गंगा-यमुना में पानी का संकट - शालिनी जोशी/देहरादून से
हिमालय से निकलने वाली नदियों में प्रवाह कम होता जा रहा है. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में इस साल ठंड के महीनों में बारिश और बर्फबारी न होने से गंगा, यमुना सहित हिमालय से निकलने वाली अधिकतर नदियों में जल-प्रवाह लगातार घटता जा रहा है. इसी वजह से भागीरथी नदी पर बने बाँध के पावर हाउस की एक टर्बाइन बंद करके बिजली उत्पादन में कमी करनी पड़ी है.
तीन महीने पहले टिहरी बांध की विशाल झील में जिस टिहरी नगर ने जलसमाधि ली थी आज उसके मकान और खंभे एक बार फिर पानी से बाहर निकल आए हैं. अगर इस महीने के अंत तक भी बारिश मेहरबान नहीं हुई तो अकाल की स्थिति पैदा हो जाएगी
प्रभुलाल रौतेला, किसान
बांध अधिकारियों के अनुसार बांध के जल-कुंड का जलस्तर करीब 20 मीटर कम हो गया है. परियोजना महाप्रबंधक एलएम शाह के अनुसार गंगा-भागीरथी में हर दिन पानी का प्रवाह 30 क्यूसेक है जबकि भिलंगना में महज 12 क्यूसेक. पिछले साल इन दिनों गंगा-भागीरथी में पानी का प्रवाह 51 क्यूसेक था और भिलंगना में 23 क्यूसेक. एलएम शाह कहते हैं कि जल-कुंड में हर दिन करीब 42 क्यूसेक पानी आ रहा है जबकि इलाहाबाद में चल रहे अर्द्ध-कुंभ की वजह से हम 145 क्यूसेक पानी नदी में छोड़ रहे हैं जिससे जल-कुंड में हर दिन 100 क्यूसेक पानी कम होता जा रहा है.
पानी के संकट की वजह से टिहरी बांध की 250 मेगावाट की क्षमता वाली दो यूनिटों में से एक को बंद कर देना पड़ा है. कमोबेश यही कहानी उत्तराखंड के ग्लेशियरों से निकलने वाली दूसरी नदियों की भी है. गढ़वाल हिमालय की यमुना, अलकनंदा, मंदाकिनी और कुमांऊ की कोसी नदियों में भी जल स्तर 30 से 35 प्रतिशत कम हो गया है.
चिंता
ये सभी उत्तर भारत की प्रमुख नदियां हैं और वहां की जीवन-रेखा भी.
इस बार वर्षा और बर्फबारी न होने से गंगोत्री में कम बर्फ जमा हो रही है
उत्तराखंड के मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा कहते हैं, "इस बार सर्दियों में बारिश और बर्फबारी न के बराबर हुई है तो नदियों में पानी आएगा कहां से. आंकड़ों के अनुसार सितंबर से अब तक पूरे प्रदेश में सिर्फ 79 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई जबकि पिछले साल इस अवधि में 187 मिलीमीटर बारिश हो चुकी थी.”
सर्दी में सूखे की इस मार का असर किसानों के चेहरे पर भी देखा जा सकता है जिनके माथे पर चिंता की रेखाएं हैं. सेब और गेहूं की फसल चौपट होने की कगार पर है.
टिहरी के पास मालीदेवल गांव के एक किसान प्रभुलाल रौतेला कहते हैं,"अगर इस महीने के अंत तक भी बारिश मेहरबान नहीं हुई तो अकाल की स्थिति पैदा हो जाएगी.”
पर्यावरण विशेषज्ञों की राय है कि मौसम में ये उलटफेर और नदियों के सूखने की मुख्य वज़ह दुनिया भर में बढ़ रही ग्लोबलवॉर्मिंग है. साभार- बीबीसी हिन्दी