ग्लेशियर खिसकने से शीतकालीन वर्षा प्रभावित

इस वर्ष शीतकालीन वर्षा और हिमपात न होने से पूरे पर्यावरण व जन जीवन में विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। शीतकालीन वर्षा न होने के लिए वैज्ञानिक ग्लेशियरों का पीछे खिसकना प्रमुख कारण मान रहे हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि उत्तरांचल, हिमाचल व कश्मीर में शीतकालीन वर्षा मानसून के ग्लेशियरों में टकराने के बाद होती है। इस वर्ष उत्तरांचल में इसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। शोधों के मुताबिक लद्दाख स्थित झीलों में जलस्तर लगातार घट रहा है जो भविष्य के लिए चिंताजनक है।

शोधों में यह भी पता चलता है कि भूमंडल में लगातार तापमान बढ़ेगा और भविष्य में भी मौसम अनिश्चितता भरा रहेगा। प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रोफेसर डी.एस. कोटलिया ने ग्लेशियरों में किये गए शोधों के बाद बताया कि हिमालयी ग्लेशियर विगत 7 हजार वर्षों से निरंतर पीछे खिसक रहे हैं। इनके पीछे खिसकने से शीतकालीन वर्षा लगातार प्रभावित हो रही है। लद्दाख सहित उत्तरांचल में शीतकालीन मानसून ग्लेशियरों से न टकराने से वर्षा व हिमपात में अत्यधिक कमी आई है और इन दोनों क्षेत्रों में जल संकट गहराता जायेगा तथा इससे तापमान में बढ़ोत्तरी होगी और गर्मियों में ग्लेशियर अधिक मात्रा में पिघलेंगे। प्रो. कोटलिया का कहना है कि ग्लेशियर अपने स्थान से 200 मीटर पीछे खिसक चुके हैं। ऐसा प्रभाव जहां वर्षा में पड़ा है। वहीं लद्दाख के 75 कि.मी. व्यास की सोकर व 60 कि.मी. व्यास की सीमुरारी झीलों में पड़ा है। दोनों झील ग्लेशियरों पर निर्भर है। दोनों झीलों में 100 मीटर जलस्तर घटा है। प्रो. कोटलिया का कहना है कि उत्तरांचल व लद्दाख में जनवरी से अब तक मात्र एक मि.मी. वर्षा हुई है जबकि बीते वर्षों में 4 से 5 मि.मी. शीतकालीन वर्षा हुई। उनके मुताबिक ग्लेशियरों का प्रभाव सर्वाधिक लद्दाख व उत्तरांचल में पड़ने जा रहा है।
दैनिक जागरण (देहरादून), 21 Feb. 2006

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