वरूणा और असी का मिटता अस्तित्व

श्री नारायण मिश्र
(पूर्व उप-सभापति , कार्यकारिणी नगर निगम, वाराणसी।)

वाराणसी विश्व की प्राचीनतम् नगरियों में से एक है और भारतीय जीवन में उसका विशिष्ट स्थान है। वाराणसी नाम स्वयं स्पष्ट करता है कि यह नगर ``वरूणा'' और ``असी'' नदियों के बीच स्थित है। इन दोनों नदियों के विषय में ``वामन पुराण'' में वर्णन आता है कि प्रयाग में जो योगशायी भगवान विष्णु उपविष्ट हैं उनके दक्षिण और वामचरण से क्रमशा: वरूणा और असी नदी उत्पन्न हुयी तथा काशी क्षेत्र की सीमा होकर गंगा में जा मिली है। काशीखण्ड अध्याय ११ से १३ में वाराणसी की सीमा उत्तर में वरूणा नदी तथा दक्षिण में असी नदी तक उद्धृत है। काशीखण्ड के अध्याय ४६ से ५१ में भी वाराणसी की दक्षिणी सीमा असी नदी दी गयी है।'' इसके अतिरिक्त काशी मोक्ष निर्णय एवं काशी लघु महात्म्य में और काश्याम् मरणान्मुक्ति काशीखण्ड के अन्य भाग, वाराणसी आदि में भी असी एवं वरुणा नदियों का वर्णन है और यही काशी की क्रमश: उत्तरी एवं दक्षिणी सीमा मानी गयी है।

जेम्स प्रिन्सेज ने काशी के तालाब और कुण्ड का एक मानचित्र सन् १८२२ में तैयार किया था जिसमें उत्तरी सीमा में वरुणा नदी और दक्षिणी सीमा में असी नदी दिखाया गया है। असी नदी की स्थिति के बारे में माल विभाग के कागजात भी उपलब्ध हैं, जिनमें भ्रमवश कहीं नदी और कहीं नाला के रूप में वर्णन आता है। स्थिति को स्पष्ट करने के लिए मौजा करौंदी, सुकुलपुरा एवं भदैनी के बन्दोबस्ती सन् १८८४ के पूर्व और बाद तक असी नदी विद्यमान थी और माल के कागजात में उसका उल्लेख है। उक्त नदी में बारहों महीने जल न रहने के कारण स्थान-स्थान पर अतिक्रमण शुरू हुआ और उत्तरोत्तर बढ़ता गया।

पूर्व में ये दोनों नदियाँ नगर पालिका की सीमा के बाहर पड़ती थीं। अत: इनमें किसी सीवर लाइन का गन्दा पानी नहीं डाला जाता था। वाराणसी नगर की सीवर व्यवस्था का एक मानचित्र २४ जुलाई १९२८ को नगर पालिका वाराणसी द्वारा तैयार किया गया था। वर्तमान में असी नदी पर यत्र-तत्र अतिक्रमण करके उस पर निर्माण कार्य होते जा रहे हैं जिसके कारण जल निकासी का यह मार्ग लगभग समाप्त हो गया है।

जहां तक वरूणा नदी का प्रश्न है उस पर कोनिया ग्राम के पास मलयुक्त जल दीनापुर ले जाए जाने वाले संयत्र द्वारा अधिकांश भाग वरुणा नदी में गिराया जा रहा है। जल निकासी के महत्व के अतिरिक्त यह पवित्र तीर्थ भी है। काशी के इतिहास का यह प्रमुख अंग है अत: इसमें प्रदूषित जल गिराना `गंगा प्रदूषण उन्मूलन योजना' के उद्देश्यों के विपरीत कार्य है।

उपरोक्त दोनों नदियों की स्थिति को कायम रखना है। धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के अतिरिक्त वे जल निकासी के महत्वपूर्ण मार्ग हैं। आज चाहिये कि स्थिति का अवलोकन कर जल निकासी के मार्ग का अवरोध, काशी के इतिहास का संरक्षण एवं भारतीय समाज की धार्मिक भावनाओं पर हुए अनधिकृत अतिक्रमण को रोकने का सक्षम उपाय करें, आदेश पारित करें एवं उसका अनुपालन किया जावे।
साभार- http://www.abhyuday.org

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