नदियों के जीवन की खातिर हिमालय का अध्ययन जरूरी : भट्ट -अविकल थपलियाल
ग्लेशियरों के पिघलने व हिमालयी नदियों पर छाए संकट से चिंतित पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने हिमालय के अध्ययन के लिए एक आधुनिकतम अनुसंधान संस्थान की स्थापना पर जोर दिया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखित में अपनी चिंता से अवगत कराने के बाद पद्मश्री चंडी प्रसाद भट्ट ने बताया कि हिमालय तथा हिम जमाव क्षेत्रों के बारे में सुनियोजित ढंग से सूचना एकत्रित करने की जरूरत है। हिमालय, ग्लेशियर व चट्टानों के अध्ययन के लिए आधुनिकतम संस्थान बनाया जाना चाहिए। इस संस्थान में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े वैज्ञानिक एक ही छत्त के नीचे काम कर सकेंगे।
पर्यावरणविद् भट्ट के अनुरोध पर अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र, अहमदाबाद व नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, हैदराबाद ने हिमालयी क्षेत्र का अध्ययन किया। भट्ट ने हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र, अहमदाबाद की अध्ययन रिपोर्ट सौंपी है। भट्ट का सुझाव है कि हिमालयी अध्ययन संस्थान में भू-विज्ञान, भू-भौतिकी, रिमोट सैंसिंग, मौसम विज्ञान, गणित, सिविल इंजीनियरिंग, जीव-विज्ञान, रसायन विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए। रिपोर्ट का हवाला देते हुए भट्ट का कहना है कि हिमखंडों के बढ़ने-घटने के चक्र में बदलाव शुरू हो गया है। इससे थोड़े समय के लिए नदियों का बहाव बढ़ेगा। लेकिन लंबे समय बाद बहाव कम हो जाएगा। साथ ही एक और विशेष परिवर्तन यह देखने को मिलेगा कि हिमखंडों से निकलने वाली नदियां बारहमासी नहीं रहेंगी।
पर्यावरणविद् भट्ट के अनुरोध पर अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र, अहमदाबाद व नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, हैदराबाद ने हिमालयी क्षेत्र का अध्ययन किया। भट्ट ने हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र, अहमदाबाद की अध्ययन रिपोर्ट सौंपी है। भट्ट का सुझाव है कि हिमालयी अध्ययन संस्थान में भू-विज्ञान, भू-भौतिकी, रिमोट सैंसिंग, मौसम विज्ञान, गणित, सिविल इंजीनियरिंग, जीव-विज्ञान, रसायन विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए। रिपोर्ट का हवाला देते हुए भट्ट का कहना है कि हिमखंडों के बढ़ने-घटने के चक्र में बदलाव शुरू हो गया है। इससे थोड़े समय के लिए नदियों का बहाव बढ़ेगा। लेकिन लंबे समय बाद बहाव कम हो जाएगा। साथ ही एक और विशेष परिवर्तन यह देखने को मिलेगा कि हिमखंडों से निकलने वाली नदियां बारहमासी नहीं रहेंगी।
.
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र में चट्टानों के खिसकने से बनने वाली झीलों की संख्या बढ़ेगी। नतीजतन हिमालयी क्षेत्र में अचानक आने वाली बाढ़ों का खतरा बढ़ जायेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी पर्वत श्रृंखला अभी भी विकासमान स्थिति में है।
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र में चट्टानों के खिसकने से बनने वाली झीलों की संख्या बढ़ेगी। नतीजतन हिमालयी क्षेत्र में अचानक आने वाली बाढ़ों का खतरा बढ़ जायेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी पर्वत श्रृंखला अभी भी विकासमान स्थिति में है।
.
भूकंप का सर्वाधिक प्रभाव इस क्षेत्र के ग्लेशियर, हिम निर्मित तालाब, चट्टानों व धरती पर पड़ता है। इन्हीं कारणों से हिमालयी क्षेत्र की हिमानियों व ग्लेशियरों में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि हिमालय से निकलने वाली गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र नदियों के बेसिन में देश का 43 प्रतिशत हिस्सा शामिल है। यही नहीं देश की सभी नदियों का 63 प्रतिशत जल इन्हीं तीनों नदियों में बहता है। बीते कुछ समय से इन नदियों के व्यवहार में भी काफी बदलाव देखा जा रहा है। भट्ट का कहना है कि तापमान बदलने से हिमालय के ग्लेशियर लगातार पीछे खिसकते जा रहे हैं, जो कि किसी भी दशा में शुभ नहीं माना जायेगा। भट्ट का यह भी कहना है कि हिमालय का एक बड़ा हिस्सा भारतीय क्षेत्र से बाहर है। लेकिन यह भी सच है कि हिमालय से पिघलने वाला पानी भारतीय नदियों में एकत्रित होता रहता है।
भूकंप का सर्वाधिक प्रभाव इस क्षेत्र के ग्लेशियर, हिम निर्मित तालाब, चट्टानों व धरती पर पड़ता है। इन्हीं कारणों से हिमालयी क्षेत्र की हिमानियों व ग्लेशियरों में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि हिमालय से निकलने वाली गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र नदियों के बेसिन में देश का 43 प्रतिशत हिस्सा शामिल है। यही नहीं देश की सभी नदियों का 63 प्रतिशत जल इन्हीं तीनों नदियों में बहता है। बीते कुछ समय से इन नदियों के व्यवहार में भी काफी बदलाव देखा जा रहा है। भट्ट का कहना है कि तापमान बदलने से हिमालय के ग्लेशियर लगातार पीछे खिसकते जा रहे हैं, जो कि किसी भी दशा में शुभ नहीं माना जायेगा। भट्ट का यह भी कहना है कि हिमालय का एक बड़ा हिस्सा भारतीय क्षेत्र से बाहर है। लेकिन यह भी सच है कि हिमालय से पिघलने वाला पानी भारतीय नदियों में एकत्रित होता रहता है।
.
इसीलिए समग्र हिमालयी अध्ययन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय तंत्र की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। भट्ट का कहना है कि मौजूदा संस्थानों में आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं है। हिन्दुस्तान (देहरादून), 17 June 2006
इसीलिए समग्र हिमालयी अध्ययन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय तंत्र की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। भट्ट का कहना है कि मौजूदा संस्थानों में आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं है। हिन्दुस्तान (देहरादून), 17 June 2006