जीवनरेखा तीस्ता के लिए सत्याग्रह - नीरज वाघोलिकर

सिक्किम की जीवनरेखा तीस्ता को बांधकर बिजली पैदा करने की कोशिशों में जुटी राज्य सरकार को इन दिनों सत्याग्रह का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरण और संस्कृति के नजरिये से संवेदनशील तीस्ता नदी घाटी में छोटी-बड़ी 26 जलबिजली परियोजनाएं प्रस्तावित हैं जिनका विरोध कर रहे लोग 20 जून से सत्याग्रह पर बैठे हैं। सत्याग्रहियों ने अफेक्टेड सिटिजंस ऑफ तीस्ता (एसीटी) नाम की संस्था बनाई है जिसके विरोध का फोकस खासतौर से उत्तर सिक्किम के जोंगू इलाके में बनने वाले बांध को लेकर है। ये इलाका लेपचा जनजाति का सुरक्षित क्षेत्र होने के साथ-साथ लोगों की श्रद्धा से भी जुड़ा रहा है। सत्याग्रह में न सिर्फ युवाओं की सक्रिय भागीदारी है बल्कि इसे स्थानीय धर्मगुरूओं का समर्थन भी मिल रहा है।
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सिक्किम में पहले भी बांध विरोधी प्रदर्शन होते रहे हैं लेकिन इन विरोधों का स्वरूप इतना व्यापक कभी नहीं था। दरअसल पिछले तीन साल में राज्य सरकार ने 26 जलबिजली परियोजनाओं के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। 12 दिसंबर 2006 को एसीटी ने मुख्यमंत्री पवन चामलिंग से मुलाकात कर जोंगू में प्रस्तावित परियोजनाओं को रद्द करने की मांग की थी। मुख्यमंत्री से इस दिशा में विचार का आश्वासन कोरा आश्वासन ही निकला और राज्य सरकार ने परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी। इसके विरोध में एसीटी ने 20 जून से सत्याग्रह छेड़ दिया। 34 वर्षीय डावा लेपचा और 20 साल के तेनजिंग लेपचा जहां आमरण अनशन पर बैठे वहीं बाकी समर्थकों ने क्रमिक भूख हड़ताल कर उनके साथ अपना कंधा लगाया।
बड़ी परियोजनाओं के पीछे राज्य सरकार का तर्क है कि इनसे न केवल बिजली की मांग पूरी होगी बल्कि ऊर्जा बेचकर राजस्व भी कमाया जा सकेगा। लेकिन पर्यावरण को होने वाला नुकसान और नदी के साथ स्थानीय लोगों का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव इन योजनाओं के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।
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जैसा कि डावा लेपचा कहते हैं, “सिक्किम के पूर्ववर्ती राजाओं ने जोंगू और उत्तर सिक्किम को विशेष कानूनी सुरक्षा प्रदान की थी। सिक्किम के भारत में विलय के बाद संविधान में भी इस सुरक्षा को कायम रखा गया। ये परियोजनाएं हमें दी जा रही संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा का उल्लंघन हैं। इतनी सारी परियोजनाओं में काम करने के लिए राज्य के बाहर से बड़ी संख्या में लोगों को लाया जाएगा जिनके लंबे समय तक यहां रहने से राज्य का और खासतौर पर उत्तर सिक्किम का सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन प्रभावित होगा। इसलिए हम चाहते हैं कि जोंगू में प्रस्तावित सातों परियोजनाएं रद्द कर दी जाएं और बाकी परियोजनाओं की समीक्षा की जाए।”
पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 1999 में 510 मेगावॉट क्षमता वाले तीस्ता-V प्रोजेक्ट को मंजूरी देते हुए तीस्ता नदी घाटी की वहन क्षमता के अध्ययन का निर्देश दिया था। मंत्रालय का निर्देश था कि जब तक ये अध्ययन पूरा नहीं हो जाता, किसी दूसरे प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी जाएगी। एसीटी मेंबर और सिविल इंजीनियर पेमांग तेनजिंग के मुताबिक अध्ययन अभी अंतिम चरण में है और उससे पहले ही 2004 में छह परियोजनाओं को मंजूरी देकर मंत्रालय ने अपनी ही शर्तें तोड़ दी हैं। इनमें से दो परियोजनाएं तो कंचनजंघा राष्ट्रीय पार्क से सटी हैं जो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।
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सरकार ने सत्याग्रह को खत्म करने की कई अपीलें कीं। एसीटी और सरकार के बीच बातचीत के कम से कम छह दौर चले लेकिन नतीजा सिफर रहा। बिगड़ते स्वास्थ्य और मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत अपील के बाद डावा और तेनजिंग ने 63 दिन के बाद 21 अगस्त को अपना आमरण अनशन तो खत्म कर दिया लेकिन क्रमिक भूख हड़ताल के साथ अब भी जारी सत्याग्रह देश और दुनिया का ध्यान और समर्थन अपनी ओर खींच रहा है।
साभार- तहलका (हिन्दी)

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