जैव ईंधन वाले पौधों से चीन व भारत में पैदा होगा जल संकट
ईंधन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत और चीन में जैव ईंधन वाले पौधों के इस्तेमाल पर जोर दिए जाने से इन देशों के जल भंडार खत्म हो सकते हैं और भोजन की मांग पूरी करने में इन्हें काफी दिक्कत आ सकती है। अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2030 तक दुनिया के तेल की 70 फीसदी मांग भारत और चीन में होगी। ये देश अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सस्ते जैव ईंधन पौधों को बढ़ावा दे रहे हैं। अध्ययन में शामिल वरिष्ठ वैज्ञानिक शार्लोत द फ्रेत्योर का कहना है कि जैव ईंधन वाली फसल के उत्पाद के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है जबकि भारत और चीन पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कच्चे तेल के दाम 80 डालर प्रति बैरल से ज्यादा होने पर जैव ईंधन पर निर्भरता बढ़ेगी। इस तरह का ईंधान जैव अपशिष्ट, लकड़ी, गोबर, गन्ने और अनाज के चोकर से हासिल किया जाता है। चीन मक्का से और भारत गन्ने से जैव ईंधन प्राप्त करने की योजना बना रहा है और दोनों ही फसलों में बहुत ज्यादा पानी देना होता है। चीन वर्ष 2020 तक जैव ईंधन का उत्पादन चार गुना करना चाहता है।
(जनसत्ता 1 अक्टूबर, 2007)