पर्यावरण संरक्षण में 20 वर्ष का संघर्ष
34 वर्ष पहले स्टाकहोम में पहली पर्यावरण कांफ्रेंस आयोजित हुई थी जिसका मुख्य आकर्षण था पर्यावरण हेतु ग्लोबल एक्शन प्लान का अस्तित्व में आना। साथ ही इस कांफ्रेंस में पर्यावरण के मुद्दे को विश्व पटल पर रखा। अक्सर हम मीडिया अथवा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों द्वारा पर्यावरण के मुद्दे पर बात सुनते हैं एवं ये मुद्दे मुख्यतः मौसम में बदलाव, प्रजातियों की विलुप्ति, प्रदूषण आदि के विषय में होते हैं। 1992 में पर्यावरण व विकास हेतु युनाइटेड नेशन्स कांफ्रेंस जो कि रियो डी जिनेरो में आयोजित हुई थी। युनाइटेड नेशन्स की कान्फ्रेंस मानव व पर्यावरण विषय पर स्टाकहोम में 5 जून 1972 में आयोजित की गई थी। उस समय नदियों में प्रदूषण व वाहन प्रदूषण अमीर देशों में चरम पर था विश्व को प्रदूषण रहित बनाने में औद्योगिक व अमीर देशों की सरकारें साथ मिलकर काम करने के लिए सहमत हुई। परन्तु गरीब तीसरी दुनिया के देश औद्योगिक विकास चाहते थे फिर भले ही उसके साथ प्रदूषण की समस्या जुड़ी है उनके लिए मुख्य समस्या गरीबी थी जिसके लिए वह पर्यावरण व प्रदूषण संबंधी समस्याओं से जूझने को तैयार थे। इसी संदर्भ में इंदिरा गांधी का कहना था ‘सभी प्रदूषणों में गरीबी सर्वोपरि है, हम अधिक विकास चाहते हैं’। स्टाकहोम में अपेक्षित सफलताएं मिली। पश्चिमी दुनिया को यह महसूस हुआ कि उनके तरीकों में कई खामियां हैं अब वहां पर्यावरण समस्या के कई नियम बन गए हैं। हवा जिसमें वे सांस लेते थे, पानी जिसे वह पीते थे, खाना जो वो खाते थे के भी नियम बन गये। पर्यावरण के मुद्दे पर यह एक महत्वपूर्ण प्रगति थी। हालांकि पिछले 34 वर्षों में इस क्षेत्र में कई बदलाव आये हैं। जैसे कार चलाते वक्त पर्यावरण को क्या दे रहे हैं उसका क्या असर हो रहा है। 1970 के शुरूआत में 5.5 बिलीयन मीट्रिक टन प्रति व्यक्ति CO2 वातावरण में घुलती थी जो अब बढ़ कर 7 बिलियन हो गयी है। साथ ही इसके नुकसान के विषय में जानकारी भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। इसका असर हवा के साथ समुद्र पर भी पड़ा है साथ ही वह देश जो प्रदूषण नहीं फैलाते, भी इससे पीड़ित है। औद्योगिक देशों का रियो जमावड़ा, मौसम, जंगल व विलुप्त होती प्रजातियों के मुद्दे को सुलझाने के लिए लगा।
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परंतु दक्षिणी देश केवल इस कारण से नहीं आए थे उनके लिए मुख्य समस्या अभी भी गरीबी ही थी। 1900 में औसत भारतीय की आय, औसत यूरोपियन की आधी थी। स्टाकहोम कांफ्रेंस के 34वर्ष बाद भी अफ्रीका में खाद्य उत्पादन घटा है व गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या में 1 बिलियन का इजाफा हुआ है। अकाल मृत्यु का एक बड़ा कारण दूषित जल है। रियो में गरीब देशों का मत था कि एजेंडा में पर्यावरण के साथ-साथ विकास के मुद्दे पर भी बात हो।
परंतु दक्षिणी देश केवल इस कारण से नहीं आए थे उनके लिए मुख्य समस्या अभी भी गरीबी ही थी। 1900 में औसत भारतीय की आय, औसत यूरोपियन की आधी थी। स्टाकहोम कांफ्रेंस के 34वर्ष बाद भी अफ्रीका में खाद्य उत्पादन घटा है व गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या में 1 बिलियन का इजाफा हुआ है। अकाल मृत्यु का एक बड़ा कारण दूषित जल है। रियो में गरीब देशों का मत था कि एजेंडा में पर्यावरण के साथ-साथ विकास के मुद्दे पर भी बात हो।
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उत्तरी देश पर्यावरण हेतु दक्षिणी देशों का सहयोग चाहते थे, जिसमें जंगलों की कटाई पर अंकुश, ईंधन खपत में कमी, जन्म दर घटाना आदि प्रमुख था और इसीलिए दक्षिणी देशों की बात में दम था।
उत्तरी देश पर्यावरण हेतु दक्षिणी देशों का सहयोग चाहते थे, जिसमें जंगलों की कटाई पर अंकुश, ईंधन खपत में कमी, जन्म दर घटाना आदि प्रमुख था और इसीलिए दक्षिणी देशों की बात में दम था।
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यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का वर्तमान की तरह प्रयोग करते रहे। यदि हम गरीबों की स्थिति को दरकिनार करते रहे। यदि हम प्रदूषित व बरबादी करते रहे तो जीवन स्तर में गिरावट निश्चित है। इसके लिए निरंतर Sustainable Development की विकास की अवधारणा प्रकाश में आई।
यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का वर्तमान की तरह प्रयोग करते रहे। यदि हम गरीबों की स्थिति को दरकिनार करते रहे। यदि हम प्रदूषित व बरबादी करते रहे तो जीवन स्तर में गिरावट निश्चित है। इसके लिए निरंतर Sustainable Development की विकास की अवधारणा प्रकाश में आई।
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इसके बाद आर्थिक विकास आता है जिसके अंतर्गत हम अपनी वर्तमान जरूरतों को पूरा करते हैं व साथ ही भावी पीढ़ियों हेतु भी संसाधनों को सीमित नहीं करते हैं। डा. टी.बी. सिंह मुख्य पर्यावरण अधिकारी, श्री अंकुर कंसल, सहायक पर्यावरण अधिकारी। दैनिक जागरण (देहरादून), 05 June 2006
इसके बाद आर्थिक विकास आता है जिसके अंतर्गत हम अपनी वर्तमान जरूरतों को पूरा करते हैं व साथ ही भावी पीढ़ियों हेतु भी संसाधनों को सीमित नहीं करते हैं। डा. टी.बी. सिंह मुख्य पर्यावरण अधिकारी, श्री अंकुर कंसल, सहायक पर्यावरण अधिकारी। दैनिक जागरण (देहरादून), 05 June 2006