बलिया का कोका बाटलिंग प्लांट बंद

गाँव वासियों द्वारा कम्पनी से 10 करोड़ रुपये हर्जाने की मांग

पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिले बलिया के सिंहाचवर गाँव में कोकाकोला कम्पनी के लिये वाटलिंग करने वाले फ्रेन्चाइजी व्यवसायी एम लदानी ने आखिरकार प्लांट के बंद होने की घोषणा सार्वजनिक रूप से 18 अक्टूबर को कर दी जब कम्पनी के प्रबंधन ने कम्पनी के गेट पर इस आशय का नोटिस चस्पा कर दिया।
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वृंदावन वाटलर्स के नाम से कोका कोला के लिये बाटलिंग करने वाले देश में कई बाटलिंग प्लांट है उन्हीं में से एक सिहांचवर (बलिया) में 2002 में इस प्लांट ने औपचारिक रूप से काम करना शुरू किया था। इस प्लांट का शुरू से ही स्थानीय ग्रामवासियों ने भारी विरोधा किया, प्रर्दशन किये और रैलिया की। सिहांचवर ग्राम सभा का चुनाव तो कोकाकोला को भगाने के मुद्दे पर ही लड़ा गया। ग्रामवासियों ने कोकाकोला भगाओ, कृषि बचाओं संघर्ष समिमि का गठन किया। लगातार संघर्ष चला, हजारों ग्रामवासी उस संघर्ष से जुड़े। साथ ही, आस पास के स्कूल/कालेजों में आजादी बचाओं आन्दोलन ने कोक-पेप्सी के खिलाफ जनजागरण कार्यक्रम चलाया। टेलीविजन पर बाबा रामदेव के प्रचार ने कोका कोला को टायलेट क्लीनर घोषित किया। आम जनता में कोकाकोला के प्रति नफरत पैदा हुई और कम्पनी के उत्पादों का व्यापक बहिष्कार हुआ। लिहाजा मांग घट गयी। सूत्र बताते हैं कि इस वर्ष तो इस बाटलिंग प्लांट में एक भी बोतल नहीं भरी जा सकी।
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प्लांट बंद करने का कारण गेट पर चिपकाएं गये नोटिस में कम्पनी ने यह बताया कि चुंकि कोका कोला कम्पनी की तरह अब उन्हें बाटलिंग करने के आर्डर नहीं मिल रहे है अत: प्लांट बंद करने के अलावा कोइ्र चारा नहीं बचा है। उधर इस बंदी की खबर से कारखाने में कार्यरत 60-65 कर्मचारियों में भारी रोष है और उन्होने प्लांट के प्रबन्धन के खिलाफ आन्दोलन का रास्ता पकड़ लिया है। हांलाकि प्रंबन्धन कुछ ले दे कर मामले को रफा दफा करना चाहता था लेकिन कर्मचारियों ने रफा दफा करने से मना कर दिया है। वे अपनी सेवाओं की समाप्ति का कोई स्थायी उत्तार चाहते है जो कम्पनी उन्हें देने को तैयार नहीं है। कर्मचारियों के इस आन्दोलन में ग्रामवासी भी शामिल हो गये हैं। उन्होंने कहा है कि कम्पनी ने रोजगार के बढ़े-बढ़े सपने दिखाये थे, वे सपने तो पूरे नहीं हुए अलबत्ताा हमारे स्थानीय दूध उद्योग को कोका कोला की वजह से काफी नुकसान पहुचा है।
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कम्पनी के खिलाफ आन्दोलन चला रहे कार्यकर्ताओं और आस-पास के ग्रामवासियों का कहना कि कम्पनी ऐसे ही बंद नहीं की जा सकती। जब तक कम्पनी स्थानीय जल स्रोतों तथा भूक्षरण और पर्यावरणीय नुकसानों की भरपाई नहीं कर देती, कम्पनी को भागने नहीं दिया जायेगा। प्लांट के चारो तरफ पड़ने वाली ग्राम सभाओं ने लिखित पत्र देकर कम्पनी से मांग की हे कि यह क्षेत्र छोड़कर जाने से पहले स्थानीय भूजल स्रोतो से मुफ्त मे जल खींचने के एवज में 7.5 करोड़ रुपया, कम्पनी से निकले अवशिष्ट पदार्थो के कारण हुए भूक्षरण एवं स्थानीय नदी मे हुए जल प्रदूषण तथा उसे पीने से मरे पशुओ की एवज में 2.5 करोड़ यानि कुल 10 करोड़ का मुआवजा उन प्रभावित ग्राम सभाओं को दें।
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आन्दोलन कारियों का कहना है कि कम्पनी के दोहन के कारण स्थानीय भूजल स्तर खतरनाक स्तर तक घट गया है और कई गांवो में हैण्डपम्प बेकार हो गये है और कुएं सूख गये है। कम्पनी के बंद होने के बाद अब भूजल स्तर थोड़ा ऊपर आया है। कम्पनी ने मुफ्त में पानी खींचा है और इसका व्यापार कर मुनाफा कमाया है। प्रदेश सरकार को भूजल की कोई कीमत कम्पनी ने चुकाई है या नहीं इसकी कोई जानकारी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं है। कम्पनी लगने की शुरुआत से ही गांव वासियों द्वारा कम्पनी का विरोध का एक कारण् यह भी रहा हे कि इससे भूजल की कमी होगी और इसका असर कृषि पर पड़ेगा। अत: कम्पनी को यहां नहीं लगना चाहिये। साथ ही भूक्ष्ज्ञरण और स्थानीय पर्यावरणीय प्रदूषण का मुद्दा भी है जिसके बारे में समय-समय पर आन्दोलन के लोग कम्पनी को चेताते रहे हैं परन्तु कम्पनी ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।
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कम्पनी को स्थायी रुप से बंद कराने और पूरे देश से कोकाकोला और पेप्सी कोला को खदेड़ने के आन्दोलन को बलिया में हुई इस घटना से ताकत मिली है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को उनके द्वारा किये गये नुकसान की भरपाई करके यहां से भगा दिया जायेगा, ऐसे संकल्प की एक किरण बलिया में दिखायी पड़ती है।

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