स्वयंसेवी संस्थाओं की भी पोल खोलेगी मानवाधिकार टीम

उरई (जालौन)। बुंदेलखंड में गरीबों वंचितों एवं किसानों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिये सरकार द्वारा स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिये कई योजनाएं संचालित की जा रही है जिनमें अरबों की धनराशि खर्च होने के बावजूद कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ सके है। जिसके कारण मानवाधिकार आयोग ने इस इलाके में गरीबी और भुखमरी के चलते हो रही आत्महत्या की घटनाओं के मद्देनजर मौके पर स्थितियों का जायजा लेने का जो निश्चय किया है उसके अंतर्गत स्वयंसेवी संस्थाओं की कारगुजारियों पर भी उसकी पैनी निगाह लगी हुयी है।
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ज्ञात हो कि सरकार द्वारा स्वर्ण जयंती रोजगार योजना, स्वयं सहायता समूह योजना, सिंचाई, जल संरक्षण, वाटर रिचार्जिग, भूमि सुधार, पेयजल योजना आदि के लिये स्वयंसेवी संस्थाओं को पिछले कई वर्षो में भारी धनराशि अवमुक्त की है। एक अनुमान के अनुसार लगभग दस अरब रुपये की धनराशि पिछले पांच सालों में बुंदेलखंड में गरीबी उन्मूलन के लिये खर्च की जा चुकी है मगर हालत यह है कि बुंदेलखंड में वंचित और किसान गरीबी के दलदल में इतने धंस चुके है कि भुखमरी की मार से आत्महत्या कर रहे है। उक्त बिंदुओं की जांच के लिये बुंदेलखंड के दस दिवसीय दौरे पर पहुंच रही मानवाधिकार आयोग की टीम के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मुकेश सिंह ने इस अंचल के जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर उक्त योजनाओं एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा कराये गये कार्यो के अभिलेख मुहैया कराने का अनुरोध किया है। स्वयंसेवी संस्थाओं में इससे हड़कंप की स्थिति पैदा हो गयी है क्योंकि उनके सुनहरे दावों का जमीनी सच जब उजागर होगा तो अनुमान है कि पूरे समाज का स्वाद कसैला हो जायेगा। इसके अलावा सरकार द्वारा खेती को मुनाफादेह बनाने के लिये अल्प ब्याज वाली ऋण योजनायें लाने के बावजूद दिन पर दिन किसानों में पैदा हो रही कुंठा और इसके चलते आत्महत्याओं के कारणों को भी आयोग की टीम जानने की कोशिश करेगी। हमीरपुर जनपद के कुरारा निवासी बंशीधर सेंगर, जखेला गांव के बद्री प्रसाद, मौदहा तहसील के सायर गांव के मुन्ना सिंह चौहान, जनपद जालौैन के खकसीस निवासी साहब सिंह, हरचंदपुर के नाथूराम तिवारी, रजनीकांत दुबे, महोबा जिले के रामप्रताप तिवारी, बांदा जनपद के प्रताप सोलंकी आदि दर्जनों किसानों का मानना है कि पिछले चार साल से हो रही बेमौसम बरसात एवं सूखे से खेती का व्यवसाय चौपट हो गया है। फसल जुताई एवं कृषि यंत्र ट्रैक्टर इत्यादि के लिये कर्ज की किश्तों का समय से भुगतान नहीं हो सका जिससे सैकड़ों किसानों की जमीनें बैंकों में नीलाम कर दी गयी है। यही वजह है कि आकर्षक ऋण योजनाएं उनके लिये वरदान की बजाय अभिशाप साबित हो रही है। एक अध्ययन के अनुसार बांदा जिले में एक वर्ष में 6 करोड़ 86 लाख रुपये के स्टांपों की बिक्री हुई। जाहिर है कि इनमें से अधिकांश में किसानों ने खेती बेचने में उक्त स्टांप इस्तेमाल किये। हड़बड़ी के कारण जिस जमीन की कीमत सरकार द्वारा 60 हजार रुपये प्रति एकड़ निर्धारित है, किसान 40 हजार रुपये प्रति एकड़ में बेचने को घूम रहे है। खरीदार नहीं मिल रहे है। बुंदेलखंड में 1500 ट्रैक्टर सालाना बिकते है मगर पैदावार के धोखा दे जाने से सालाना एक हजार किसानों की भूमि नीलाम हो रही है या निजी स्तर पर बेची जा रही है। पिछले 5 सालों से बुंदेलखंड के सभी जिलों में 50 फीसदी से भी कम बारिश हुई है। बुंदेलखंड का भूगर्भ जल स्तर 30 से 40 फीट नीचे सरक गया है। पांच दशक पहले बुंदेलखंड का 33 फीसदी भूभाग वनाच्छादित था और छह हजार से अधिक तालाब, पोखर थे पर अब वन क्षेत्र दस प्रतिशत से भी पर सिकुड़ गया है और 30 फीसदी तालाब अपना स्वरूप खो बैठे है। बुंदेलखंड में लगे स्टील क्रेशरों ने भी वन संपदा व कृषि भूमि को अन उपजाऊ बनाने का संकट खड़ा किया है।

बुंदेलखंड के जिलों के पलायन
जालौन-30000
हमीरपुर-35000
महोबा-42000
चित्रकूट-17000
झांसी-40000
ललितपुर-15000
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गरीबी के सरकारी मानक
स्वास्थ्य-30 रुपये
कपड़ा-39 रुपये
ऊर्जा-55 रुपये
अन्य खर्च-164 रुपये
साभार- जागरण-याहू

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