कहीं सूख न जाए धरती की कोख - माइक पाण्डे

हम एक बार फिर आकाश की ओर ताक रहे हैं कि बारिश कब होगी? क्योंकि जब जल की कमी होती है, तभी हम उस विषय में सोचते हैं। दरअसल हम लोगों के दिमाग में यह बात नहीं आती हैं कि पानी खत्म भी हो सकता है।
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पानी के मूल्य को समझने के लिए इसके अर्थशास्त्र को समझना होगा। पृथ्वी का 75 फीसदी हिस्सा जल है। इस पूरे पानी में 97 फीसदी खारा और सिर्फ 3 फीसदी मीठा जल है। इस तीन फीसदी मीठे जल में 2 फीसदी हिस्सा बर्फ के रूप में उत्तर और दक्षिणी ध्रुव में जमा है। बाकी के बचे हुए एक फीसदी में आधा फीसदी जल पृथ्वी के नीचे भूजल के रूप में उपलब्ध है, बाकी का आधा फीसदी वर्षा, नदियों, तालाबों और बर्फ के रूप में उपलब्ध है। यही आधा फीसदी जल पृथ्वी को हरा-भरा रखता है। यही कानून है और बहुमूल्य है।
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मगर आज पृथ्वी का अस्तित्व खतरे में है। विश्वभर के जलस्रोत और नदियां प्रदूषण की शिकार हो गई है। जहां तक दिल्ली जैसे महानगरों का सवाल है, तो एक समय दिल्ली में 536 से अधिक तालाब बावड़ियां और कुंड थे। यह बहुत सोच समझकर बनाई गई थीं। लेकिन मनुष्यों के लोभ और स्वार्थ ने कुदरत के इन जलस्रोतों को मिट्टी से भर दिया। तालाब और पोखर प्रकृति के जल संग्रहण क्षेत्र थे। ऐसे हालात में जब पानी की कमी महसूस हुई, तो भूजल का अंधाधुंध उपयोग किया गया। ये भूजल प्रकृति का करोड़ों साल से सुरक्षित खजाना है। इसे बनने में हजारों साल लगे। लेकिन सिर्फ 10 साल में हमने इसे सोख डाला। कुछ बरस पहले दिल्ली शहर में कई जगहों जैसे कर्जन रोड बापा नगर में 8-10 फुट के नीचे पानी की उपलब्धता थी। वहीं आज 300 फुट तक की गहराई पर भी पानी उपलब्ध नहीं। ये हालात लगभग सभी महानगरों में पानी के किल्लत में मारामारी के कारण कई लोगों की जानें जा चुकी है।
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दूसरी ओर जहां पानी पहुंचता है, वहां लोग रोज अपनी गाड़ी को नहलाते हैं। मैंने गाड़ी को नहलाने की ऐसी प्रथा दुनिया में कहीं और नहीं देखी। इससे पानी के दुरुपयोग का एहसास लोगों को नहीं होता है। दुर्भाग्य यह है कि ऐसे कारनामे पढ़े-लिखे लोगों द्वारा किए जाते हैं। लेकिन यह बात समझ में नहीं आती कि ऐसा करने से गाड़ी को नुकसान ही पहुंचता है। साथ ही ऐसा करने से दूसरे लोगों के पास पानी नहीं पहुंच पाता है।
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भूजल के 80 फीसदी हिस्से का हम दोहन कर चुके हैं। यह दूसरी बात है कि भूजल कुदरत के चक्र का एक हिस्सा है। जिसमें हमारे सेविंग एकाउंट में पानी जमा होता है।
बारिश के दौरान भूमि के भीतर जल का संग्रह होता है, जिसे समय आने पर भू के गर्भ से निकाला जाता है। साथ ही, यही पानी पृथ्वी को हरा-भरा रखता है। कुओं में पानी भरा रहता है। और इसी पानी से भूमि के ऊपर और भीतर कितने ही जीवन जीते हैं। जैसे-केंचुए, चीटिंयां इत्यादि। लेकिन भूजल का स्तर नीचे गिरने के कारण छोटे-छोटे जीवों की सैकड़ो प्रजातियों का अस्तित्व मिट चुका है जैसे कि मेढ़कों की संख्या में भारी कमी आई है। (p इन सबके बावजूद हम सब पानी को लेकर संवेदनशील नहीं है और कुदरत प्रदत्त इस चक्र से छेड़खानी करने से बाज नहीं आते हैं। वैसे इसका समाधान भी हमारे हाथ में ही है। इसके लिए जरूरी है कि हम रेन वाटर हार्वेस्टिंग करें और यह काम कोई भी कर सकता है। अगर हम यह चाहते हैं कि भविष्य में हमें पानी मिलता रहे, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि जल का जो चक्र हमने बिगाड़ा है, उसे हम ही काफी हद तक संतुलित कर सकते हैं।
