कानपुर में भूजल को साफ करने के लिए अभियान की शुरुआत
विष्णु पाण्डेय / कानपुर
कानपुर के विभिन्न इलाकों में प्रदूषित भूजल को साफ करने का अभियान शुरू करने के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा है।
प्रस्ताव में मंत्रालय से जमीनी पानी को साफ करने के लिए जांची परखी बायो-रेमिडेशन तकनीक को प्रायोजित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया है। यहां के नौरीखेरा और जाजमऊ इलाके में पानी में हानिकारक तत्व हेक्सावेलेंट क्रोमियम की मात्रा तय मानक से 100 गुना ज्यादा है।
राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जमीन के अंदर गंदे पानी से हानिकारक तत्वों को हटाने में नई बायो-रेमिडेशन तकनीक की उपयोगिता की जांच के मद्देनजर अध्ययन भी कर रहा है। इस प्रोजेक्ट को अमेरिका के ब्लैकस्मिथ इंस्टिटयूट द्वारा तैयार और लागू किया गया है। ब्लैस्मिथ पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर नजर रखने के अलावा इसके समाधान की दिशा में उपाय सुझाने वाली अग्रणी संस्था है।
इस संस्थान ने भारत में की वजह से प्रदूषित हो रहे पानी को साफ करने के काम में अग्रणी भूमिका अदा की है। हेक्सावेलेंट क्रोमियम का इस्तेमाल चमड़ा उद्योग में किया जाता है। गौरतलब है कि कानुपर भारत में चमड़ा उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है और इस वजह से आसपास के इलाकों का भूजल इस विषैले पदार्थ से संक्रमित हो रहा है। अध्ययन बताते हैं कि हेक्सावेलेंट क्रोमियम की वजह से फेफड़े का कैंसर होने का खतरा होता है।
साथ ही इस हानिकारक तत्व की गंध की वजह से सांसों की बीमारी भी हो सकती है। साथ यह किडनी और लीवर को भी नुकसान पहुंचा सकता है। जमीनी पानी को साफ करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने संस्थान के साथ मिलकर ट्रायल प्रोग्राम भी शुरू किया है। इसके तहत भूजल में कुछ रसायन डाला जाता है, जिसके परिणामस्वरूप क्रोमियम से जहरीले तत्व दूर हो जाते हैं।
यह ट्रायल काफी हद तक सफल रहा है। यहां तक कि कुछ टेस्ट में हेक्सावेलेंट क्रोमयिम की मात्रा नहीं के बराबर पाई गई। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राधेश्याम ने बताया कि यह भूजल को साफ करने की दुनिया की आधुनिक तकनीक है।
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