ग्लेशियर पिघलने से नदियों में जाने वाले पानी के बहाव में आई कमी

ग्लेशियर से पिघलकर नदियों में जाने वाले पानी के बहाव की मात्रा में प्रतिवर्ष 10 फीसदी की कमी आ रही है। पूरे विश्व के ग्लेशियर का आकार अब मात्र 11 फीसदी रह गया है। विज्ञानियों का कहना है कि अभी तक ग्लेशियर के क्षेत्रफल का विशेष अध्ययन नहीं हो रहा, जिसके आधार पर अभी यह कह पाना मुश्किल है कि वर्तमान में उसकी स्थिति कैसी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्लेशियर का आकार तेजी से सिकुड़ रहा है, लेकिन पानी के बहाव में कोई खास अंतर नही आया है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञों के छह साल के अध्ययन को देखें तो हर साल ग्लेशियर से पिघलकर आने वाले पानी के बहाव में 10 फीसदी की कमी आई है, लेकिन पूरे विश्व के ग्लेशियर के आकार पर हुए अध्ययन के अनुसार पूरे विश्व का 33 फीसदी भूभाग बर्फ से ढका है, जिसमें अब 22 फीसदी की कमी आई है, जिसकी विशेषज्ञ आने वाले समय में चिंता का विषय मानते हैं।

ज्ञात हो कि पिछले कुछ सालों से पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। भूजल का स्तर लगातार नीचे जाने के साथ नदियों में भी पानी कम देखा जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार बांधों को पानी न मिलने से बिजली का उत्पादन बाधित होना तथा आए दिन पानी की समस्या होने से केंद्र स्तर पर इस बात की तहकीकात कराने की योजना शुरू की गई कि क्या वाकई सदानीरा के सूखने और पानी के अकूत भंडार के खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। वैसे तो इस काम में कई एजेंसियां लगी है, लेकिन रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। यहां के विशेषज्ञ गोमुख में स्थापित अपने संयंत्रों से सात सालों से हर रोज अब तक कितना ग्लेशियर पानी के रूप में गंगा में जा रहा, का अध्ययन कर रहे हैं। इस टीम के प्रमुख डा. प्रताप ने बताया कि यदि पूरे सात साल का लेखाजोखा देखें, तो वार्षिक अध्ययन के हिसाब से कभी 10 फीसदी की कमी हो जाती है। उन्होंने बताया कि इससे इस बात का अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि ग्लेशियर का कितना आकार घट रहा है। उन्होंने बताया कि 1962 में कराए गए राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार भारत में ग्लेशियर का आकार उस समय 286 वर्ग कि.मी. था, जो इन बीते 46 सालों में कम हुआ है। उन्होंने बताया कि ग्लेशियर के आकार में कमी आने से पानी के बहाव में और तेजी आएगी। यह एक स्टेज पर जाकर ही कम होगा, इसलिए अभी कम से कम 100 सालों तक तो चिंता की बात नहीं है। उसके बाद यह देखा जा सकता है कि ग्लेशियर की स्थिति क्या है। उनका कहना है कि भारत में ग्लेशियर से संबंधित अध्ययन पर विशेष जोर देने की जरूरत है, क्योंकि यह जीवन से जुड़ा मामला है।
अमर उजाला (देहरादून), 30 May, 2006

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