माघ मेले में गंगा का पानी काला होगा या लाल

इलाहाबाद । शासन और प्रशासन स्तर पर 2008 के माघ मेले में गंगा का जलस्तर बढ़ाने की योजना पर काम तो शुरू हो गया। लेकिन नदी में प्रदूषण कम करने की कोई योजना नहीं बनी। कुंभ, अ‌र्द्धकुंभ और माघ मेले में नियमित डुबकी लगाने वाले लोगों के बीच अभी से चर्चा शुरू हो गई कि माघ मेले में गंगा का पानी काला होगा या लाल। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गंगा से मिलने वाली ढेला नदी अपने साथ केमिकल के रूप में तेजाब बहाती रहेगी। और यही तेजाब संगम तक पहुंचा तो तबाही भी मच सकती है।

अ‌र्द्धकुंभ की तरह ही ढेला नदी से बहने वाला तेजाब नहीं रोका सका तो माघ मेले में कैसे रुक सकता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर विश्वास करें तो सिर्फ ढेला नदी रामगंगा से मिलकर गंगा में 2000 हेजल यूनिट से अधिक केमिकल अपने साथ लाती है। नदी में बहने वाला केमिकल इतना खतरनाक है कि इसकी चपेट में आने के बाद गंगा के जीव-जंतुओं की मौत हो सकती है। इसके पानी में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालु चर्म रोग के साथ हेपेटाइटिस बी के शिकार हो सकते हैं। जानकारों का कहना है कि इसी नदी से आने वाले केमिकल से ही गंगा का पानी काला होता है।

इसके अतिरिक्त कानपुर मंडल में चल रही तीन सौ से अधिक चमड़ा फैक्ट्री से निकलने वाला केमिकल भी गंगा में ही प्रवाहित हो रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का मानना है कि चमड़ा फैक्ट्री से निकलने वाला केमिकल दो स्तरों पर ट्रीट किया जाता है। लेकिन चमड़ा फैक्ट्री से निकलने वाले प्रदूषित पानी को ट्रीट कर गंगा में बहाने की पोल पिछले अ‌र्द्धकुंभ में खुली थी। एक माह का अ‌र्द्धकुंभ समाप्त हो गया और फैक्ट्रियों में ट्रीटमेंट प्लांट होने के बावजूद प्रदूषित पानी गंगा में बहाया जाता रहा।

उल्लेखनीय है कि चमड़ा फैक्ट्री से निकले वाले प्रदूषित पानी की मात्रा अधिक होने पर गंगाजल का रंग लाल हो जाता है। माघ मेले में गंगा के पानी में चाहे ढेला नदी के केमिकल का प्रभाव हो या चमड़ा उद्योग का, भुगतना को श्रद्धालुओं को ही पड़ेगा। माना जा रहा कि पूर्व की भांति गंगा का पानी काला या लाल जरूर होगा। लेकिन नदी में पानी पर्याप्त हो तो ढेला नदी या चमड़ा फैक्ट्री से निकलने वाले जहर का असर कम होगा। लेकिन फिर सवाल खड़ा होता है कि क्या एक हजार क्यूसेक पानी नदी में प्रदूषण कम करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

आश्चर्य की बात तो यह है कि दोनों ही समस्या पर शासन या प्रशासन स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया गया। हालांकि मेला सलाहकार समिति की पहली बैठक में गंगा को लेकर मुख्य सचिव की मदद से उत्तरांचल सरकार से बातचीत करने की मांग की जा रही। लेकिन बैठक में भाग लेने वाला शायद ही कोई बता पाए कि उत्तरांचल सरकार से बात जलस्तर बढ़ाने के मुद्दे पर होगी या ढेला नदी में प्रदूषण कम करने पर।

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