प्रदूषित नदियां, मरते पक्षी

राजधानी के ओखला पक्षी विहार में लगभग पचास पक्षियों का मृत पाया जाना पर्यावरणविदों के लिए ही नहीं, हम सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। आशंका तो यह जताई जा रही है कि मृत पक्षियों की संख्या और भी ज्यादा है। ओखला पक्षी विहार न सिर्फ राजधानी की पारिस्थितिकी को संतुलित करने में बड़ी भूमिका निभाता है, बल्कि हिमालय से आने वाले प्रवासी पक्षियों का बसेरा भी है, जहां साढ़े तीन सौ से अधिक प्रजाति के पक्षी देखे जा सकते हैं। मृत पक्षियों के पेट में जिस तरह मछलियों के अंश पाए गए हैं, उससे लगता है कि उनकी मौत विषैली मछलियों के सेवन से हुई होगी। आशंका तो यह भी जताई जा रही है कि ओखला की यह घटना किन्हीं मछुआरों की करतूत हो सकती है। मछुआरे भी नदियों को विषैला करने का दुस्साहस अब दिखाने लगे हैं, ताकि जहर के आंतक से मछलियां नदी के सतह पर आएं और उन्हें फंसाना आसान हो सके। ऐसे में, मछलियों के साथ-साथ पक्षी भी इसका शिकार होते हैं। अगर ओखला में सचमुच ऐसा हुआ है, तो यह सचमुच बहुत गंभीर मामला है। अलबत्ता ओखला को इस त्रासद घटना ने नदियों के प्रदूषण को एक बार फिर बहस के केंद्र में ला खड़ा कर दिया है। ओखला पक्षी विहार में इस तरह की यह पहली घटना भले हो, लेकिन इसे कैसे भूल सकते हैं कि देश की सर्वाधिक दस प्रदुषित नदियों में यमुना का शुमार है? पंजाब की तो कोई भी नदी दस सर्वाधिक प्रदुषित नदियों की सूची में नहीं है, लेकिन सतलुज में बीते एक साल के दौरान कम से कम तीन बार भारी मात्रा में मरी हुई मछलियां पाई गई हैं। व्यास का भी यही हाल है। पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, नदियों के प्रदूषण में करीब पैंतीस लाख छोटे उद्योगों और लगभग दो हजार बड़ी औद्योगिक इकाइयों का हाथ है। हालांकि सरकार ने औद्योगिक कचरे को नदियों में बहाने से रोकने के लिए समय-समय पर कदम उठाए। गंगा और यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए भी अभियान चलाए गए। लेकिन लोगों की उदासीनता की वजह से ऐसे अभियान सफल नहीं हो पाते। लोंगों को नदियों में फूलमाला, पूजन सामग्री या अन्य अवशिष्ट फेंकने से मना किया जाता है, लेकिन वे नहीं सुनते। मूर्तियों के विसर्जन से भी नदियां प्रदूषित होती है। बीते साल गणेशोत्सव के बाद अहमदाबाद की कांकड़िया झील से चार ट्रक मरी हुई मछलियां निकली थीं। लेकिन लोगों की आस्था प्रतिमाओं को जल में विसर्जित करके ही मानती है। इसकी कीमत मछलियों और पक्षियों को तो चुकानी पड़ती ही है, हम भी इसका खामियाजा भुगतते हैं।
अमर उजाला (देहरादून), 06 Feb. 2006

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