प्रदूषण ही नहीं बांध भी बने महाशीर (मछली) की मुसीबत
राज्य में सिर्फ नदियों में बढ़ते प्रदूषण से ही नहीं बल्कि जल विद्युत परियोजनाओं से भी महाशीर के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। मत्स्य वैज्ञानिकों ने नदियों पर बनने वाले बाधों से महाशीर को पहुँचने वाले नुकसान की भरपाई के लिए विशेष कार्ययोजना तैयार किए जाने की जरूरत पर बल दिया। उत्तरांचल प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत करते हुए गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में जंतु विज्ञान के रीडर डा. प्रकाश नौटियाल ने कहा कि हिमालय राज्य होने के कारण उत्तरांचल में बड़ी संख्या में जल विद्युत परियोजनाएं है और इनकी संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। बांध में पानी को एक ही जगह पर एकत्रित किया जाता है। जिसके चलते बांध के आस-पास के पानी की मात्रा में भारी कमी हो जाती है। जबकि महाशीर के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि राज्य में टिहरी बांध को छोड़ दिया जाए तो अन्य किसी भी बांध में मछलियों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए कोई प्रबंध नहीं किए गए हैं। टिहरी बांध में भी सिर्फ हैचरी बनाने का प्रयास किया गया है, लेकिन जानकार लोगों के अभाव में यह प्रयास भी अधूरा है।उन्होंने कहा कि महाशीर के संरक्षण के प्रति जल विद्युत परियोजना तैयार करने व उनका रख-रखाव करने वाले विभागों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी होगी। डा. नौटियाल ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण के चलते नैनी झील में भी महाशीर विलुप्त हो चुके हैं। राज्य में सिर्फ कार्बेट पार्क में रामगंगा नदी में ही महाशीर की स्थिति को बेहतर कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य के मत्स्य विभाग की स्थिति भी कुछ खास बेहतर नही है। केरल में समय पर संरक्षण न किए जाने से महाशीर की ‘टार्स मुसल्ला’ प्रजाति विलुप्त हो चुकी है।
दैनिक जागरण (देहरादून), 28 April 2006