वाराणसी का पेयजल

डॉ. आर. सी. मिश्र
(सूक्ष्म जैव एवं पादप रोग वैज्ञानिक, पूर्व शोध अध्येता, वानस्पतिक उच्चानुशीलन केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी)

इक्कीसवीं सदी की देहली पर खड़ा भारत आज विश्व के गिने-चुने वैज्ञानिक देशों की पंक्ति में खड़ा है। किन्तु हमारी जीवन-शैली अपनी ही पुरातन पद्धति के कारण काफी असुरक्षित बनी हुई है जिसके परिणामस्वरूप यदि हम पूर्व की कुछ घातक बीमारियों पर ध्यान न दें तो हम पाते हैं कि इन बीमारियों से भी खतरनाक बीमारियों का समूह हमारे आस-पास मुँह खोले खड़ी हैं। इन बीमारियों का कारण अन्यत्र न होकर हमारे रहन-सहन, पर्यावरण इत्यादि में विद्यमान है। ऐसी परिस्थिति में हमारे अपने ही इस वैज्ञानिक विकास, यथा पर्यावरण वैज्ञानिकी के क्षेत्र पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। वस्तुत: यह प्रश्नचिन्ह प्रयोगात्मक उपलब्धता से ज्यादा है न कि विकास से।

काशी विश्व की प्राचीनतम नगरी है तथा यहाँ के नागरिक मानसी प्रदूषण से परे हैं । यही कारण है कि आस-पास के किसी भी प्रदूषण को शंकर बनकर पी जाते हैं। यथार्थत: उनके चारों तरफ का वातावरण जब वैज्ञानिक तथ्य में परखा गया तो पर्यावरण वैज्ञानिकों को स्तब्ध हो जाना पड़ा। शहर की जल प्रणाली पर सूक्ष्म नजर डाली गयी। वाराणसी शहर के लगभग २५ मुहल्लों यथा लंका, नगवा, अस्सी, शिवाला, भेलूपुर, कमच्छा, लक्सा, रथयात्रा, सिगरा, गोदौलिया, बेनियाबाग, दशाश्वमेघ, नयी सड़क, चौक, हड़हासराय, टाउनहाल, मडुआडीह, डी.एल.डब्ल्यू, विश्वेश्वरगंज, गायघाट, शिवपुर, पाण्डेयपुर, सारनाथ से संग्रहित जल का अध्ययन किया गया। अध्ययन करने से ज्ञात हुआ कि शहर के सभी मुहल्लों से प्राप्त जल में सभी अवयवों का मानक मान विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं आई.एस.आई. के निर्धारित मान से अधिक था। शहर के जल में कोलीफार्म के अलावा फफूंदों, अन्य जीवाणु, विषाणु यहाँ तक कि प्रोटोजोआ तथा अन्य कीटाणु भी पाये गये। कुछ जल में तो आर्थ्रोपोडा जाति के कीटाणु भी प्रचुर मात्रा में मिले। अनेक स्थानों में कार्यरत जल पंपों के जल में गंदापन एवं बदबूदार पानी भी पाया गया।

वाराणसी शहर में सरकार ने दो प्रमुख जल प्रदाय संशोधन इकाइयां भगवानपुर तथा दीनापुर में स्थापित की हैं। सर्वेक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि दीनापुर संशोधन इकाई के पास फफूंदजन्य चर्मरोगों तथा जीवाणुजन्य आन्त्ररोगों का प्रकोप है। उपरोक्त सभी व्याधिग्रस्त परिवार स्थानीय आपूर्तित जल प्रयोग में लाते हैं तथा संशोधन इकाई के पर्यावरण में अपना जीवन यापन करते हैं। इन सबके अलावा शहर के अन्य मुहल्लों के हैण्डपंपों व जलाशयों में जीवाणु, विषाणु एवं फफूंदों के आश्रय स्थित हैं।

उपरोक्त सर्वेक्षण एवं वैज्ञानिक परीक्षण के पश्चात् यह निष्कर्ष निकला कि जल आपूर्ति की दशा वैज्ञानिक दृष्टि से स्वास्थ्यप्रद नहीं है। अत: इस समस्या के स्थायी निदान हेतु सरकार का यथेष्ट ध्यान तथा नागरिकों के पर्यावरणीय ज्ञान-प्रसार को बढ़ाया जाय।
साभार- http://www.abhyuday.org

Hindi India Water Portal

Issues