मुद्दा : भू-जल का गहराता संकट

रमेश कुमार दुबे
जल ही जीवन है’ इसीलिए रहीम ने कहा था ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।’ लेकिन आज इस जीवन पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। पहले जल संकट देश के महानगरों तक ही सीमित था, किंतु अब इसने लाखों गांवों, तालाबों के साथ-साथ भूमिगत जल को भी अपनी चपेट में ले लिया है। आजादी के समय जहां देश में प्रति व्यक्ति 5,277 घन मीटर पानी उपलब्ध था वह अब घटकर मात्र 1800 घन मीटर रह गया है।
बढ़ती जनसंख्या, औघोगिक विकास, नगरीकरण, भौतिकवादी जीवन पद्धति के कारण पानी की मांग में निरंतर वृद्धि हो रही है। पहले पानी की पूर्ति नदियों, तालाबों से हो जाती थी लेकिन नदी-तालाब के प्रदूषित होने, खेती की आधुनिक तकनीक और अत्यधिक पानी पीने वाली फसलों की प्रधानता के कारण भूमिगत जल का शोषण बढ़ा। खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ने से मिट्टी की प्रकृति बदली है। इससे कृषि में सिंचाई तथा पानी की जरूरत बढ़ी, साथ ही वर्षा के पानी के मिट्टी के अंदर रिसकर संचित होने की प्रक्रिया बाधित हुई। इससे भूजल स्तर गिरा।
गिरते भूजल स्तर ने पानी के अकाल के अतिरिक्त लवणता की भी समस्या उत्पन्न की। यह समस्या उन क्षेत्रों में गंभीर है जहां स्थानीय पारिस्थितिकी दशाओं (मिट्टी, भूमिगत जल) की उपेक्षा करके अधिक लाभ देने वाली फसलें थोपी गई जैसे पंजाब में धान की खेती। सिंचाई सुविधा में वृद्धि हेतु शुरू की गई सब्सिडी वाली योजनाओं तथा वोट की राजनीति (मुफ्त बिजली) ने आग में घी का कार्य किया है। इससे भूजल शोषण को प्रोत्साहन मिला है। अध्ययन बताते हैं कि जहां सस्ती बिजली उपलब्ध है, वहां डीजल वाले क्षेत्र की तुलना में दो गुना पानी खींचा गया। औघोगिक इकाइयां न सिर्फ पानी खींचती हैं बल्कि उसे बड़े पैमाने पर प्रदूषित भी करती हैं। उनसे निकला जहरीला पानी जमीन में समाकर एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इससे दूषित पेयजल के कारण होने वाली बीमारियां बढ़ रही हैं। अध्ययनों के अनुसार विकासशील देशों में 80 प्रतिशत बीमारियां पीने का साफ पानी न मिलने के कारण होती हैं।
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने देश भर में ऐसे आठ सौ इलाकों की पहचान की है जहां भूजल स्तर तेजी से घट रहा है। ‘न्यू साइंटिस्ट’ में प्रकाशित एक सर्वे के अनुसार भारत के अधिकतर हिस्सों में खुदे 1 करोड़ 90 लाख कुएं और गहरे ट्यूबवेल जल स्तर को घटा रहे हैं। उत्तरी गुजरात में 6 मीटर तथा पंजाब, हरियाणा में 75 सेमी वार्षिक की दर से भूजल नीचे जा रहा है। तमिलनाडु में प्राय: कुएं सूख रहे हैं और जल स्तर गिरता जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में परंपरागत ट्यूबवेल सूखते जा रहे हैं और उनका स्थान सबमर्सिबल पंप ले रहे हैं। सबमर्सिबल पंप की गहराई भी दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
देश के साढ़े चार लाख वर्ग किमी क्षेत्र में भूजल स्तर इतना नीचे आ गया है कि उसके रिचार्ज के लिए कृत्रिम उपायों की आवश्यकता है। जल संसाधन मंत्रालय ने सात संकटग्रस्त राज्यों को कुआं खोदकर भूजल रिचार्ज करने की योजना भेजी है। केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने देश के 43 केंद्रों को भूजल विकास और 65 क्षेत्रों को भूजल संबंधी निर्माणों के लिए चिह्नित किया है। केंद्र सरकार विभिन्न जल संरक्षण योजनाओं के साथ-साथ 16 राज्यों के 185 जिलों में सूखा प्रभावित क्षेत्र विकास कार्यक्रम के लगभग 20,000 प्रोजेक्ट चला रही है। सरकार ने भूजल के संरक्षण, संवर्द्धन और रेनवाटर हार्वेस्टिंग के संदर्भ में एक मॉडल बिल भी राज्यों को भेजा है।
स्थानीय लोगों की सीमित भागीदारी जल संरक्षण संबंधी योजनाओं की सफलता में बाधक बनती है। सामुदायिक भावना के अभाव में लोगों में अभी तक यह समझ नहीं बन पाई है कि जल की कमी का समाधान भूजल के अतिदोहन में नहीं है बल्कि बरसात के पानी की एक-एक बूंद को रोककर उसका सदुपयोग करने में निहित है। खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में के सिद्धांत का पालन न करने का ही परिणाम है कि चेरापूंजी जैसी जगह में भी सूखा पड़ रहा है। लेकिन जिन क्षेत्रों में इस सिद्धांत का पालन किया जा रहा है वहां के कुएं, तालाब, जोहड़ लबालब भरे हैं जैसे अलवर। जल संरक्षण में एक संवैधानिक बाधा भी है। पानी राज्यों का विषय है और केंद्रीय स्तर पर भी पानी कई मंत्रालयों में बंटा है। इससे जल संरक्षण संबंधी नीतियों को लागू करने में कठिनाई आती है। इसीलिए पानी को समवर्ती सूची में शामिल करने की मांग जोर पकड़ रही है। भूजल पर गहराते संकट को दूर करने के लिए आवश्यक है कि हम जल के साथ अपने संबंधों की पुन: समीक्षा करें। पारिस्थितिकी दशाओं के अनुरूप फसल चक्र अपनाएं तथा अपनी जीवन शैली में सुधार लाएं। जल के मूल्य और महत्ता को समझें तथा उसे बैंक खाते की भांति माने।

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