पानी निजीकरण की शुरूआती कम्पनियां फ्रांसीसी ही थीं

उत्तरी अतीत और दक्षिणी वर्तमान
वैकल्पिक नीतियां और संरचनाएं विकसित करने में अभियान दो मुख्य प्रेरणास्रोतों पर निर्भर रहे हैं। एक, 19वीं और 20वीं शताब्दी के अधिकांश के लिए विकसित देशों में सार्वजनिक क्षेत्र मॉडल की ऐतिहासिक सफलता यानी ''उत्तरी अतीत''। दूसरा, दक्षिण में जनतांत्रिक संरचनाओं के नए रूपों का उदय, विशेषकर ब्राजील और भारत में सहभागिता वाले लोकतंत्र के लिए की गई पहल-कदमियां यानी ''दक्षिणी भविष्य''।

भ्रमवश निजीकरण पर बहुत ध्यान दिये जाने के पीछे उत्तरी अनुभव था जिस पर फिर से विचार किया गया। निजीकृत पानी का विस्तार क्षेत्र और युग बहुत संकीर्ण, हाल ही का और बहुत संक्षिप्त है। 1990 से पहले फ्रांस से बाहर, स्पेन और इटली के कुछ शहरों और पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेशों के अतिरिक्त कोई अन्य स्थान जल के निजीकरण के अनुभव से नहीं गुजरा था, न ही लगभग एक शताब्दी तक इसके बारे में गंभीरतापूर्वक विचार किया गया था। यूरोप और उत्तरी अमेरिका का समान अनुभव उन्नीसवीं सदी के मध्य के निजी ठेकेदारों की जगह नगरीय जल सेवाओं को लाने का था क्योंकि नगर-पालिकाएं इन सेवाओं का आवश्यक विस्तार अधिक कुशलतापूर्वक और प्रभावशाली ढंग से कर सकती थीं।

केवल फ्रांस में ही उन्नीसवीं सदी के ये ठेकेदार बचे रह सके और अपने को एक निजी अल्पविक्रेताधिकार (ओलिगोपोली) के रूप में संगठित और मजबूत कर सके। यही कारण है कि इंग्लैंड में थैचर सरकार द्वारा पानी और अन्य सुविधाओं का विचारधारा प्रेरित निजीकरण किये जाने तक अकेली बड़ी निजी कम्पनियां फ्रांसीसी ही थीं।

साम्यवादी देशों, और औपनिवेशिक ताकतों से आजाद हुए देशों ने भी सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से नगरीय, क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय स्वामित्व के जरिये जल सेवाओं का विकास किया। ऐतिहासिक दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाएं संपूर्ण शहरी यहां तक कि ग्रामीण आबादी तक भी जल और सफाई सेवाएं पहुंचाने के लिए अत्यंत सफल मॉडल हैं। हाल के वर्षों में निजीकरण की वकालत के बावजूद यूरोपीय संघ और अमेरिका की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी को सार्वजनिक संचालक ही ये सेवाएं प्रदान करते हैं।

दक्षिण में नए जनतांत्रिक रूपों का उदय हुआ है जो सहभागिता और विकेंद्रीकरण पर जोर देते हैं। भारत में निर्वाचित ग्राम परिषदों की एक व्यापक व्यवस्था है-'पंचायत'। केरल राज्य में वाम मोर्चा सरकार ने विकेंद्रीकरण और सहभागिता के एक कार्यक्रम की शुरूआत की जिसके तहत राज्य के बजट का लगभग 40 प्रतिशत पंचायतों को जाता है, नागरिकों को हर दस्तावेज देखने का अधिकार है और बजट की प्राथमिकताएं सार्वजनिक सभाओं की श्रृंखला के जरिये तय की जाती हैं। ब्राजील में, पार्तिदो दोस त्रबलहादोरस (पी.टी.- मजदूरों का दल) ने नगरपालिकाओं में विकेंद्रीकरण और सहभागिता की ऐसी ही व्यवस्था विकसित करने की नीतियां अपनायी हैं जहां नगरपालिकाओं को ''सहभागिता-बजट निर्माण'' (ओरकामेंतो पार्तिसिपातिवो) के रूप में जानी जाने वाली व्यवस्था के माध्यम से सत्ता प्राप्त होती है।

“लेके रहेंगे अपना पानी” से पाठ 9...............
वेब प्रस्तुति- मीनाक्षी अरोड़ा
साभार-इंसाफ

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