस्या है। फलत: लघु उद्योग एवं घरेलू नाली के पानी को खुली ओर कर उसे भूमिगत जल से सीधे मिला देते हैं। हमारा बहुमूल्य भूमिगत जलनिधि सीधी तरह से प्रदूषित हो रहा है।

चूँकि हमारी धरती पर स्वच्छ जल का भण्डार मात्र एक प्रतिशत ही है, फलत: अन्य बहुत सी प्राकृतिक भण्डारों की तरह स्वच्छ जल भी बहुत जल्द ही समाप्त होने वाला है। विश्व भूमि जल सर्वेक्षण के आधार पर माना जा रहा है कि वर्ष २०२०-२०२५ ई० तक दुनिया के दो तिहाई लोंगों को साफ पानी मिलना दुर्लभ हो जाने वाला है। कहना अतिशयोक्ति न होगा कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जाने वाला है। अत: पानी के गैर जरूरत उपयोग को नियंत्रित करने के अलावा जन सामान्य को इसके प्रदूषण के बारे में सचेत करना ही एक मात्र उपाय है।
साभार- http://www.abhyuday.org
डा. रामनरेश शर्मा(प्रवक्ता, रसायन विज्ञान विभाग, काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ज्ञानपुर, संतरविदास नगर भदोहीं, उत्तर प्रदेश )

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