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इसके लिए आप अपने घर के बाहर बगीचा या सूखे हुए ट्यूबवेल में बारिश के पानी को संग्रहित कर सकते हैं, जिसके पास ऐसी व्यवस्था नहीं है, वे रिचार्ज वेल (कुआं) बना सकते हैं। वर्षा का पानी गटर या नालों में जाने के बजाए रिचार्ज पिट में चला जाएगा। इसके लिए स्थानीय जल बोर्ड से संपर्क किया जा सकता है। ऐसा कर आप अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं।
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ग्रामीण इलाकों में जंगल के काटने से मिट्टी कट कर नदियों में चली गई। इससे नदियों की तली छिछली हो गई है। इसलिए पानी जल्दी से बह जाता है। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए पेड़ों को दोबारा जिंदा करना पड़ेगा। साथ ही, नदियों के तली की सफाई करना जरूरी है ताकि कुदरत के इस चक्र को दोबारा सुचारू रूप से व्यवस्थित किया जाए।
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पहाड़ी इलाकों में पानी जहां गिरता है, उसे वहीं रोक लेने का प्रयास और तेज बहाव को बांध बनाकर कम करना जरूरी है। इसके लिए गली बांध बनाकर पानी को रोका जा सकता है। इस तरह का काम पंचमहल और उत्तर पूर्व के कई राज्यों में कामयाब रहा है। राजस्थान और गुजरात में कुछ गांव ऐसे हैं, जहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग के कारण कई साल तक पानी की कमी नहीं होती। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पानी का संग्रह करने के लिए कुआं बनाते हैं। इस तरह के काम जल निगम के द्वारा कराए जाते हैं। पानी संग्रह का यह पुराना तरीका है, जिसे उपयोग में लाया जा रहा है।
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दूसरी ओर गांवों में, जहां पानी जमा होने के लिए कोई तालाब नहीं हो, वहां अगर एकजुट प्रयास हो, तो पानी जमा हो जाता है। वहां 10-12 फुट का एक पाइप गाड़ दें जिससे पानी धीरे-धीरे नीचे की ओर जमा हो जाएगा। ऐसा करने से कुओं के पानी का स्तर बना रहेगा। लेकिन ऐसा करने से पहले यह जरूर जांच लें कि इसकी बुनियाद पथरीली तो नहीं है। साथ ही इस गड्ढे में ईंट के टुकड़े और रेत जरूर डालें, जिससे पानी छनकर नीचे जाएगा और इसे साल में कम से कम एक बार साफ कर देना चाहिए। पहाड़ी इलाकों में जहां पानी की कमी होती है, वहां एक बड़ा-सा प्लास्टिक वाटर टैंक जमीन खोदकर रख दें और ऊपर एक खुले हुए टैंक से पाइप के द्वारा जोड़ दें। इसे वाटर स्लोप स्टोरेज टैंक कहते हैं।
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पृथ्वी की कोख में पानी पहुंचाना जरूरी है, क्योंकि तभी हम कुदरत के चक्र को दोबारा ठीक कर पाएंगे। पृथ्वी की कोख अगर सूख गई, तो पृथ्वी मर जाएगी। हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि बारिश का यह आधा फीसदी उपलब्ध पेयजल ही हमारे लिए है और हमें इसी से गुजारा करना होगा। प्रकृति ने हमें सबसे अधिक मौका दिया है क्योंकि मानसून का सबसे अधिक पानी भारतीय भूभागों पर ही गिरता है।
हिन्दुस्तान (नई दिल्ली), 20 June 2006

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