जहरीला हुआ यमुना का पानी, मछलियां मरीं

इटावा। यमुना नदी का पानी किस हद तक जहरीला हो चला है, इसकी गवाह घाटों पर आ लगी हजारों मरी मछलियां है। विशेषज्ञों के मुताबिक यमुना में प्रदूषण बढ़ने से पानी में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण ही पिछले तीन दिनों में भारी तादाद में मछलियां मरी है।

जहरीले रसायनों का नाला और प्रदूषण का पनाला में तब्दील हो चली यमुना में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख जनपद मथुरा और आगरा में किसी उद्योग द्वारा नदी में मिलने वाले नाले में जहरीले रसायन छोड़े जा रहे है। अनुमान लगाया जा रहा है कि हाडल व पलवल के बीच यमुना के किनारे पर स्थित औद्योगिक इकाइयों द्वारा इस प्रकार के रसायन छोड़े जा रहे है। संभवत: किसी औद्योगिक इकाई द्वारा यमुना जल में ऐसे रसायन छोड़े जा रहे है जो पानी के बहने के बावजूद समाप्त नहीं होते। यही कारण है कि इन रसायनों के यमुना जल में मिलने के बाद जब मछलियां इस जल को ग्रहण करती है तो उन रसायनों को नहीं झेल पातीं।

गौरतलब है कि चालू सप्ताह के प्रारंभ से ही आगरा में लगातार भारी तादाद में मछलियां मरने की घटना प्रकाश में आ रही है। इसलिए जहरीले रसायनों का सर्वाधिक असर आगरा क्षेत्र में प्रवाहित यमुना नदी में माना जाता है। आगरा से इटावा तक यमुना नदी का प्रवाह लगभग सौ किलोमीटर का है, इसके बावजूद जहरीले रसायनों का असर इटावा तक आ पहुंचा है। नगर के दक्षिण में प्रवाहित यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए जापान की मदद से स्थापित यमुना एक्शन प्लांट अपना मकसद पूरा नहीं कर पा रहा है। पुल कहारान निवासी मछली विक्रेता ओमरतन कश्यप ने बताया कि मरी मछलियां दो दिन पहले से देखी जा रही है।

पर्यावरणविदं् सोसाइटी फार कन्जरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा. राजीव चौहान बताते है कि जहरीले रसायनों के पानी की मात्रा नदी में बढ़ जाने से घुलनशील आक्सीजन की मात्रा गिर जाती है। इस कारण मछलियों को श्वसन के लिए आक्सीजन नहीं मिल पाती और वे मर जाती है।

यमुना नदी में खुद का पानी नहीं रह गया है सिर्फ नालों का पानी है। नदी पर जगह-जगह बैराज और डैम बन चुके है। इस कारण नदी के मूल जल का प्रवाह नहीं रह गया है। यमुना का पानी ही नदी को जीवित रखने का उपाय है।

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